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कैसे सदी के महानायक बन गये अमिताभ बच्‍चन ?

कैसे सदी के महानायक बन गये अमिताभ बच्‍चन ?
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सदी के महानायक कहे जाने वाले लीजेंड्री अभिनेता अमिताभ बच्चन का आज अपना 77वां जन्‍मदिन है. हाल ही में महानायक को दादा साहब फाल्के अवॉर्ड दिए जाने की घोषणा हुई है. सैकड़ों पुरस्कार जीत चुके बिग बी के ड्राइंग रूम का कोई कोना जहां अवॉर्ड रखे जाते हैं शायद इसी दिन और इस पुरस्कार का इंतजार कर रहा था. उनकी उपलब्धियों का भंडार इतना विशाल है जिसे चंद शब्दों में समेट पाना बहुत मुश्किल है इसलिए आज बात होगी उन कारणों की जिन्होंने अमिताभ को हिन्दुस्तान का महानायक बना दिया.

हिंदी सिनेमा में 50-60 के दशक का दौर रोमांटिक फिल्मों का था जिसके सबसे बड़े नायक बने राजेश खन्ना दमदार व्यक्तित्व, चॉकलेटी अंदाज, उनकी नटखट अदाओं, और खूबसूरत गानों की बदौलत राजेश खन्ना रुपहले पर्दे पर रोमांटिक फिल्मों के बादशाह बन गये.

इसी समय 'सात हिन्दुस्तानी' फिल्म से शुरूआत करने वाला लंबे कद का दुबला-पतला एक लड़का बॉलीवुड में पांव जमाने की कोशिश कर रहा था. लगातार सात आठ फिल्में फ्लॉप हो चुकी थीं और वो निर्देशकों के ऑफिस के बाहर एक अदद सफलता की तलाश में था, ये थे अमिताभ बच्‍चन, जिन्‍हें दुनिया आज बिग बी के नाम से जानती है.

आखिरकार इंतजार खत्म हुआ और 1970 में रिलीज हुई फिल्म 'जंजीर' ने भारतीय सिने जगत को नया सितारा दिया...ईमानदार और गुस्सैल पुलिस ऑफिसर के किरदार में अमिताभ खूब फबे... नये सितारे को नया नाम मिला... एंग्री यंग मैन...इसके बाद से अमिताभ ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. एक के बाद एक उनकी फिल्मों ने कामयाबी के नए झंडे गाड़े.

जंजीर से शुरू हुआ उनका 'सफर', 'कुली', 'लावारिस', 'कालिया', 'दीवार', 'काला पत्थर', 'रोटी कपड़ा और मकान', 'मुकद्दर का सिंकदर', 'सुहाग', 'खून पसीना', 'नमक हलाल', 'नमक हराम' और 'अग्निपथ' तक लगातार जारी रहा. इन सभी फिल्मों ने सिनेमा जगत के तमाम टैबू को तोड़ा. सफलता ऐसी मिली की हर कोई हैरान रह गया.

सवाल यह भी है कि आखिर अमिताभ बच्चन की इन फिल्मों में ऐसा क्या था कि फिल्म समीक्षकों की तमाम आलोचनाओं के बावजूद जनता ने इनको हाथों-हाथ लिया और बॉक्स-ऑफिस पर भी इसने कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़े. इनमें भी अगर शोले को नजरअंदाज कर दिया तो गुस्ताखी होगी. कुछ फिल्म समीक्षकों का मानना कि अमिताभ की फिल्मों की सफलता का राज तब की सोशल कंडीशन में छुपा हुआ है.

दरअसल जिस दौर में अमिताभ की ये फिल्में रिलीज हुईं वो समय भारत में फैक्ट्रियों के विकास, मिलों के विस्तार, अमीरी-गरीबी के बड़े अंतर, मालिक मजदूर के बीच संघर्ष और मिलों में होने वाली हड़तालों के दौर से गुजर रहा था और इसकी पूरी झलक अमिताभ की फिल्मों में दिखाई पड़ती थी.

'जंजीर' में अमिताभ ने एक ऐसे पुलिसवाले का किरदार निभाया जो ईमानदार है. सख्त है और उसूलों को मानता है... अपनी वर्दी और फर्ज से समझौता नहीं करता... ऐसे समय में जब आम जनता के लिए पुलिस उत्पीड़न का पर्याय बनी हुयी थी... अमिताभ पर्दे पर ही सही... उनके लिए सुकून लेकर आये. कड़क पुलिस ऑफिसर के तौर पर उनका ये संवाद काफी पॉपुलर हुआ जिसमें अमिताभ का किरदार प्राण के किरदार को कहता है- 'जब तक बैठने को ना बोला जाये खड़े रहे... ये पुलिस स्टेशन है तुम्हारे बाप का घर नहीं'

उनकी बाकी फिल्मों की कहानी भी ऐसी ही थी. चाहे वो लावारिस का हीरा हो जो पारिवारिक तौर पर पहचान की चुनौती से तो जूझ ही रहा है...दूसरी तरफ होटल में एक सामान्य कर्मचारी की तरफ से काम करते हुए अपने मालिकों को चुनौती दे रहा है...चाहे वो दीवार का विजय हो जिसके पिता की हत्या कर दी गयी और वो सड़क पर जूता पॉलिश करने का काम करने लगता है लेकिन किसी के आगे मदद के लिए हाथ नहीं फैलाता.

पिता के हत्यारों की खोज करते हुए गरीबी से बाहर निकलने की कोशिश करते हुए वो अपराध तक का सहारा लेता है. लेकिन लोग विजय को अपराधी नहीं मानते क्योंकि ये किरदार समाज का सताया हुआ है और इसलिए लोगों का नायक है... इस फिल्म का ये डॉयलॉग काफी लोकप्रिय हुआ. बूट पॉलिश करवाने के बाद लोग जब उन्हें फेंक के पैसे देते हैं तो अमिताभ का किरदार कहता है- ' मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता' इस सीन पर तब खूब तालियां बजी थीं और आज भी बजती हैं... इसी से जुड़ा एक डॉयलॉग काफी फेमस है जिसमें वो अमिताभ का किरदार कहता है- मेरे पास गाड़ी है....बंगला है...बैंक बैलेंस है...तुम्हारे पास क्या है ? जवाब में शशि का किरदार कहता है- मेरे पास मां है.

कालिया फिल्म में निभाया गया कालिया का किरदार, जिसमें अमिताभ एक मिल मजदूर के किरदार में दिखे, जो मिल मालिकों के उत्पीड़न को चुनौती देता है और उनको सजा देने के लिए अपराध के रास्ते में चला जाता है. फिल्म में अमिताभ को स्मगलिंग जैसा गंभीर अपराध करता दिखाया गया है बावजूद इसके लोग कालिया के किरदार से सहानुभूति जताते हैं क्योंकि कालिया अपराधी बना गरीबों को सताने वाले लोगों को सजा देने के लिए...

काला पत्थर फिल्म अमिताभ के करियर में मील का पत्थर साबित हुयी. इसमें उन्होंने एक सस्पेंड नेवी ऑफिसर का किरदार निभाया है जिसे कोयले की खान में काम करने की सजा दी गयी है. इस फिल्म में अमिताभ का किरदार विजय कोयला खान के मालिकों की ज्यादती के खिलाफ खड़ा हो जाता है और सुरक्षा नियमों की अनदेखी का विरोध करता है. काला पत्थर कोयला खदानों की सच्चाई बयां करती थी और लोगों ने इस किरदार के साथ रिलेट किया.

एक ऐसी ही फिल्म आयी अग्निपथ... इस फिल्म में अमिताभ ने विजय का किरदार निभाया जिसके शिक्षक पिता की बचपन में हत्या कर दी जाती है और वो इसका बदला लेने के लिए अपराध का दामन थाम लेता है. गरीबों की मदद करता है अमीरों को लूटकर... जाहिर है कि आम युवकों ने इसमें खुद को देखा और अमिताभ के तौर पर इसका प्रतिनिधि मिला.

कुली की जिक्र करना भी जरूरी हो जाता है. अमिताभ ने इस फिल्म में इकबाल नाम के कुली का किरदार निभाया जो रेलवे स्टेशन पर काम करता है. फिल्म में इकबाल का मानना है कि कुली होना बस एक काम है और इसकी वजह से वो दबा-कुचला नहीं है. अमीर लोग जब बद्तमीजी से बात करते हैं तो अमिताभ का किरदार उन्हें चुनौती देता है और विरोध भी करता है.

जाहिर है कि तब की सामाज में जो आक्रोश लोगों में था, अमिताभ बच्चन ने अपनी फिल्मों में इसे प्रस्‍तुत किया. जहां राजेश खन्ना की फिल्मों में मंहगे सेट, बाग-बगीचे- गाड़ियां, खूबसूरत लोकेशन्स, सुंदर कॉस्ट्यूम और रोमांटिक गाने हुआ करते थे, वहीं अमिताभ की फिल्मों में उनका किरदार कभी झोपड़ियों में रहता है तो कभी फुटपाथ में सो जाता है, भूख से लड़ता है. साथ ही मैले कुचेले कपड़े पहनता है जिनमें पैबंद लगा है, लेकिन वो दुखी नहीं है बल्कि इन सभी बातों को चुनौती दे रहा है. जहां राजेश खन्ना इलिट, कॉलेज गोइंग लड़के लड़कियों की पसंद थे वहीं अमिताभ ने अपनी फिल्मों के जरिये कॉलेज गोईंग लड़कों से लेकर, रिक्शेवालों, कुलियों, मिल मजदूरों और सामान्य सरकारी कर्मचारियों तक के दिलों में बस गये.

अमिताभ की फिल्में तब के दौर में शुद्ध मसाला एक्शन फिल्में हुआ करती थीं जिसमें ड्रामा, एक्शन, कॉमेडी और रोमांस सब कुछ हुआ करता था. फिल्मों में किसी लीड अभिनेता द्वारा कॉमेडी किए जाने का ट्रेंड भी अमिताभ ने ही सेट किया. उनकी कॉमेडी सिक्वेंस की बात करें तो फिल्म अमर अकबर एंथोनी में शराब के नशे में शीशे के सामने खुद से बात करने वाला सीन काफी पॉपुलर हुआ था. वहीं नमक हलाल में नाले में बहता हुआ जूता उठाने का सीन, सब में अमिताभ खूब जमें, यही वो कारण थे जिसने अमिताभ को सही का महानायक अमिताभ बनाया.

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