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भाई साहब, कुछ भी बोलो...दमदार थी सरकार,

भाई साहब, कुछ भी बोलो...दमदार थी सरकार,
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एक यात्री ने जेब से मोबाइल फोन निकाला और इंटरनेट पर कांग्रेस के घोषणापत्र की खबर पढ़ने लगा। मोबाइल बंद कर जेब में डालते हुए साथ बैठे यात्री से बोला...सब ड्रामेबाजी है। दूसरे यात्री ने कहा, अरे...दादा, इतने कम समय में क्या होता है। पांच साल तो और मिलना चाहिए। दूसरे ने जवाब दिया, बात तो सही है जब ट्रेन पटरी पर सही दौड़ रही हो तो उसे बदलने की जरूरत क्या है। कांग्रेस पार्टी तो वंशवाद की राजनीति में लीन है और बाकी गठबंधन कर कुर्सी के जुगाड़ में लगे हैं। ये जो पब्लिक है...सब जानती है। इतने में कोलकाता के ही रवींद्रनाथ बोल पड़े, नोटबंदी का फैसला क्या सही था? इससे आम लोगों को कितनी परेशानियां झेलनी पड़ीं। भाजपा ने रोजगार देने, राम मंदिर बनवाने जैसे जो अन्य वादे किए थे, वे कहां तक पूरे हुए?

अभी दोनों के बीच चर्चा पूरी भी नहीं हुई थी कि ट्रेन देवदार और चीड़ के पेड़ों के बीच से होते हुए तीन बजे टुटू पहुंच गई। जैसे ट्रेन आगे बढ़ी, मैंने भी लोकसभा चुनाव की चर्चा शुरू कर दी। इतने में कोलकाता निवासी सारिका घोष बोलीं...भाई साहब कुछ भी बोलो, इस सरकार में दम तो था। विदेश में भी देश के नाम का डंका बजाया। जो चीन कभी आंखें दिखाता था, आज वह भी पाकिस्तान का खुलेआम समर्थन करने में कतरा है। आपने वह खबर तो पढ़ी ही होगी, जिसमें मसूद अजहर को लेकर चीन के रुख बदलने की बात कही गई है। इतने में अन्य यात्री प्रसन्नचित दास चर्चा में शामिल होते हुए बोले...पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब भी तो दिया है। म्यांमार में भी तो सर्जिकल स्ट्राइक की थी। इससे पहले की सरकारों में कहां ऐसे फैसले लिए जाते थे।

3:15 बजे कैथलीघाट में सोलन से आने वाली ट्रेन को रास्ता देने के बाद हमारा आगे का सफर शुरू हुआ। सफर के बढ़ने के साथ कुछ और यात्री भी चर्चा में शामिल हो चुके थे। उनमें से कोशिगत नाम के यात्री ने कहा-कांग्रेस दल का नेतृत्व भी कहां अच्छा है। कांग्रेस को तो मुद्दे तक भुनाने नहीं आ रहे हैं। बस वंशवाद चला हुआ है। भई...और भी तो लीडर हैं उन्हें कमान दो, तभी कुछ हो सकता है। वैसे भी इस मोदी सरकार को पांच साल और मिलने चाहिए, तभी कुछ कहा जा सकेगा कि उन्होंने क्या किया और क्या नहीं कर पाए।

गुजरात के गिरीश बोले, गठबंधन के सहारे जो सत्ता हासिल करना चाहते हैं वह देश हित के बारे में क्या सोचेंगे। गठबंधन वाली सरकारों की क्या हालत होती है यह सब जानते हैं। तभी निर्मल त्रिवेदी बोल पड़े...हमारे लिए देश सर्वोपरि है। हम तो देशहित की बात करने वाले को ही वोट देंगे। ट्रेन शिमला से 64 सुरंगें पार करते हुए 5:37 बजे सोलन पहुंची। हमने भी यहां अपनी चर्चा का विराम दिया और कुछ यात्रियों के साथ हम भी उतर गए। ट्रेन ने थोड़ी रुकने के बाद आगे का सफर शुरू कर दिया।

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