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भाजपा को अपने मूल मुद्दों की ओर लौटना होगा, ईसाईकरण, राम मंदिर, हिन्दुओं के साथ सरकारी दुर्व्यवहार, गो हत्या, कश्मीरी पण्डित, गंगा..

भाजपा को अपने मूल मुद्दों की ओर लौटना होगा, ईसाईकरण, राम मंदिर, हिन्दुओं के साथ सरकारी दुर्व्यवहार, गो हत्या, कश्मीरी पण्डित, गंगा..
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तीन राज्यों में भाजपा की पराजय ने बहुत कुछ साफ कर दिया है। सीधे सीधे कहें तो जनता चाहती क्या है, यह साफ दिख गया है। लोकतंत्र में विजय का एक ही मूलमंत्र है कि आप अपने वोटर के प्रति समर्पित रहें, यदि रहें तो आपको कोई पराजित नहीं कर सकता।

भाजपा की छवि स्पष्ट रूप से हिन्दुत्व वाली ही है। वह चाहे जितना भी तमाशा कर ले उसकी यह छवि मिटने वाली नहीं। मोदी भारत को अमेरिका बना दें, या हिंदुत्व के सारे मुद्दों को छोड़ दें तब भी हिंदुत्व विरोधी लोगों का वोट भाजपा को नहीं मिलेगा। इसी हिंदुत्व के नारे पर भाजपा आयी थी, और इसी नारे पर आगे भी आएगी। इस बीच मे नई बात बस यह है कि कांग्रेस ने दलितवाद के रूप में हिंदुत्व की काट खोज ली है। कांग्रेस और उसके वैचारिक सहयोगी, दलितों के मन मे शेष हिंदुओं के प्रति तिरस्कार का भाव भरने में सफल होते जा रहे हैं। वे सवर्णो को पिछड़ों का शत्रु सिद्ध करने में सफल हो रहे हैं। वे इसमें जितने ही सफल होंगे, सनातन और भाजपा दोनों का उतना ही नुकसान होगा। मध्यप्रदेश और राजस्थान दोनों स्थानों पर मायावती की बसपा ने अच्छा खासा मत प्राप्त किया है, जो कथित दलितों की राजनैतिक सोच बता रहा है।

भाजपा ने इससे बचने के लिए जो किया वह और बचकाना था। sc, st एक्ट पर कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध अध्यादेश ला कर मोदी समझे कि वे इन कथित दलितों को मना लेंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। असल मे जिसे हिंदुत्व से घृणा है, उसके लिए मोदी सोने का महल बना कर दे दें, तब भी वह उन्हें वोट नहीं देगा। उसके दिमाग मे यह कचड़ा भर दिया गया है कि सारे हिन्दू उसके दुश्मन हैं और लगे हाथ भाजपा भी दुश्मन ही है। इसके पीछे एक बड़ा कारण है। यदि किसी सवर्ण से किसी दलित का एक झगड़ा होता है तो कांग्रेस और कांग्रेस पोषित मीडिया उसे पूरे देश का सबसे चर्चित मुद्दा बना देती है, और पूरे विश्व भर में हल्ला हो जाता है कि सवर्ण दलितों पर अत्याचार कर रहे हैं। पर हर राज्य में हर महीने दलितों और मुश्लिमों के सैकड़ों झगड़े होते हैं और भाजपा उन्हें मुद्दा नहीं बना पाती। भाजपा की असली हार यही है। भाजपा को इसकी काट ढूंढनी ही होगी।

भाजपा कांग्रेस की इस विभाजनकारी षड्यन्त्र को ही मुद्दा बना ले तो उसका काम बन सकता है। आम जनता तक बस इस बात को लेकर जाना होगा कि कांग्रेस हिंदुओं को तोड़ रही है। वह दलितवाद के नाम पर हिंदुओं को ही हिंदुओं के विरुद्ध भड़का रही है, और इस तरह ईसाई मिशनरियों का काम आसान कर रही है। दुर्भाग्य से भाजपा ने अबतक यह काम नहीं किया है। भाजपा ने जितना ध्यान राहुल के ब्राह्मण होने/न होने पर लगाया, उसका आधा भी कांग्रेस के ईसाई मिशनरियों के सम्बंध को उजागर करने पर लगाया होता तो कांग्रेस देश की राजनीति में वापसी नहीं कर पाती। वैसे यह काम अबतक नहीं हुआ तो आगे हो सकता है, समय अभी निकला नहीं है।

कुछ और बातें पूर्णतः स्पष्ट हो गयी हैं। भाजपा चाहे जितने भी तमाशे कर ले, मुश्लिम वर्ग उसको वोट नहीं देगा, ईसाई उसे वोट नहीं देंगे। फिर उनके अंदरूनी मामलों में टांग फँसा कर समय नष्ट करने की क्या आवश्यकता है? मुझे लगता है जितना तमाशा तीन तलाक पर हुआ उससे आधी मेहनत में हिन्दू मैरेज एक्ट में सुधार हो गया होता।

ईसाई सदैव कांग्रेस के साथ ही रहेंगे, क्योंकि कांग्रेस के शासन में ही उन्हें धर्मपरिवर्तन कराने की खुली छूट मिलती है। छतीसगढ़ में कांग्रेस की प्रचण्ड जीत के पीछे उनका कितना बड़ा योगदान है, यह सब समझ रहे हैं। पन्द्रह वर्ष के शासनकाल में उनको शक्तिहीन न कर पाना भी भाजपा की हार का एक मुख्य कारण है।

अब यदि भविष्य की बात करें तो भाजपा को अपने मूल मुद्दों की ओर लौटना ही होगा। ईसाईकरण, राम मंदिर, हिन्दुओं के साथ सरकारी दुर्व्यवहार, गो हत्या, कश्मीरी पण्डित, गंगा, ये मुद्दे ही भाजपा के प्राण है। इन्हीं पर टिके रहना होगा... दूसरे शब्दों में कहें तो भाजपा को घरवापसी करनी होगी।

एक बात और है। यह मात्र भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत नहीं है। यह जीत है ईसाई मिशनरियों की, यह जीत है नक्सली आतंकवादियों की, यह जीत है हिंदुत्व के दुश्मनों की। आपको नहीं लगता कि छतीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद ईसाई मिशनरियां सौ गुनी शक्ति लगा कर बनवासियों को अपना शिकार बनाएंगी? क्या आपको नहीं लगता कि वहाँ पिछड़ों के मन मे और जहर भरा जाएगा?

इससे बचना ही होगा, मोदी के सिवाय अन्य कोई विकल्प नहीं। तमाम असहमतियों के बाद भी उन्हें ही चुनना होगा। तबतक, जबतक उनसे अच्छा विकल्प नहीं मिल जाता। और राहुल कभी भी मोदी के विकल्प नहीं हो सकते...

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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