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कृषि आज घाटे का सौदा है, 70 वर्षों के बाद आज भी कृषकों की हालत में कोई बड़ा सुधार देखने को क्यों नहीं मिला

कृषि आज घाटे का सौदा है, 70 वर्षों के बाद आज भी कृषकों की हालत में कोई बड़ा सुधार देखने को क्यों नहीं मिला
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भारत एक कृषि प्रधान देश है हमारे देश की 48 फ़ीसदी से अधिक जनसंख्या कृषि पर निर्भर है लेकिन आजादी के 70 वर्षों के बाद आज भी कृषकों की हालत में कोई बड़ा सुधार देखने को नहीं मिला।

कृषि आज घाटे का सौदा बन चुकी है यही कारण है है कि इंजीनियर का बेटा इंजीनियर डॉक्टर का बेटा डॉक्टर और नौकरशाह का वेटा नौकरशाह बनना चाहता है पर आज एक किसान का बेटा किसान बनना नहीं चाहता। शायद इसलिए अब महसूस किया गया कि इस ओर कुछ नवाचार युक्त और अभूतपूर्व कदम उठाने की आवश्यकता है।

इसी क्रम में सरकार ने कृषि निर्यात नीति को मंजूरी दे दी देश की इस पहली कृषि निर्यात नीति में 2022 तक कृषि उत्पादों के निर्यात को वर्तमान 38 अरब डालर से बढ़ाकर 60 अरब डालर करने का लक्ष्य रखा गया है। जिससे न केवल देश की आर्थिक विकास दर को गति मिलेगी बल्कि कृषकों की आय दुगनी करने में भी यह नीति सहायक सिद्ध होगी।

इस नीति में विशेष रूप से चाय,कॉफी,चावल के निर्यात को बढ़ाने की बात की गयी है। सच कहें तो यह तीनों ही जिंसें किसी प्रदेश विशेष का उत्पादन है यथा असम की चाय, बंगाल तमिलनाडु के चावल और कर्नाटक की कॉफी अतः इन उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन न केवल भारत बल्कि इनके समूचे क्षेत्र के किसानों की आर्थिक सामाजिक स्थिति को सुधारने में सहायक हो सकता है। यदि यह नीति सफल होती है तो आगामी वर्षों में कुछ अन्य प्रदेशों के उत्पादों को भी प्रोत्साहन दिया जाना लाभप्रद होगा उदाहरण स्वरुप मध्यप्रदेश में सोयाबीन का उत्पादन होता है चीन सोयाबीन का बड़ा आयातक है इसलिए सोयाबीन का निर्यात प्रोत्साहन कृषकों को तो फायदा दिलाएंगा ही बल्कि भारत चीन के मध्य उत्पन्न व्यापार घाटे को पाटने में भी सहायक होगा। इसके अलावा इस नीति से रोजगार के क्षेत्र में नए अवसर सृजन का रास्ता प्रशस्त हुआ है। चूंकि निर्यात में सहूलियतें होंगी तो जाहिर सी बात है कि उत्पादन बढ़ेगा तथा खाद्य प्रसंस्करण इकाईयों कि संख्या भी बढ़ेगी और जिंस के खेत से विदेश तक की राह में तमाम क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। लिहाजा हम सकते हैं कि यह कृषि नीति एग्रीकल्चर सेक्टर और आर्थिक विकास को नई दिशा देगी।

हालांकि इस नीति को सफल बनाने के लिए कुछ चुनौतियां भी है जिन से निपटना आवश्यक होगा। पहला, कृषि उत्पाद क्रय केंद्रों की संख्या में वृद्धि करनी होगी या फिर ऐसा ढांचा विकसित करना होगा जिससे किसान का उत्पाद उसके खेत या गांव से ही खरीदा जाए ताकि उसकी लागत और समय बचाया जा सके।

दूसरा, उत्पाद को लंबे समय तक संरक्षित रखने के उद्देश्य से कोल्ड स्टोरेजों की संख्या में बढ़ोतरी करनी होगी। इसके अलावा हमें खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की संख्या भी बढ़ानी होगी ताकि उत्पादों को कम समय में अधिक मूल्य पर बेच कर किसान को उसका वास्तविक लाभ दिलाया जा सके और कोल्ड स्टोरेज पर पड़ने वाले बोझ को कम किया जा सके।

अंततः यही कहा जा सकता है कि इस कृषि निर्यात नीति का बेहतर क्रियान्वयन रोजगार कृषि विकास और आर्थिक क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव तथा देश की चौमुखी विकास में सहायक हो सकता है।

सुमित यादव

रावगंज,कालपी

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