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जो शत्रु देश पिछले तीस वर्षों से देश पर प्रहार कर रहा है, और देश की मीडिया उसका लाइव प्रसारण करती है?

जो शत्रु देश पिछले तीस वर्षों से देश पर प्रहार कर रहा है, और देश की मीडिया उसका लाइव प्रसारण करती है?
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पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का भाषण भारत के लगभग हर समाचार चैनल पर लाइव चला। एक शत्रु देश, जो पिछले तीस वर्षों से देश पर प्रहार कर रहा है; जो भारत को आतंक की अग्नि में झोंक देने के लिए अपने देश का पचास प्रतिशत बजट व्यय करता है, उसका निर्लज्ज प्रधानमंत्री शांति चाहने का झूठा दावा करता है और देश की मीडिया उसका लाइव प्रसारण करती है? मैं सोच रहा हूँ क्या किसी देश की मीडिया सचमुच इतनी असभ्य और ग़ैरजिम्मेवार हो सकती है?

इमरान खान सीधे-सीधे भारत सरकार को "नफरत की सियासत" करने वाला बता रहे हैं; हँसते हुए अपने परमाणु अस्त्रों की धमकी देते हैं, और भारत की मीडिया इसे इस तरह प्रस्तुत कर रही है जैसे सत्तर वर्षों के इतिहास में शांति का प्रयास करने वाले वे प्रथम व्यक्ति हैं!

जिस आयोजन में हाफिज सईद और गोपाल चावला जैसे दो बड़े आतंकवादी शामिल होते हैं, उसी आयोजन के मंच पर इमरान खान अमन चाहने का निर्लज्ज दावा कर रहे हैं, और मूर्ख सिद्धू उनका गुणगान कर रहे हैं। क्या इससे अधिक हास्यास्पद बात भी कुछ हो सकती है?

इमरान कह रहे हैं "भारत एक डेग बढ़ाएगा तो हम दो डेग बढ़ाएंगे।" भारत को पाकिस्तान के बढ़ते डेगों का सत्य ज्ञात है। अटल जी ने एक डेग बढ़ाया तो उत्तर में पाकिस्तान ने कारगिल दिया। मनमोहन सिंह जी ने एक डेग बढ़ाया तो बदले में मुम्बई आक्रमण मिला। मोदी जी ने एक डेग बढ़ाया तो बदले में पठानकोट मिला। पाकिस्तान ने भारत के हर प्रयास का ऐसा ही उत्तर दिया है, फिर क्या कारण है कि मीडिया अब भी इमरान के झूठ को प्रसारित और महिमामंडित कर रही है? क्या मीडिया सचमुच इमरान पर भरोसा करती है, या वह टीआरपी के लिए पाकिस्तान के ऐसे "दो कदमों" का भी समर्थन करती है? मुम्बई आक्रमण के समय मीडिया ने जिस तरह भारतीय सैनिकों की स्थिति लाइव दिखा कर आतंकियों की सहायता की थी, उसके बाद यह मानने में कुछ भी गलत नहीं कि मीडिया टीआरपी के लिए मन ही मन ऐसे हमलों का इंतजार करती रहती है।

मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ बताया जाता है। मीडियाकर्मी स्वयं को बुद्धिजीवी वर्ग का हिस्सा घोषित किये हुए हैं। क्या किसी देश की बुद्धिजीविता इतनी ग़ैरजिम्मेवार हो सकती है कि वह राष्ट्र के सबसे बड़े शत्रु के छल का भी महिमामंडन करे? क्या मीडिया यह नहीं समझ पा रही है कि इमरान खान झूठ बोल रहे हैं, छल कर रहे हैं? क्या मीडिया नहीं जानती कि इमरान के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी पाकिस्तान से भारत में आतंकवाद फैलाने का प्रयास निरन्तर हो रहा है?

"हम भारत के लोग" सामान्य चर्चा में भारत के राजनेताओं को सबसे बुरा बताते हैं, उनके गैर जिम्मेवार व्यवहार की आलोचना करते हैं, पर इतने गैर जिम्मेवार तो भारत के नेता भी नहीं जितनी मीडिया हो गयी है। किसी पार्टी का कोई नेता यदि कभी राष्ट्र के सम्बन्ध में अनुचित बात कह दे तो शीघ्र ही उसकी पार्टी सफाई देने लगती है, और उसकी अपनी पार्टी के लोग ही उसकी आलोचना करते हैं। पर मीडिया खुल कर राष्ट्र की गरिमा के विरुद्ध आचरण करती है और लज्जित होने के स्थान पर गर्व करती है। क्या यह आचरण होता है एक लोकतांत्रिक देश के कथित चौथे स्तम्भ का?

कभी कभी लगता है हम विश्व की सबसे असभ्य और अमर्यादित मीडिया के साथ जी रहे हैं, जिसके लिए न राष्ट्र महत्वपूर्ण है न सत्य। उसके लिए महत्वपूर्ण है टीआरपी, उसके लिए महत्वपूर्ण है पैसा...

कभी कभी भारतीय चैनलों पर आमंत्रित कोई पाकिस्तानी पत्रकार भारतीय एंकर की धज्जी उड़ा जाता है, तो हम सब को बुरा लगता है। पर सच यही है कि ये इसी लायक हैं। इनका जो व्यवहार है, कोई भी इनका सम्मान नहीं करेगा।

भारतीय मीडिया ने अपनी विश्वसनीयता की हत्या कर दी है। यदि भारत को अपना भविष्य सुरक्षित रखना है, तो आतंकियों, नक्सलियों के साथ साथ इस अमर्यादित मीडिया को भी सुधारना होगा।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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