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हनुमान जी की महिमा:- ( अंजनी मिश्रा)

हनुमान जी की महिमा:-  ( अंजनी मिश्रा)
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हिंदू धर्म में हनुमान जी को सर्व शक्तिमान और प्रभु श्रीराम का परम भक्त माना जाता है । जो कि रामायण महाकाव्य जैसे महाग्रंथ के प्रमुख पात्र से एक है । ऐसी अनुश्रुति है कि हनुमान जी, भगवान शंकर के ग्यारहवें अवतार थे । जिन्हें रुद्रावतार भी कहा जाता है । हनुमान जी का शरीर वज्र की भांति बलशाली और मजबूत है, इसलिए उन्हें बजरंगबली भी कहा जाता है । हनुमान जी को सात चिरंजीवियों में से एक गिना जाता है । ऐसा कहा जाता है कि वह सभी कला में माहिर है । बुद्धिजीवियों में सबसे विद्वान और वीरों में महावीर, हनुमान अपने पराक्रम और विद्वता के लिए प्रसिद्ध है । वह अपने शरीर को चींटी की तरह छोटा भी कर सकते हैं और एक पर्वत की भांति विशाल भी बना सकते हैं । वह एक छलांग में हिंद महासागर को पार करके रावण की लंका तक जा पहुंचे थे । इस प्रकार उनका पराक्रम और उनका ज्ञान चर्चित रहा है । हनुमान जी ने भगवान श्रीराम की मित्रता सुग्रीव से करवाई थी । सब ने मिलकर लंका पर विजय प्राप्त करने में भगवान श्रीराम की सहायता की थी, और राक्षसों का मर्दन किया था । इसका उल्लेख रामायण में मिलता है ।

रामायण में वर्णित हनुमान जी का रूप- उनका मुख वानर समान और शरीर मानव समान है । शरीर अत्यंत बलिष्ठ और वज्र समान है । हनुमान जी जनेऊ धारण करते हैं तथा केवल लंगोट प्रयोग करते हैं । मस्तक पर स्वर्ण का मुकुट और शरीर पर कुछ आभूषण धारण करते हैं । हनुमान जी की पुंछ वानर समान लंबी है और अस्त्र में गदा का प्रयोग करते हैं ।

हनुमान जी के पिता का नाम केसरी था, इसलिए उन्हें केसरी नंदन कहा जाता है । पवन देव के मुंह बोले पुत्र होने की वजह से मारुति नंदन भी कहा जाता है । मारुति अर्थात पवन अर्थात वायु, इसलिए उन्हें मारुति नंदन कहा जाता है । महाबली हनुमान को महावीर नाम से भी जाना जाता है । सभी संकट से पार लगा देते है, इसलिए संकट मोचन कहा जाता है । हनुमान जी को बालाजी और हनुमते नाम से भी जाना जाता है ।

हनुमान जी द्वारा सूर्य देव का भक्षण:-

शास्त्रों में इस कथा का प्रसंग आया है कि जब हनुमान जी शिशु अवस्था में थे और उनकी माता जंगल में फल लाने के लिए गई थी । हनुमान जी को भूख लगी और वह सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने के लिए आकाश में उड़े । जब सूर्य को ग्रहण करने के लिए निकट पहुंचे, उसी समय राहु सूर्य को ग्रहण करने के लिए आया था । हनुमान जी को देखकर सोचा- कोई दूसरा राहु है और भयभीत होकर चुपचाप भाग गया । इंद्रदेव के पास जाकर प्रार्थना की कि मुझे अपनी क्षुधा समाप्त करने के लिए आपने चंद्र और सूर्य दिए थे । आज जब सूर्य को ग्रहण करने गया तो वहां कोई दूसरा राहु उपस्थित था । इस बात से इंद्रदेव भयभीत हो गए और वह सूर्य के पास जाकर असलियत जानना चाहते थे । जब वहां गए तो देखा हनुमान जी सूर्य को ग्रहण करने जा रहे थे । उन्होंने अपने वज्र से हनुमान जी पर आक्रमण कर दिया । वज्र की चोट से हनुमान जी पृथ्वी पर एक पहाड़ की चोटी पर जा गिरे और मूर्छित हो गए । पवन देव उन्हें धरती पर मूर्छित पड़े देखें तो उन्होंने क्रोधित होकर पूरी सृष्टि की वायु को रोक दिया । जिससे सृष्टि में हाहाकार मच गया और कोई भी श्वास लेने में सक्षम नही था । भयभीत होकर सुर, असुर, किन्नर, यक्ष सभी ब्रह्मा जी के पास सहायता के लिए गए । ब्रह्मा जी सभी को लेकर पवन देव के पास गए, और असली कारण पूछा- पवन देव, हनुमान जी को गोद में लिए उदास अवस्था में बैठे हुए थे । ब्रह्मा जी ने हनुमान जी को पुनर्जीवित कर दिया । तब जाकर पवन देव ने वायु संचार किया और सृष्टि का कार्य प्रारंभ हुआ । वज्र की चोट से हनुमान जी की ठुड्डी तनिक टेढ़ी हो गई, ठुड्डी को संस्कृत में हनु कहते हैं । इसी वजह से हनुमान नाम पड़ा । हनुमान जी के शरीर पर वज्र का कोई खास असर नहीं हुआ । वज्र की तरह कठोर शरीर की वजह से बजरंग बली नाम पड़ा । सभी देवी देवता हनुमान जी को अमोघ वरदान दिए । ब्रह्मा जी के आशीर्वाद से किसी भी शस्त्र का कोई असर नहीं होगा । वरुण देव ने पाश और जल से सदा सुरक्षित रखा । यमदेव ने निरोग और चिरंजीवी रहने का आशीर्वाद दिया ।

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