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पुरुषोत्तम मास पौराणिक महत्व, क्या करें और क्या न करें

पुरुषोत्तम मास पौराणिक महत्व, क्या करें और क्या न करें
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अधिक मास को पुरुषोत्तम या मल मास, अधिमास, मलिम्लुच, संसर्प, अंहस्पति मास भी कहा जाता है. सौर वर्ष और चंद्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए प्रत्येक तीसरे वर्ष में एक चन्द्रमास की वृद्धि कर दी जाती है इसी को अधिक मास कहा जाता है. इस वर्ष 16 मई 2018 ज्येष्ठ माह से अधिक मास का आरंभ होगा और 13 जून 2018 को ज्येष्ठ अधिक मास को समाप्त होगा.
भारतीय ज्योतिष गणना अनुसार हर तीसरे वर्ष एक अधिक माह आता है, अर्थात जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास कहलाता है. शास्त्रों के अनुसार इस माह को विशेष महत्वपूर्ण माना गया है.
अधिक मास कब आता है
ऐतरेय ब्राह्मण, तैतरीय संहिता ऋग्वेद, अथर्ववेद इत्यादि ग्रंथों में अधिक मास का उल्लेख प्राप्त होता है. अधिक मास एक खगोलीय गणना है जिसके अनुसार सूर्य लगभग 30.44 दिन में एक राशि पूर्ण करता है व यह सूर्य का सौर माह है. इसी प्रकार बारह महीनों का समय जो लगभग 365.25 दिन का है, एक सौर वर्ष होता है, तथा चंद्र माह 29.53 दिनों का होता है तो चंद्र वर्ष में 354.36 दिन के करीब होते हैं. इस तरह दोनों के कैलेंडर वर्ष में लगभग 10.87 दिन का फर्क आ जाता है तथा तीन वर्ष में यह अंतर एक माह का हो जाता है. इसलिए इस समय के अंतर को दूर करने के लिए हर तीसरे वर्ष एक अधिक मास का नियम बनाया गया है.
अधिक मास में क्या करें और क्या न करें
अधिक मास में व्रत, दान, पूजा, हवन, ध्यान करने का विधान निश्चित किया गया है. ऐसा करने से पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है और पुण्य प्राप्त होता है. भागवत पुराण तथा अन्य ग्रंथों के अनुसार पुरुषोत्तम मास में किए गये सभी शुभ कर्मो का कई गुना फल प्राप्त होता है. इस माह में भागवत कथा श्रवण तथा तीर्थ स्थलों पर स्नान एवं दान का खूब महत्व है.
शास्त्रों के अनुसार इस मास में ‍भगवत गीता, श्री कृष्ण कथा वाचन और विष्‍णु भगवान की उपासना कि जाती है. पुरुषोत्तम मास में कथा का पढन एवं श्रवण करने से धन-वैभव में वृद्धि होती है तथा शुभ फलों की प्राप्ति होती हैं. इस मास में भूमि पर शयन तथा एक समय भोजन करना चाहिए. इस माह में दीप दान भी करना चाहिए. इस माह में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य, शुभ एवं पितृ कार्य वर्जित माने जाते हैं.
पुरुषोत्तम पौराणिक महत्व
हिंदु धर्म अनुसार तिथि-वार, नक्षत्र तथा समस्त माह के कोई न कोई देवता एवं स्वामी रहे हैं. किंतु अधिक मास का कोई स्वामी नही था इसलिए वह विष्णुलोक जाकर भगवान विष्णु से प्रार्थना करता है कि, हे प्रभु मुझे भी किसी स्वामी या देव का सानिध्य प्रदान किजिए उसकी विनती सुन.
श्री विष्णु उसे वरदान देते हुए कहते हैं कि 'हे अधिक मास मै तुम्हें अपना आशीर्वाद और सानिध्य प्रदान करता हुँ तथा तुम मेरे नाम 'पुरुषोत्तम' से पुकारे जाओगे. तभी से मलमास का नाम पुरुषोत्तम मास हुआ तथा भगवान विष्णु इसके स्वामी हुए.
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