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'नीरज' का आज 94वां जन्मदिन...76 बरस बीत गए लिखते-लिखते...

नीरज का आज 94वां जन्मदिन...76 बरस बीत गए लिखते-लिखते...
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'नीरज' का जन्म 4 जनवरी 1925 को आगरा में हुआ। गोपालदास महाकवि होने के साथ-साथ एक शिक्षक और फिल्मों के गीतों की लेखक भी हैं। यही वजह है कि सरकार ने इन्हें पहले पद्म श्री और फिर पद्म भूषण से नवाजा। इन्होंने 'नई उमर की नई फसल' 'मेरा नाम जोकर, 'शर्मीली' और 'प्रेम पुजारी' जैसी फिल्मों के लिए गाने लिखें। महाकवि गोपालदास नीरज का स्वास्थ्य पिछले दिनों खराब हो गया था। इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

गोपालदास नीरज...कवि नहीं, चलता-फिरता महाकाव्य कहा जाए तो गलत नहीं होगा। उम्र के जिस पड़ाव को जीवन की संध्या कहा जाता है, नीरज उस उम्र में भी रोज कुछ नया रच रहे हैं...गुरुवार को वह अपना 93वां जन्मदिन मनाएंगे। जिन्हें भी यह लगता है कि नीरज बूढ़े हो गए हैं, उम्र हो चली है, अब शरीर साथ नहीं देता...उन सबको वह अपने अंदाज में जवाब देते हैं कि, 'आत्मा के सौंदर्य का शब्दरूप है काव्य...मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य...।' नीरज आज भी लिख रहे हैं और कहते हैं कि उनके कलम की स्याही और मन के भाव तो सांसों के साथ ही खत्म होंगे। अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर 'आंचल अवस्थी' से हुई बातचीत में नीरज ने पूरे हो चुके सपनों से लेकर अधूरी ख्वाहिशों तक के बारे में बात की और नई रचनाएं सुनाकर यह भी जता दिया कि अभी तो उनमें बहुत सारा काव्य बाकी है...

76 बरस बीत गए लिखते-लिखते...

गोपालदास नीरज की जितनी उम्र है, उसमें तीन चौथाई हिस्सा तो उनके अनुभवों का है। उन्होंने 17 साल की उम्र में लिखना शुरू किया था और आज तक लिख रहे हैं। 76 बरस बीत गए लिखते-लिखते...। इतने लम्बे अरसे को युग कह दिया जाए तो गलत नहीं होगा। इस दौरान नीरज काव्य मंचों से लेकर फिल्मी गीतों की दुनिया तक का सबसे बड़ा नाम बने। फिल्म 'जोकर' के गीत 'ए भाई जरा देख के चलो...' से पहचान मिली और उसके बाद 60-70 के दशक में रोमांटिक गीतों का दूसरा नाम 'नीरज' हो गए। लगभग एक साल पहले तक कवि सम्मेलनों में मंचों पर नीरज अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं, हालांकि अब स्वास्थ्य कारणों से मंचों पर जाना बेहद कम हो गया, हालांकि काव्य सृजन आज भी जारी है।

60 का दशक सबसे खूबसूरत-

नीरज जब गुजरे दौर के पन्ने पलटते हैं तो उन्हें 60 का दशक जरूर याद आता है। कहते हैं, ये बड़ा सुनहरा वक्त था। बच्चन जी को सुनकर उन्होंने लिखना सीखा था और उनके साथ काव्य मंचों पर जाना नीरज के लिए किसी सौभाग्य से कम नहीं था। हालांकि नीरज इस बात को कहने से गुरेज नहीं करते कि बाद के दशकों में काव्यमंच बिजनेस का जरिया बन गए।

कारवां गुजर गया...जीवन की सच्चाई-

नीरज ने सैकड़ों गीत लिखे और उन गीतों का जादू लोगों के सर चढ़कर बोला। मगर अपने लिखे जिन गीतों को वह अपने सबसे करीब पाते हैं, उनमें 'कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे...' और 'ए भाई जरा देख के चलो...' हैं। नीरज कहते हैं कि इन दोनों में जीवन दर्शन छिपा है।

खुली किताब हूं, आत्मकथा क्यों लिखूं-

नीरज का व्यक्तिगत जीवन भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। मगर जब यह कहानी लिखने की बात आती है तो वह सिरे से खारिज कर देते हैं। आत्मकथा लिखने के सवाल पर वह कहते हैं मैं खुली किताब हूं, लोग मेरे बारे में सब जानते हैं तो आत्मकथा लिखने की जरूरत क्या है।

आजकल लिख रहे हैं हाइकू और दोहे-

नीरज आजकल ज्यादा वक्त अलीगढ़ में बिताते हैं। वहां रहकर वह हाइकू और दोहे लिख रहे हैं। बातचीत के दौरान उन्होंने फोन पर ही कुछ हाइकू सुना दिए...

'वो हैं अकेले

दूर होके खड़े

देखे जो मेले।'

'वो है निराला

जिसने पिया सदा

विष का प्याला।'

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