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2018 में इन 8 राज्यों में विस चुनाव, क्या बदलेगी रणनीति...

2018 में इन 8 राज्यों में विस चुनाव, क्या बदलेगी रणनीति...
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नई दिल्ली । साल 2018 में चार बड़े राज्यों सहित आठ राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। कर्नाटक, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनावी रणभेरी बजेगी। कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है। कांग्रेस के पास खोने के नाम पर सिर्फ कर्नाटक है जबकि भाजपा के शेष तीनों बड़े राज्य घोर एंटी इन्कमबेंसी फैक्टर से ग्रस्त हैं। खेती-किसानी समस्या के चलते गुजरात के ग्रामीण इलाकों ने पहले ही इस आशय के संकेत दे दिए हैं। ऐसे में भाजपा को अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा।

गुजरात में अपने प्रदर्शन से उत्साहित कांग्रेस इन राज्यों में पूरा जोर लगाएगी। नव-निर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में अगर पार्टी एक जुट हो सकी तो इन राज्यों में सरकार के खिलाफ व्याप्त असंतोष को भुना सकती है। हालांकि भाजपा की सशक्त चुनावी मशीनरी और मोदी-शाह की जोड़ी से पार पाना बहुत मुश्किल होगा।

कर्नाटक में सिद्धरमैया के साथ कांग्रेस को अकेले येद्दुरप्पा पर बढ़त हासिल हैर्। ंहदू और लिंगायत समेत कई हथकंडों के बूते वे अपना आधार मजबूत करने में लगे हैं, लेकिन तब क्या होगा जब येद्दुरप्पा के साथ मोदी का कंधा भी जुड़ जाएगा। लड़ाई दमदार होगी। कांग्रेस दक्षिण के प्रवेश द्वार पर अपना दावा बरकरार रखना चाहेगी तो भाजपा इसमें सेंध लगाकर दक्षिण में घुसपैठ की जुगत में होगी। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा का शासन है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कई भाजपा के लंबे शासन की एंटी इन्कमबेंसी बनी हुई है तो राजस्थान में ये हाल ताजातरीन घटनाओं से हुआ है।

भाजपा अपने इन प्रदेशों को बचाने के लिए कुछ बड़ा खेल भी कर सकती है। तभी एक थ्योरी सामने आ रही है कि इन्हीं चुनावों के साथ लोकसभा 2019 के चुनाव भी करा लिए जाएं। इसके माध्यम से केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के बूते भाजपा इन तीनों राज्यों में अपने खिलाफ बने एंटी इन्कमबेंसी काट पाएगी। भाजपा के लिए ऐसा करना इसलिए भी जरूरी हो सकता है, क्योंकि 2014 में उसकी कुल लोकसभा सीटों में 85 फीसद इन् चार राज्यों से है।

2018 कांग्रेस का साल हो सकता है बशर्ते पार्टी 'वन ऑन वन' लड़ाई की रणनीति अपना ले। यानी हर चुनावी सीट के लिए राजग बनाम अन्य पर अमल किया जाए। इसके लिए राजग से इतर सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों को एकजुट करना होगा। मनाना होगा। यह मशक्कत भरा काम इसलिए है कि कुछ वरिष्ठ नेता ही इस योजना को अमलीजामा पहनाने की कूवत रखते है।

लोकसभा चुनाव में अगर राजग को पटखनी देनी है या उसे 282 से नीचे उस अंक तक ही समेटना है जहां गठबंधन अपरिहार्य हो जाए तो वन ऑन वन फार्मूले को लागू करना होगा। इसके लिए गैर राजग सभी दलों को एक छतरी के नीचे आना होगा और जिस प्रदेश में जिसका जनाधार है, राजग के मुकाबले केवल उसी का

उम्मीदवार खड़ा किया जाए। इससे ही भाजपा के विजय रथ को रोका जा सकेगा और मोदीशाह के करिश्मे को विपक्ष कुंद कर सकेगा। ये सब करना इतना आसान नहीं होगा। क्षेत्रीय दलों के अपने अहम टकराएंगे।

एक बार को उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और मायावती मिल भी सकते हैं लेकिन पश्चिम बंगाल में क्या होगा? तमिलनाडु में क्या होगा? हरियाणा और पंजाब सरीखे कई राज्यों में ऊहापोह की स्थिति बनेगी। इसमें कांग्रेस को सख्त निर्णय लेना होगा कि वह पश्चिम बंगाल में वाम दलों के साथ जाए या ममता बनर्जी का साथ पकड़े। फिलहाल नए साल में कड़े राजनीतिक फैसले लेते दिखाई दें तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए।

हर सवेरा धरती के अपनी धुरी पर सूर्य के चारों ओर घूमने की परिणति होता है। इसी प्रक्रिया के तहत कल यानी एक जनवरी, 2018 का सूर्योदय भी अपनी लालिमा के साथ निकलेगा। खगोल विज्ञान के तहत सब तय है, नियत है। फिर जब कोई चीज नई नहीं हो रही है तो हम सब इस 'नए सवेरे' के रूप में नए साल के इस्तकबाल को इतने उतावले क्यों हैं? दरअसल कोई भी दावा नहीं कर सकता कि भविष्य अतीत और वर्तमान से बेहतर होगा, लेकिन आने वाले काल खंड के साथ तमाम चीजों को अपने पक्ष में करने लायक सहूलियतें होती हैं।

हम भूत और वर्तमान की त्रुटियों से सबक लेते हुए अपने भविष्य को संवार सकते हैं। जिस दिन से ही हम ऐसा करना शुरू कर दें, समझा जाना चाहिए हमारे लिए वही नए साल की शुरुआत है। नया साल तो एक अवसर देता है। एक मौका है। खुद में, समाज में और देश में बदलाव लाने का सुधार करने का। तमाम सामाजिक, आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा जनमानस इस मौके को चुनौती की तरह ले सकता है। इन चुनौतियों से निजात पाकर और नई उम्मीदें संजोकर, नए मुद्दे गढ़कर नए साल को सही मायने में चरितार्थ किया जा सकता है।

हालात इशारा कर रहे हैं कि नए साल में राजनीतिक सरगर्मियां जोरों से रहेंगी। विरोधी खेमे को मात देने के लिए राजनीतिक रणनीतियों में 360 डिग्री का बदलाव देखा जा सकता है।

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