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पत्रकार बनना तो आसान, पर पत्रकारिता करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य

पत्रकार बनना तो आसान, पर पत्रकारिता करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य
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जब तलक पत्रकार है तब तक यह देश और समाज सुरक्षित है

क्या सोचा किसी ने कैसे मनेगी दिवाली यह खुशहाली एक पत्रकार के आंगन में

अमन बैच देंगे चमन बैच देंगे कलम के सिपाही अगर सो गए तो वतन के पुजारी व करप्ट नेता वतन बेच देंगे

अयोध्या।फैज़ाबाद, वासुदेव यादव
आजकल पत्रकार बनना तो बड़ा आसान है, पर पत्रकारिता करना उतना ही चुनौतीपूर्ण कार्य है। एक जिम्मेदार पत्रकार को अपने चरित्र की रक्षा करने के साथ बेगुनाही के सबूत भी जुटाने होते है। घटनास्थल पर कवरेज करने के दौरान पत्रकारों की जिंदगी खतरे की जद में रहती है। पत्रकारिता का धर्म निभाना एक जोखिम भरा कार्य है। लेकिन जनता को हकीकत से परिचित कराने वाले पत्रकार खुद कितने खतरों का सामना करते है , इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है। सरकार को पत्रकार की मांग पर गंभीरता से विचार करना चाहिये।
लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ माने जाने वाला पत्रकारिता जगत आन वान और शान के लिये जाना जाता है। पत्रकारों का रसूक समाज में किसी से छिपा नहीं है। मंत्री हो या नेता, नौकरशाह हो या सरकारी अधिकारी पत्रकारों के इर्द- गिर्द ही रहते है। खबरों में सुर्खियां बनने वाले तमाम लोग पत्रकारों को विशिष्ट आदर सम्मान देते है। यही कारण है पत्रकारिता के पेशे में आने के लिये युवाओं में क्रेज बना हुआ है। युवा वर्ग पत्रकार बनने के लिये आतुर रहते है। पत्रकारिता के क्षेत्र में पत्रकारों को नेताओं और मंत्रियों की प्रेस कांफ्रेस में तो आदर सम्मान मिलता है। लेकिन दंगों और झगड़ा फसाद की कवरेज करने के दौरान पत्रकारों को अपनी जान जोखिम में डालकर घटना स्थल पर मौजूद रहना पड़ता है। घटना स्थल से फोटो और वीडियों लेने पड़ते है। पत्रकार इस दौरान उन असामाजिक तत्वों के बीच अकेला होता है। यदि मौके पर पुलिस होती है तो पत्रकारों की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं होता है। लेकिन यदि पुलिस के पहुंचने से पूर्व ही पत्रकार मौके पर पहुंच जाये और असामाजिक तत्वों के फोटो और वीडियो बनाने लगे। तो आप खुद अंदाजा लगा सकते है कि पत्रकार किन परिस्थितियों के बीच किन हालातों से गुजर रहा है। वो असामाजिक तत्व अपने सबूत मिटाने के लिये पत्रकार पर हमला भी बोल सकते है। ऐसे में आपकों सबूत बचाने के साथ-साथ खुद की जिंदगी को बचाना जरुरी हो जाता है। इन सब विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी समाज में सच दिखाने की चाहत भी पत्रकारों को इस पेशे में बने रहने का हौसला प्रदान करती है।
पत्रकारिता वो जज्बात हैं जिनके लिए एक पत्रकार अपना घर द्वार खाना पीना बच्चे सब को छोड़कर अपनी जिंदगी दांव पर लगाता है और दिन हो चाहे रात रविवार हो यह त्यौहार उसकी खुशियां खबरों में ही दिखाई पड़ती समाज का दर्पण कहा जाने वाला यह महत्वपूर्ण स्तंभ सांप्रदायिक सौहार्द को बरकरार रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है दोनों पक्षों को संतुष्ट रखते हुए समझाता शासन और प्रशासन के बीच कड़ी बन गंभीर मसलों में सहयोग कर प्रशासन को सदैव अपनी लेखनी विजुअल वीडियो या वायरल वीडियो वायरल फोटो के प्रकोप से बचाता और समझौता कर शांति व्यवस्था कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, परंतु शासन हो या प्रशासन पत्रकार को आवश्यकता अनुसार उपयोगकर्ता खुद हीरो बन जाता परंतु कभी सोचा एक पत्रकार कैसे अपना जीवन यापन करता है किन किन समस्याओं से जूझ रहा है ।
इसके बारे में कभी किसी ने नहीं सोचा और यह बात सच है जब तक समाज का दर्पण समाज के साथ मजबूती के साथ खड़ा है। तब तक ही समाज सुरक्षित है वरना यह चंद स्वयंभू बेच देंगे देश को खैर पत्रकारिता वो जज्बात हैं वह समर्पण हैं वह देश भक्ति है जो अपनी जान पर खेलकर अपने देश और समाज के लिए समर्पण भाव से सिर्फ खबर के लिए जीते हैं और खबर के लिए ही मरते हैं। जरा सोचो कुछ ही दिन बचे हैं खुशहाली का त्यौहार है सबके घरों में दिए जलेंगे क्या किसी ने सोचा कि एक पत्रकार जो समाज हित में 24 घंटे समर्पित रहता है क्या है उसके हालात इस दिवाली मैं आखिरकार कैसे मनाएगा। वह दिवाली क्या सोचा किसी समाज के शासन के प्रशासन के नुमाइंदों ने नहीं ना सोचा है ना कभी सोचेंगे क्योंकि वह जानते हैं। एक ईमानदार व आदर्श पत्रकारिता एक जज्बात हैं उन्हें तो छपना है उन्हें तो दिखना है आज भी कल भी कोई ना कोई उन्हें जरूर दिखाता रहेगा और वह दिखते रहेंगे एक पत्रकार की पीड़ा को न कोई समझा है कोई समझेगा जरा सोचो जिस दिन पत्रकार बहिष्कार करेगा तो क्या होगा ??

जय हो जय हिंद जय भारत
अमन बेच देंगे चमन बेच देंगे
कलम के सिपाही अगर सो गए तो
वतन के पुजारी वतन बेच देंगे
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