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बेनी की सपा में वापसी ! यूपी की चुनावी बिसात में क्या गुल खिलाएगी -मणेन्द्र मिश्रा ‘मशाल’

    

देश की सियासत के मौजूदा दौर में सबसे मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रप मुलायम सिंह यादव की राजनैतिक समीकरण साधने का गुण हमेशा कुछ नया ही गुल खिलाता है.नब्बे के दशक में जनता दल के विभाजन से उपजी रिक्तता को भरने और समाजवादी सोच के लोगों को संगठित करते हुए 1992 में पार्टी की स्थापना के बाद तीन बार यूपी का मुखिया होने के साथ वर्तमान में समाजवादी पार्टी का सत्ता में होना एवं युवा नेतृत्व अखिलेश यादव को कमान देते हुए सूबे की राजनीति में अपना सिक्का मजबूत करने के कौशल के राजनैतिक विरोधी भी कायल है.ऐसे में लम्बे राजनीतिक संघर्ष और जीवनयात्रा में कभी भी अपने सहयोगी रहे लोगों के प्रति हमेशा उदार भाव बनाये रखना समकालीन दौर में दुर्लभ ही है.इसी का परिणाम है कि समाजवादी पार्टी छोड़कर जाने वाले बेनी प्रसाद वर्मा को भी एक समय बाद मुलायम सिंह के व्यक्तित्व का बखूबी एहसास हुआ.जिसके फलस्वरूप बीते कुछ वर्षो में बेनी बाबू के अनेक बयानों को नजरअंदाज करते हुए उन्हें फिर से ससम्मान सपा का हिस्सा बनाकर अपनी सहृदयता का ही परिचय दिया.साथ ही आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी की स्थिति को मजबूत करने की दिशा में संतुलन साधने का कार्य भी किया.

बेनी प्रसाद वर्मा का कांग्रेस से मोहभंग और समाजवादी पार्टी में घर वापसी की घटना ने यूपी की सियासत में नया रंग भर दिया है.इसी के साथ सूबे के विधानसभा चुनाव की तैयारियों और जोड़-तोड़ ने नया मोड़ ले लिया.उत्तर प्रदेश की जातीय आधारित राजनीति का सच सबको पता है.चुनावी गणित साधने के लिए जातीय संतुलन बैठाना राजनैतिक दलों की मजबूरी हो गयी है. 39.9% वाले पिछड़ी जाति में यादव 8.7 प्रतिशत,कुर्मी 3.6% जबकि अन्य 27.6 प्रतिशत की तादात है.ऐसे में समाजवादी पार्टी जोकि पिछड़ों और मुसलमानों के वोट बैंक के आधार पर मजबूत हुयी है.उसमें नेता जी मुलायम सिंह यादव और बेनी बाबू के फिर से साथ आने से लगभग 12.3 प्रतिशत पिछड़े वोटों के बड़े हिस्से पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.जबकि 9.2 प्रतिशत ब्राह्मण वोट को प्रभावित करने में एशिया के सबसे बड़े पार्क जनेश्वर मिश्रा पार्क की स्थापना से ब्राह्मणों में सकारात्मक सन्देश गया ही है.आज़ादी के बीते कई दशकों में यूपी के विभिन्न राजनैतिक दलों में ब्राह्मणों की महत्वपूर्ण उपस्थिति के बाद भी राजधानी लखनऊ में कोई विशेष प्रतीक स्थल नही बन सका था.हालाँकि जनेश्वर मिश्र आजीवन लोहिया के आदर्शो पर चलते रहे जिसकी वजह से उन्हें छोटे लोहिया कहा गया.ऐसे में उन्हें किसी जाति विशेष से जोड़ना उचित नही जान पड़ता फिर भी इतने भव्य जैव विविधता वाले पार्क का प्रतीकात्मक महत्व चुनाव में आसानी से मिल सकता है.इसके अतिरिक्त नारायण दत्त तिवारी को समय समय पर विशेष महत्व देने के साथ उनके पुत्र को मंत्री दर्जा प्रदान करने एवं समाजवादी पार्टी के वर्तमान सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरे माता प्रसाद पाण्डेय के विधानसभा अध्यक्ष के रूप में मौजूदगी सपा के लिए चुनावी अंकगणित के हिसाब से बेहद मजबूत है.इसके अतिरिक्त पार्टी महासचिव पद पर अरविन्द सिंह गोप की ताजपोशी के साथ कैबिनेट में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलना और महाराणा प्रताप जयंती एवं पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के जयंती पर छुट्टी जैसे कदम छत्रिय जाति में सपा की स्थिति बेहतर करने में सहायक प्रतीत होते दिख रहे हैं.

बेनी प्रसाद वर्मा के समाजवादी पार्टी में वापसी से प्रतापगढ़, कौशाम्बी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली,उन्नाव,जालौन और फतेहपुर जैसे जिलों में कुर्मी मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं.जिसमें 30 से 32 सीटें विधानसभा की और आठ सीटें लोकसभा की शामिल हैं.पिछड़ी जाति की जनसँख्या में 15 प्रतिशत यादव और 9 प्रतिशत कुर्मी मत जीत की दृष्टि से विशेष मायने है. ऐसे में यदि 18.5 प्रतिशत मुस्लिम मतों का परम्परागत हिस्सा भी समाजवादी पार्टी के खाते में जाता है,तो भी समाजवादी पार्टी चुनाव में बेहतर स्थिति में रहेगी.

बीते चार वर्षो में जहाँ युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जाति-धर्म से ऊपर उठकर प्रदेश के सभी वर्गों के लिए अनेक जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से समाजवादी पार्टी के पक्ष में एक नया मतदाता वर्ग तैयार किया है,वही सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव परंपरागत वोट बैंक को साधने में सफल होते दिख रहे हैं.पार्टी स्थापना के अनेक साथियों का वापस आना साथ ही पुराने और नये कार्यकर्ता वर्ग में संतुलन साधने के क्रम में जहाँ एक ओर युवा मुख्यमंत्री को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी से युवाओं का पार्टी से जुड़ाव बेहतर किया गया है,वहीं पार्टी के वरिष्ठतम नेता और सांगठनिक कौशल के माहिर शिवपाल यादव को चुनाव प्रभारी बनाकर पुराने कार्यकर्ताओं से संवाद ठीक करने का कार्य रणनीतिक रूप से विशेष महत्व का है.

राज्यसभा में नामों के चयन को लेकर विचारमंथन का दौर जारी है साथ ही विधान परिषद की फेहरिस्त में चुनावी अंकगणित ठीक करने जैसी तैयारियाँ करते हुए समाजवादी पार्टी ने आगामी चुनाव में फिर से वापसी की दिशा में कमर कस लिया है.मंत्रिमंडल विस्तार की संभावित स्थिति से क्षेत्रवार कुछ असंतुष्टों को जगह मिलने की प्रबल संभावना बनी हुयी है.ऐसे में अखिलेश यादव के रूप में पार्टी और सरकार में सर्वमान्य एवं साफ़ सुथरी छवि का होना बड़े फायदे का है.शालीन और प्रभावशाली व्यक्तित्व के रूप में सूबे के मुखिया का जनसरोकार वाली कार्यशैली सत्ता वापसी की उम्मीदों को मजबूत बल दे रही हैं.विपक्ष में किसी नये चेहरे का अभाव और अखिलेश यादव का युवा होने के भी विशेष मायने हैं.समग्रता में यूपी की सामयिक राजनीति में बेनी प्रसाद वर्मा का समाजवादी पार्टी में शामिल होना और राज्यसभा में संभावित उम्मीदवार के रूप में चर्चा विधानसभा चुनाव की दृष्टि से बेहद अहम माना जा रहा है.साथ ही समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक मैदान के लिए मास्टरस्ट्रोक है.जिससे जहाँ एक ओर यूपी में कांग्रेस के अस्तित्व को संकट में ला दिए हैं,वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार पर हमला करने के लिए राज्यसभा में एक तेज तर्रार पुराने साथी की तलाश को भी पूरा कर लिया है.



                                    मणेन्द्र मिश्रा मशाल
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