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हिन्दू धर्म के संस्कारों मे निहित वैज्ञानिकता : एक अध्ययन – प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

हिन्दू धर्म के संस्कारों मे निहित वैज्ञानिकता : एक अध्ययन  – प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव
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हिन्दू धर्म एक वैज्ञानिक धर्म है. जो विज्ञान के अनुरूप अपना विकास करता है, वही शाश्वत होता है. इसिलए हिन्दू धर्म का एक नाम सनातन धर्म भी है. इस धर्म के संस्थापक ऋषियों और मुनियों ने बहुत अध्ययन और मनन के बाद इसकी स्थपाना की. स्थापना की नींव भी वैज्ञानिकता पर ही टिकी हुई है. चूँकि अपने प्रारंभिक काल में व्यक्ति के कार्य के अनुसार वर्ण विभाजन किया गया था. इसलिए हर वर्ण का व्यक्ति अपने कर्म के अनुसार ही अपना शारीरिक और मानसिक विकास करता था. सभी वर्णों के बीच में गजब का आपसी समन्वय प्राप्त होता है. उस समय व्यक्तिनिष्ठता का आभाव था, मनुष्य अपना हर कार्य समुदाय के परिप्रेक्ष्य में सम्पन्न करता था. हिन्दू धर्म में आज जो विसंगतियां दिखाई दे रही हैं, वह इस धर्म के लोगों के वैचारिक और मानसिक पतन का परिणाम है. इस धर्म के अधिकांश लोगों से त्याग की भावना का समाप्त हो जाना है.

अपने प्रारंभिक काल में हिन्दू समाज अपने नागरिकों को वैज्ञानिकता की शिक्षा संस्कारों के माध्यम से देता था. चूँकि जनता अधिक शिक्षित और परिपक्व नहीं थी. मैं उन संस्कारों को वैज्ञानिकता की कसौटी पर कसते हुए यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ. मेरा मानना है कि जब-जब धर्मों में निहित वैज्ञानिकता में ह्रास हुआ है, तब-तब सभी धर्मो का एक दूसरे से टकराव हुआ है. मैं अपने निजी अनुभव और अध्ययन के आधार पर यह कह सकता हूँ कि विश्व के सभी धर्म वैज्ञानिक हैं, बस अंतर केवल इतना है कि उनकी पृष्ठिभूमि अलग-अलग है. मसलन कोई धर्म सत्य का आचरण करने से मना नहीं करता है. कोई धर्म दुसरे के शोषण को प्रश्रय नहीं देता है. इसी प्रकार सभी अच्छाईयाँ हर धर्म में विद्यमान हैं.

हिन्दू धर्म में निम्नलिखित संस्कारों का वर्णन इसके समीचीन धार्मिक ग्रंथों में प्राप्त होता है. जो क्रमश: इस प्रकार हैं गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार, सीमंतोंनयन संस्कार, जातकर्म संस्कार, नामकरण संस्कार, निष्क्रमण संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, चूडाकर्म संस्कार, विद्यारम्भ संस्कार, कर्णवेध संस्कार, यज्ञोपवीत संस्कार, वेदारम्भ संस्कार, केशांत संस्कार, समावर्तन संस्कार, विवाह संस्कार, अंत्येष्टि संस्कार. अब मैं इन सोलह संस्कारों की वैज्ञानिकता के आधार पर विश्लेष्ण करूंगा.

. गर्भाधान संस्कार यह संस्कार पूरी तरह से वैज्ञानिक है. इस संस्कार के अनुसार इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य होता है कि वह मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ अपना एक वारिस धरती माता को सुपुर्द करे, जो इस संसार में उसके कार्यों को आगे बढ़ा सके, इस संसार के अपने सहकर्मियों का सहयोग कर सके. इसलिए इस संस्कार के द्वारा हिन्दू धर्म ने अपने अनुयायियों को यह बताने का प्रयास किया है कि स्त्री-पुरुष संबध पशुवत आचरण करने के लिए नहीं हैं. स्त्री-पुरुष संसर्ग सिर्फ संतानोत्पत्ति के लिए होना चाहिए. भोग के लिए नहीं. या भोग सीमित मात्रा में करना चाहिए. सम्भोग तभी करना चाहिए जब मन और चित्त प्रफुल्लित हो, शरीर में भी किसी प्रकार की व्याधि न हो. यदि सम्भोग करने के पूर्व स्त्री और पुरुष दोनों हर दृष्टिकोण से स्वस्थ नहीं होंगे, तो उसका प्रभाव संतति पर पड़े बिना नहीं रह सकता है. यह चिकित्सकीय विज्ञान द्वारा आज प्रमाणित हो चूका है.

२. पुंसवन संस्कार यह भी एक वैज्ञानिक संस्कार है. गर्भाधान संस्कार की अगली कड़ी है. आज मेडिकल विज्ञान यह कहता है कि तीन महीने के बाद स्त्री के गर्भ में जीव पड़ जाता है. उस जीव की संरक्षा और विकास की एक पूरी विधि होती है. पुंसवन संस्कार में वही प्रक्रिया धर्म के साथ जोड कर पूरी की जाती है. इस संस्कार में यह भी बताया जाता है कि स्त्री को किस प्रकार का भोजन और कितनी मात्रा में कब-कब करना चाहिए.

३. सीमांतों नयन संस्कार पहली संतान उत्पत्ति के समय गर्भपात होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. क्योंकि स्त्री का शरीर यदि भ्रूण के विकास के अनुरूप विकसित नहीं हो पाया, यदि गर्भवती स्त्री अपने स्वाभाव में परिवर्तन नहीं ला पायी, तो गर्भपात हो जाता है. गर्भवती स्त्री को इस समस्या से निदान दिलाने के लिए यह संस्कार दिया जाता है, इसमें स्त्री के उठने-बैठने, चलने, सोने, उठने आदि सभी की विधि होती है, जिसका अनुपालन करना प्रत्येक गर्भवती स्त्री के लिए आवश्यक होता है. आज जब मेडिकल साइंस ने इतनी प्रगति कर ली है. जिससे कुछ अज्ञात रह ही नहीं गया. आज की मेडिकल साइंस भी वही बात करती है, जो हमारे इस संस्कार में निहित है. यह संस्कार गर्भधारण के छठे या आठवें महीने होता है. यही वह महीना होता है, जब गर्भपात की अधिक संभावना होती है. या प्री मेच्योर डेलिवरी की सम्भावना होती है.

४. जातकर्म संस्कार यह संस्कार बच्चे के जन्म के पश्चात् किया जाता है. यह भी संस्कार पूरी तरह से वैज्ञानिकता पर आधारित है. इस संस्कार में वैदिक मन्त्रों के साथ छ: बूँद मधु और दो बूँद घी को मिला कर चटाया जाता है. इससे बच्चे की मेधा शक्ति प्रचंड होती है. उसका शारीरिक विकास होता है. इस संस्कार के बाद ही माँ बच्चे को स्तनपान कराती है.

. नामकरण संस्कार - हिन्दू धर्मं में इस संस्कार का बहुत अधिक महत्त्व है. शुभ नक्षत्र में यह संस्कार किया जाता है. इसी नाम के आधार पर बच्चे की पूरी की पूरी जीवन कुंडली निर्भर होती है. किस समय में उसे किस संकट का सामना करना है, और कौन सा समय उसके शादी व्याह से लेकर रोजगार या नौकरी के लिए उचित है. यह सब इसी संस्कार पर निर्भर करता है. पूरा का पूरा ज्योतिष विज्ञान की निर्भरता इसी पर आधारित है.

६. निष्क्रमण संस्कार यह भी संस्कार बहुत ही वैज्ञानिक है. इस संस्कार के बाद ही बच्चा इस संसार से परिचित होना शुरू होता है. इसमें दैवीय शक्तियों से प्रार्थना की जाती है कि यह बच्चा इस संसार से अच्छी तरह से परिचित होकर धर्म और मर्यादा की रक्षा करते हुए इस संसार में उपलब्ध सामग्री का उपभोग करे. जन्म के तीसरे या चौथे महीने इस संस्कार को करने का विधान है.

७. अन्नप्राशन संस्कार इस संस्कार के पूर्व तक बच्चा पूरी तरह से माँ से दूध पर निर्भर रहता है. जबकि उसके बढ़ते शरीर के लिए और विकसित होते दिमाग के लिए अन्य पोषक तत्वों की भी आवश्यकता होती है. बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास समुचित हो, इसके लिए यह संस्कार करवाया जाता है. यह भी संस्कार पूरी तरह से वैज्ञानिक है. चिकित्सा विज्ञान में यह सिद्ध हो चूका है कि बच्चा एक सीमा तक ही दूध पर निर्भर रह सकता है. बाद में उसे स्थूल पदार्थों की भी जरूरत होती है.

८. चूडाकर्म संस्कार समाज के बीच में इस संस्कार के लिए मुंडन शब्द प्रचलित है. इसमें बच्चे का मुंडन किया जाता है, इसलिए मुंडन संस्कार कहते हैं. हिन्दू धर्म में मनीषियों ने इसके लिए बच्चे की उम्र के पहले, तीसरे और पांचवे वर्ष का समय निर्धारित किया है. इस संस्कार से बालक का मस्तिष्क स्वस्थ और साफ़ हो जाता है. सफाई की दृष्टि से यह भी संस्कार पूर्णत: वैज्ञानिक है.

९. विद्यारम्भ संस्कार - इस संस्कार के समय के सम्बन्ध में भारतीय मनीषियों में विभेद हैं. कुछ मनीषियों का मानना है कि बच्चा बहुत ही जल्दी अपने आसपास के वातावरण से सीखने लगता है. किन्तु यह संस्कार बच्चे की विधारम्भ के पूर्व किया जाता है. जब पांच साल का बच्चा हो जाता है, तब यह संस्कार किया जाता है.

१०. कर्णभेद संस्कार - पूर्ण रूप से विज्ञान पर आधारित है. इस संस्कार से बच्चा अनेक शारीरिक और मानसिक व्याधियों से छुटकारा पा लेता है.

११. यज्ञोपवीत संस्कार बच्चे की धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए यह संस्कार किया जाता है. यह भी संस्कार पूरी तरह से वैज्ञानिक हैं. इसमें जनेऊ धारण कराया जाता है. इस संस्कार का सम्बन्ध लघु या दीर्घ शंका के बाद स्वच्छता से है, इसको कान में लपेटने से एक्यूप्रेशर बिंदु पर दबाव पड़ता है. जिससे लघु या दीर्घ शंका से बिना किसी कष्ट के निदान हो जाता है.

१२. वेदारम्भ संस्कार इस संस्कार के द्वारा यह जतन किया गया है कि इस धर्म के हर व्यक्ति को अपने धर्म का वैज्ञानिक ज्ञान होना चाहिए. यह जीवन के चहुमुखी विकास के लिए बहुत उपयोगी हैं.

१३. केशांत संस्कार जब बच्चा अपनी शिक्षा-दीक्षा पूर्ण कर लेता है, तब यह संस्कार कराया जाता है. इस संस्कार के बाद बच्चे में वह आत्म विश्वास जागृत करने का प्रयास किया जाता है, जिससे वह समाज और कर्म क्षेत्र में आने वाली समस्यायों का सामना कर सके. इस अवसर पर उसे उपाधि भी प्रदान की जाती है.

१४. समावर्तन संस्कार यह भी हिन्दू धर्म का एक प्रमुख संस्कार है. गुरुकुल की विदाई के पूर्व यह संस्कार किया जाता है. आज गुरुकुल परम्परा समाप्त हो गयी है, इसलिए यह संस्कार विलीन हो गया है.

१५. विवाह संस्कार - ऊपर के तेरह संस्कार पूरा करते-करते बच्चे की उम्र पच्चीस या पच्चीस से अधिक हो जाती है. तब तक शरीर और मस्तिष्क भी परिपक्व हो जाता है. समाजिक बन्धनों में बाँधने और अपने कर्मों से न भागने देने के लिए बच्चों को विवाह संस्कार करके एक अदृश्य डोर में बाँध दिया जाता है. हिन्दू धर्म में आठ प्रकार के विवाह संस्कारों को मान्यता दी गयी है. किन्तु इसमें से कुछ विवाह संस्कार अवैज्ञानिक हैं. जिन्हें समाज ने धीरे-धीरे खुद ही छोड़ दिया. सिर्फ उन विवाह संस्कारों का प्रचालन है, जो विधि सम्मत और वैज्ञानिक हैं. विवाह करने के पूर्व दोनों की जन्म कुंडलियों का अध्ययन किया जाता है. पंचांग में यह देखा जाता है कि उनका जीवन सुखमय होगा कि नहीं.

१६. अंत्येष्टि संस्कार जब मनुष्य का शरीर इस संसार के कर्म करने योग्य नहीं रह जाती है, मन की उमंग भी समाप्त हो जाती है, तब इस शरीर का जीव उड़ जाता है. इस नश्वर शरीर, इस पंचतत्वों से बनी शरीर का दाह संस्कार का विधान है. जिससे शरीर के वायरस और बैक्टीरिया समाप्त हो जाएँ. इसका कारण हैं, कि जैसे ही इस शरीर का जीव निकलता है, शरीर पर वायरस और बैक्टीरिया का जबरदस्त हमला होता है. इस प्रकार यह भी एक वैज्ञानिक संस्कार है.

इन्ही संस्कारों से ही हिन्दू धर्म की संस्कृति का निर्माण होता है. हिन्दू संस्कृति एक अलग, गंभीर और विषद विषय है.

(नोट : यह मेरी मौलिक रचना है, इसके किसी भी अंश का प्रकाशन बिना लेखक या जनता की आवाज की अनुमति के करना अवैध है । )

प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

विश्लेषक, भाषाविद, वरिष्ठ गांधीवादी – समाजवादी चिंतक व पत्रकार

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