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राजनीति, कुत्ता संस्कृति और उसका बढ़ता प्रभाव

राजनीति, कुत्ता संस्कृति और उसका बढ़ता प्रभाव
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कुत्ता, एक ऐसा जानवर जिसकी उपमा के कई मायने साहित्य और जीवन मे लगाए जाते हैं । यदि कोई लड़की किसी लड़के को कुत्ता कह दे, तो इस उपमा के अलग मायने हो जाते हैं।

यदि कोई प्रेमिका यह पत्नी कह दे कि आज कल आप पर कुछ ज्यादा ही कुकुरपना सवार रहता है। तो इस उपमा का अर्थ अलग हो जाता है।

यदि कोई मालिक अपने घर की सुरक्षा के लिए रखे चौकीदार की उपमा अपने कुत्ते से करता है, तो उसके मायने अलग होते हैं।

यदि कोई पिता अपने लड़के को कहे कि आज कल कुत्ते की तरह क्या आवारगी कर रहे हो, तो उसके मायने अलग होते हैं।

आज कल तो घर से लेकर बेडरूम तक मे कुत्ते ही कुत्ते दिखाई दे सकते हैं। क्योंकि अब कुछ अच्छे मानुषी गुण इनमे आ गए हैं।

गली के मुहल्ले, घर, बेड से होते हुए कुत्ता संसद मे भी पहुँच गया। अभी हाल मे ही विपक्ष और सत्ता पक्ष के दो बड़े नेताओं ने कुत्ता शब्द का अपनी – अपनी उपमा के संदर्भ मे प्रयोग किया । इसी समय एक शब्द और ईजाद हुआ, कुत्ता संस्कृति ।

इस शब्द को सुनते ही दिमाग चकरा गया, कि इस संस्कृति को कैसे समझा और समझाया जाये ।

क्योंकि कुत्तों के भी कई प्रकार होते हैं – एक गली मे स्वच्छंद विचरने वाला कुत्ता, जो इधर-उधर भटकता रहता है, मिल जाए तो खा लेता है। लेकिन जिस गली मे रहता है, उस गली मे यदि कोई अंजान व्यक्ति या कुत्ता आ जाए, तो भौकने लगता है। पूरे गली के घरों की रखवाली करता है।

दूसरा कुत्ता पालतू कुत्ता । जो घरों मे रहता है। रोज नहलाया जाता है। उसे विशेष खुराक दी जाती है। नियमित रूप से उसे बाहर टहलाया जाता है। उसकी नियमित चिकित्सा होती है। उसके खाने के बर्तनों को रोज माजा जाता है। लेकिन वह केवल अपने घर की रखवाली करता है। उसे स्वछंद क्रिया करने की आजादी नहीं होती है।

फिर गाँव और शहर के कुत्तों को भी देखता हूँ, उनकी दिनचर्या से लेकर उनकी सीजनल क्रिया पर दिमाग लगाता हूँ, तो दिमाग चिकरघिननी की तरह घूम जाता है। अब दोनों प्रकार के कुत्तों के जीवन को समझने की कोशिश मे दिमाग चकरा गया है। इसमें संसद से निकली उस कुत्ता संस्कृति ही घूम रही है।

आज के संदर्भ मे कुत्ता संस्कृति को समझने की कोशिश करता हूँ, तो ऐसा लगता है कि जो हमें समाज से दूर, फ्री सेक्स के करीब ले जा रही हो,जो हमेशा भूकने के लिए उकसाती हो, ऐसी संस्कृति कुत्ता संस्कृति हो सकती है।

अब थोड़ा राजनीतिक गलियारों मे भी जो कुत्ता संस्कृति पनप रही है, उस पर भी अपने दिमाग की दही बना लेते हैं। राजनीतिक गलियारों मे वह उस नेता का बड़ा वफादार कुत्ता है, जब सुनते हैं, तो समझ मे आ जाता है कि वह शहरी कुत्ते संस्कृति की बात कर रहा है। आज कल हर नेता कुत्ते की तरह आचरण करने लगा है। जब यह कोई सामान्य आदमी कहता है, तो इसका मतलब यह होता है कि वह जहां भी खड़ा होगा,बैठा होगा, कुत्ते की तरह से लगातार अपने विपक्षियों पर भौकता रहेगा। इसका एक दूसरा मतलब भी होता है। जिसका संबंध उसके चरित्र से लगाया जाता है। वैसे राजनीति मे घरेलू ही नहीं गली के कुत्ते की संस्कृति भी बड़ी तेजी से फैल रही है। जब भी कोई छोटा नेता बड़े नेता के पास जाता है, तो वह कुछ रुपयों का एक छोटा सा निवाला उसकी ओर फेक देता है। और वह खुश होकर उसे अपनी जेबों मे छुपाए बाहर निकल जाता है। पता नहीं इसकी ओर संसद से निकली उस ध्वनि का संकेत था। खैर यह इतना आसान प्रश्न नहीं है। बराबर चिंतन का विषय है। देश के प्रधानमंत्री ने इस संस्कृति का उल्लेख किया है। कि हम कुत्ता संस्कृति मे नहीं पले-बढ़े हैं ।

- प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

विश्लेषक, भाषाविद, वरिष्ठ गांधीवादी-समाजवादी चिंतक व पत्रकार

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