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अखिलेश यादव एवं उनकी चुनावी स्पीच की कमियाँ - प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

अखिलेश यादव एवं उनकी चुनावी स्पीच की कमियाँ - प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव
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समाजवादी पार्टी के नव मनोनीत राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव इस समय प्रदेश भर मे घूम-घूम का अपनी चुनावी सभाएं कर रहे हैं । मैं भी इनकी सभाओं एवं स्पीच का अवलोकन कर रहा हूँ। निरपेक्ष भाव से उसे देखने-समझने और उस संबंध मे स्थानीय लोगों की प्रतिक्रियाएँ जानने की कोशिश कर रहा हूँ। ऊपरी तौर पर उनकी स्पीच को प्रभावी कहा जा सकता है। एक ओर जहां वे अपने घोषणा पत्र मे उल्लेखित योजनाओं का खुलासा कर रहे हैं, वही दूसरी ओर वे समाजवादी तरीके से विपक्षी दलों पर हमले भी कर रहे हैं । लेकिन इसके बावजूद इनकी यह सभाएं उपस्थित भीड़ को वोट के रूप मे तब्दील कर सकेंगी, इसमे संदेह है। मैं प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव यहाँ पर उनके चुनावी स्पीच की कमियों का खुलासा कर रहा हूँ, जिससे उनके अलावा उनकी स्पीच तैयार करने वाले लोग भी सबक ले सकें ।

1. स्पीच मे एकरूपता : मैंने सुल्तानपुर की दो और लखीमपुर खीरी की तीन सभाओं को सुना। उनकी हर स्पीच मे समानता का बोध होता है। इससे समानता से उनकी हर स्पीच को मीडिया मे कवरेज नहीं मिलता है। इसलिये कम से कम एक दिन मे होने वाली जितनी उनकी सभाएं हो, उसमें एकरूपता नहीं होनी चाहिए। यदि एकरूपता नहीं होगी, तो मीडिया उसे तीन जगह की उनकी स्पीच को तीन जगह कवरेज देगा। हमारे जैसे श्रोता हर जगह की स्पीच ध्यान से सुनेंगे। ऐसा नहीं लगेगा कि एक बार सुन तो ली है, अब उसी का दोहराव करेंगे, इसलिए उसे सुनने की जरूरत क्या है ? या एकरूपता होने के कारण नीरसता का भाव उत्पन्न होगा। इसलिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को अपने स्पीचों की एकरूपता को समाप्त कर उसमें विभिन्नता कैसे आए, इस पर विचार करना चाहिए ।

2. स्थानीय समस्याओं का अभाव – कहने को तो अखिलेश यादव ने वार रूप बना रखे हैं। जो हर विधानसभा मे हुये कार्यों एवं समस्याओं का अन्वेषण करता है। लेकिन उनकी स्पीचों को सुन कर ऐसा नहीं लगता है कि वे अपनी स्पीचों मे पर्टिकुलर उस विधानसभा मे अखिलेश सरकार ने क्या –क्या काम किए हैं, क्या काम बचे हैं ? उस क्षेत्र की प्रमुख समस्या क्या है ? आने वाले समय मे वे उसे कैसे और कब तक दूर करने वाले हैं ? इन सबको अपनी स्पीच मे शामिल करना चाहिए। इससे उनकी स्पीच मे वैविध्य आएगा और लोगों को यह भी लगेगा कि अखिलेश यादव को हमारी एक – एक समस्या का भी ध्यान है। इससे दिली जुड़ाव होगा। और भीड़ को वोट मे तब्दील करने मे सहूलियत होगी।

3. काम बोलता है, का अभाव – समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की चुनावी स्पीच सुन कर ऐसा नहीं लगता है कि काम बोलता हो ? इसलिए उन्हे अपने कार्यों को उस क्षेत्र या उसको देखने – सुनने और अनुभव करने वाले के शब्दों मे जबउसकी बात होगी, तब जाकर कहीं काम बोलता है, स्लोगन जो दिया गया है, सार्थक होगा। यानि अपने कार्यों को जीवंत तरीके से प्रस्तुत करना होगा। तभी उसका प्रभाव भीड़ पर पड़ेगा और वह वोट के रूप मे तब्दील होगी।

4. स्पीच के अनुरूप चेहरे का भाव न होना – समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का मुस्कराता हुआ चेहरा और उससे निकले व्यंग को धार देते हैं, लेकिन यह देखने मे आया है कि वे कुछ समय तक अपने इस नैसर्गिक गुण का अनुपालन तो करते हैं, लेकिन थोड़ी ही देर मे उनके चेहरे पर कठोरता का भाव उत्पन्न हो जाता है। फिर लोगों का उनकी स्पीच के प्रति जो आकर्षण होता है, वह कम हो जाता है। लोग अगल-बगल देखने लगते हैं। बातचीत करने लगते हैं। इसलिए उन्हे अपने नैसर्गिक गुण को अपने चेहरे पर रखते हुये अपनी बात कहनी चाहिए। यह जरूर है कि मुस्कराहट की मात्रा को कथ्य के अनुरूप कम या अधिक करते रहना चाहिए। एकरूपता भी उचित नही है।

5. मंच पर बूथ एवं सेक्टर लेवल के कार्यकर्ताओं को आसीन करना : देखने मे यह आया है कि अखिलेश के मंच पर भी क्षेत्र एवं प्रदेश के बड़े नेताओं को ही जगह मिलती है। जबकि इस समय पूरे पाँच साल उपेक्षित उस विधानसभा के बूथ एवं सेक्टर लेवल के कार्यकर्ताओं को जगह देने की जरूरत है। इससे वे प्रसन्न भी हो जाएंगे और एक बार फिर पूरे मनोयोग से पार्टी एवं उसके उम्मीदवार को जिताने के लिए अपना फिर प्राण न्योछावर करने पर आमादा हो जाएगा। जो सपना अखिलेश यादव ने देखा है, वह इनकी ऊपेक्षा करने नहीं जीता जा सकता है।

6. हमले को धार देना : अभी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा विपक्षी दलों पर हमले मे जो धार दिखनी चाहिए,वह धार और वे इश्यू नहीं आ रहे हैं। जबकि कोई न कोई एक ऐसा बयान रोज आता है, जिसे वे अपनी स्पीच का हिस्सा बना सकते हैं। यहाँ भी एक बड़ी चूक हो रही है। अखिलेश यादव को रोज उनकी तरफ से बोले गए बयान को भी अपनी स्पीच का भाग बनाना चाहिए।

7. मंच से प्रश्न करना और उत्तर देना – जिस शैली मे बसपा प्रमुख बिन्दुवार हमले और बचाव करती हैं, उसी हिसाब से अखिलेश यादव को अपनी इन चुनावी सभाओं से बिन्दुवार हमले और उन पर जो हमले हों, उनका बिन्दुवार उत्तर देने की जरूरत है। तभी तो समाजवादी कार्यकर्ताओं को बहस करने के लिए कच्चा माल मिलेगा।

इसी तरह और भी छोटी-मोटी तमाम कामिया अखिलेश यादव के चुनावी स्पीचों मे है, जिनको आगे किसी लेख मे प्रस्तुत करूंगा।

(नोट : यह मेरा मौलिक लेख है, जनता की आवाज की अमानत है। आभार सहित आप इसका नाम के साथ प्रकाशन कर सकते हैं ।)

प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

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