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फाइट फॉर द राइट.. बट हू केयर्स??????

फाइट फॉर द राइट.. बट हू केयर्स??????
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जब दृश्य इतना वाचाल हो जाए कि मुख्य मुद्दे हाशिए पर चले जाएं और केन्द्र में केवल टीआरपी संचालित स्त्री विमर्श (borrowed) या प्रोपेगैंडा संचालित नारीवाद या प्रभुत्ववादी नारीवाद प्रत्यक्ष और बेहद गैर ज़िम्मेदाराना तौर पर हावी होता दिखने लगे तो ज़रूरत भर का हस्तक्षेप करना अति आवश्यक हो जाता है.. प्रोपेगैंडा संचालित नारीवाद किस कदर नुकसानदेह साबित हो सकता है उसका ताज़ा तरीन उदाहरण है जॉनी डैप्प-एम्बर हर्ड कोर्ट ट्रायल.. विस्तार में जाने से पूर्व यह जान लें, जॉनी डैप्प एक बहुत लोकप्रिय और चर्चित हॉलीवुड अभिनेता हैं, वहीं एम्बर हर्ड एक अभिनेत्री होने के साथ एक पेशेवर मॉडल भी हैं.. तीन वर्ष की कोर्टशिप के बाद दोनों ने 2015 में विवाह किया.. पन्द्रह महीने के दाम्पत्य के दौरान एम्बर ने डैप्प पर घरेलू हिंसा के गम्भीर आरोप लगाए थे.. परिणामस्वरूप दोनों का तलाक़, 2017 में सौहार्दपूर्ण तरीके से सुनिश्चित किया गया.. कथित रूप से जॉनी डैप्प किसी भी किस्म का बयान देने से इसलिए बचते रहे क्योंकि वे विवादों को "एस्केलेट" नहीं करना चाहते थे.. ओके प्रिवेसी सस्टेन्ड!

पर वहाँ, दूसरी ओर एम्बर की बयानबाज़ी चालू रहीं.. उनके अनुसार वे अन्य स्त्रियों के घरेलू हिंसा से क्रोधोन्माद को, जिसे वे हमेशा से दबाए रखतीं आई हैं, को अपनी आवाज़ देना चाहती थीं.. (असल में "द अदर सेक्स" को डॉमिनेट करना चाहती थीं, यही प्रोपेगैंडा है).. नतीजतन 2018 में ब्रिटेन की जानी मानी "द सन" पत्रिका ने अपने नियमित संस्करण में, मामले की जाँच किए बगैर जॉनी डैप्प को एक 'वाइफ बीटर' का तमगा दे दिया.. बहुत ही प्रत्यक्ष तौर पर एम्बर ने अपने लिए सिम्पथी वोट बटोरे और "प्रोपेगैंडा संचालित नारीवाद" के चलते एक व्यक्ति को जिसे प्रथमदृष्टया आरोपी कहा जा सकता था, उसे दोषी करार कर दिया गया.. इस बात से जॉनी डैप्प को भावनात्मक क्षति तो पहुँची ही, साथ ही साथ, "पाइरेट्स" फ्रेंचाइज़ से उन्हें अलग कर दिया गया, डिज़नी ने अपने आने वाले प्रोजेक्ट्स से उनको ड्रॉप कर दिया.. डैप्प की चुप्पी ने पूरी दुनिया को उनके विरुद्ध कर दिया.. मैं जॉनी की पक्षधर कतई नहीं हूँ, रोज़मर्रा के जीवन में इतने अनुभव एक साथ होते हैं कि सैकड़ों अंतर्विरोध पैदा हो जाते हैं.. कभी कभी तो हम खुद का भी पक्ष नहीं ले पाते.. खुद के लिए भी नहीं खड़े हो पाते.. तब व्यक्ति मौन को सबसे बेहतर विकल्प मान लेता है.. शायद पहले डैप्प के साथ भी ये हुआ हो, पर हमें एक ही बार जीवन मिलता है.. बात केवल प्वाइंट प्रूव करने की हो तब भी वे ऐसा नहीं करते पर बार बार self retrieval यदि बाध्य कर रहा हो, आँच जब अपने पूरे अस्तित्व पर हो तब "सर्वाइवल इंस्टिक्ट" आपका ड्राइव बन जाता है.. एम्बर ने डैप्प पर घरेलू हिंसा और एब्यूज़ का दावा किया था तो जवाब में डैप्प ने भी उनपर और "द सन" पर 2019 में पचास मिलियन डॉलर का डीफेमेशन स्यूट दायर किया.. डैप्प सक्षम व्यक्ति हैं, हॉलीवुड में उनके बहुतेरे पक्षधर हैं.. एम्बर भी कम सक्षम नहीं पर किसी भी तरह की लड़ाई में आपके साथ आपका परिवार, आपके दोस्त न हों तो आप कमज़ोर पड़ने लगते हैं.. केस की सुनवाई में लगातार यह साबित होता रहा है कि एम्बर हर्ड ने जो आरोप डैप्प पर लगाएं हैं वे दरअसल खुद उसकी आरोपी हैं.. डैप्प खुद पर हुई हिंसा के प्रतिकार में अधिकांश मौकों पर एम्बर को उन्हें अकेला छोड़ देने की गुज़ारिश करते रहे.. इस दौरान एक फॉरेंसिक मनोवैज्ञानिक ने एम्बर को बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिस्ऑर्डर से ग्रसित भी बताया.. वे एक ऐसी स्थिति में हैं या थीं जिसमें व्यक्ति खुद क्रूर होते हुए, पहले हिंसा करता है और फिर आरोप किसी अन्य पर मढ़ देता है.. पर यह केवल मैन्टल हेल्थ संबंधित ट्रायल होता तो मैं इस पर बहुत अधिक टिप्पणी नहीं करती.. यदि ऐसा है तो मेरी प्रार्थना है कि ईश्वर एम्बर को स्वस्थ रखें.. लेकिन यदि यह डैप्प के प्रति डोमेस्टिक एब्यूज़ का मुद्दा साबित होता है तो इस में सबसे बड़ा हाथ इस प्रोपेगैंडा संचालित नारीवाद का है जिसने कुछ महिलाओं को (मुख्यतः एलीट वर्ग की महिलाएँ) इतना पथभ्रष्ट कर दिया है, इतना पुरुष द्वेषी बना दिया है कि वे झूठे आरोप लगाकर पुरुषों को दोषी साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़तीं.. डैप्प-हर्ड जैसे लोग जो समाज के प्रिविलेज्ड वर्ग से हैं, वे फिर भी भविष्य में न्याय की आशा कर सकते हैं.. सामान्य वर्ग के उन पुरुषों का क्या, जो आए दिन इस फर्जीवाड़े का आहार बन रहे हैं.. नैतिकता को किसी भी शर्त पर जेंडर से असोसिएट नहीं किया जाना चाहिए.. सभी बुनियादी मूल्य मानवीय हैं.. कोई भी मूल्य स्त्रियोचित या पुरुषोचित नहीं.. पर यह अनुभूति के स्तर पर उतर कर देखा वाली बात है और टी आर पी! टीआरपी उससे कईं गुना बड़ी चीज़ है भई..

चलते चलते यह भी बताती चलूँ कि एम्बर ने डैप्प के जीवन में कम उत्पात नहीं मचाए हैं.. ट्रायल के दौरान एक मामला यह भी सामने आया है कि एक बार एम्बर ने विशुद्ध ध्यानाकर्षण और क्रोधित करने के लिए अपने बैडरूम में, अपने बिस्तर पर मल विसर्जन करके उसकी तस्वीरें डैप्प को भेजीं.. बाद में वे कहती दिखीं कि "That was a horrible "practical joke" gone wrong".. 🙂 कितना हास्यास्पद है यह.. क्या यही तक सीमित है जेंडर इक्वॉलिटी? फ्रीडम? नैतिकता? नारीवाद के नाम पर और कितनी नकारात्मकता परोसेंगे आप?

खैर स्त्री विमर्श के नाम पर पिछले दिनों हुए "बौद्धिक उत्सर्जन" को इस "मल विसर्जन एपिसोड" से जोड़कर देखा जा सकता है.. हालांकि भद्दी एनालॉगी है पर वह भी ध्यानाकर्षण के लिए किए गये स्टंट से अधिक कुछ नहीं था..

मेरे लिए फेमिनिज़्म इज़ नथिंग मोर ऑर लैस दैन इक्वॉलिटी.. फाइट फॉर द राइट.. ऑलवेज़..

--मीनाक्षी मिश्र

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