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मायावती के हार्डकोर जाटव वोट बैंक और नॉन जाटव दलित वोटर्स पर अखिलेश की नजर

मायावती के हार्डकोर जाटव वोट बैंक और नॉन जाटव दलित वोटर्स पर अखिलेश की नजर
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अखिलेश यादव के रथ पर लोहिया और मुलायम के साथ डॉक्टर अंबेडकर की भी तस्वीर लगी है. यह एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. वह रणनीति, जिसे मोटे तौर पर मायावती के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कवायद के रूप में परिभाषित किया जा रहा है. इसी क्रम में अखिलेश यादव डॉ. अंबेडकर की जयंती पर 'दलित दीवाली' मनाने का आग्रह किया था . और अभी 'बाबा साहेब वाहिनी' का गठन किया इससे पता चलता है की मायावती के हार्डकोर जाटव वोट बैंक और नॉन जाटव दलित वोटर्स पर अखिलेश की नजर है.

पर बड़ा सवाल यह है कि 'यादव टैग' के साथ क्या अखिलेश यादव दलित वोट बैंक को अपनी ओर करने में सफल साबित होंगे? क्या यूपी में ओबीसी (खासकर यादव) बनाम दलित जातियों के बीच कथित संघर्ष का नैरेटिव अखिलेश की योजना के आडे़ नहीं आएगा? हां पॉप्युलर परसेप्शन में मायावती पिछड़ रही हैं और उनका वोट बैंक दांव पर तो जरूर है.

'2017 के चुनावों की बात करें तो बीएसपी को 22.23 फीसदी वोट मिले जबकि सीटें मिलीं 19. समाजवादी पार्टी को 21.82 फीसदी वोट मिले थे, यानी बीएसपी से कम वोट लेकिन सीट 47 सीटें मिलीं. ये चुनावी मैट्रिक्स है

यह सारा खेल गुणा गणित का है. यूपी की राजनीति में जो भी पार्टी 28-30 फीसदी (वोट शेयर) के आसपास होती है, तो वह सरकार बनाने की स्थिति में आ जाती है. 2007 में बीएसी को 30.4 फीसदी वोट मिले और सीटें आईं 206. एसपी को करीब 5 फीसदी वोट कम मिले, तो उनकी सीटें आईं 97. 2012 के चुनावों में एसपी को 29.1 फीसदी वोट मिले तो 224 सीटें मिलीं और उनसे करीब 3 से सवा 3 फीसदी कम वोट पाने (25.91 फीसदी वोट)

अखिलेश का सारा फोकस इसी बात पर है कि वह किस जुगत से मायावती के दलित वोट बैंक से 4-5 फीसदी वोट निकाल ले जाएं. अगर ऐसा करने में अखिलेश कामयाब हो जाएंगे तो उनकी चुनावी संभावनाएं जबर्दस्त रूप से बढ़ जाएंगी. ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मेरा मानना है कि इस बार के चुनाव में एसपी के 27-28 फीसदी वोट के आसपास खड़ी नजर आ रही है. यह उनका अपना मुस्लिम-यादव वोट बैंक है जो इस बार भी उनके साथ मजबूती से रहने वाला है. ओवैसी फैक्टर का असर मुस्लिम वोटों पर नहीं पड़ेगा

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