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लॉकडाउन ने भारतीय युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर डाला बुरा असर

लॉकडाउन ने भारतीय युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर डाला बुरा असर
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अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस की पूर्व संध्या पर स्कार्ड संस्था (सोशल कलेक्टिव एक्शन फार रिसर्च एंड डेवलपमेंट) ने सर्वे "भारतीय युवा और लॉकडाउन" रिलीज किया जिसमें कई आश्चर्यजनक बातें निकलकर सामने आई।

देशभर के करीब 70 शहरों में 5000 से भी ज्यादा युवाओं पर हुए इस ऑनलाइन सर्वे को करने का उद्देश्य था यह जानना की लॉकडाउन ने भारतीय युवाओं पर किस तरह का प्रभाव डाला है।

स्कार्ड संस्था के अध्यक्ष विपिन अग्निहोत्री के मुताबिक सर्वे मे यह निकल कर सामने आया की इंटरनेट के माध्यम से पढ़ना अभी भी भारत में टेढ़ी खीर है। 69 प्रतिशत युवाओं को लॉक डाउन की वजह से पढ़ाई में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा क्योंकि सिर्फ 11% युवाओं के घर में कंप्यूटर और लैपटॉप की उपस्थिति थी। इसके अलावा पढ़ाई के लिए एक शांत जगह का ना होना भी बहुत बड़ा कारक रहा इस लॉकडाउन में भारतीय युवाओं के लिए।

दूसरी समस्या जिसने भारतीय युवाओं को लॉकडाउन के दौरान झकझोर दिया वह था आय का कोई स्रोत ना होना। 2५% युवाओं को अपने घर पर ही बैठना पड़ा क्योंकि उनकी जॉब वर्क फ्रॉम होम नहीं थी। 1६% युवाओं के मुताबिक उनके काम करने के घंटों में गिरावट आई। 14% युवाओं ने इस बात को दर्शाया कि उनकी सैलरी में कटौती हुई। ७ प्रतिशत युवाओं ने बताया कि उन्हें अनपेड लीव के लिए फोर्स किया गया।

एक और चौंकाने वाली बात जो इस सर्वे में निकल कर सामने आई की ३७ प्रतिशत युवाओं ने इस बात को माना की लॉकडाउन ने उनकी मानसिक स्थिति पर नेगेटिव प्रभाव डाला। यूं तो ७१ प्रतिशत युवाओं ने लॉकडाउन अपने फैमिली के साथ बिताया लेकिन फिर भी 65% युवाओं ने काफी अकेलापन महसूस किया।

सर्वे में 88% युवाओं ने सरकार के कामकाज पर संतोष जताया उनके मुताबिक इस महामारी से निपटने में केंद्र सरकार ने जो भी स्ट्रेटजी बनाई उनको उन्होंने शिद्दत से माना और इस महामारी को हराने का भरसक प्रयास किया।

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