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रंगभरी एकादशी 25 मार्च को है

रंगभरी एकादशी 25 मार्च को है
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रंगों के पर्व होली के आने का अंतिम बिगुल रंगभरी एकादशी 25 मार्च को है। रंगभरी एकादशी के दिन काशी में बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार होता है और उनको दूल्हे के रूप में सजाते हैं। इसके बाद बाबा विश्वनाथ जी के साथ माता गौरा का गौना कराया जाता है। रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता गौरा को विवाह के बाद पहली बार काशी लाए थे। इस उपलक्ष्य में भोलेनाथ के गणों ने रंग-गुलाल उड़ाते हुए खुशियां मनाई थी। तब से हर वर्ष रंगभरी एकादशी को काशी में बाबा विश्वनाथ रंग-गुलाल से होली खेलते हैं और माता गौरा का गौना कराया जाता है।

रंगभरनी एकादशी के बारे में कथा है कि गौरी से विवाह के बाद भोलेनाथ जब पहली बार अपनी प्रिय नगरी काशी आए तो उसी दिन को मां पार्वती के आगमन में यहां रंगभरनी एकादशी के रूप में मनाते हैं। कहा जाता है कि उस दिन मां पार्वती के स्‍वागत में पूरा नगर विविध रंगों से सजाया गया था। तब से यह परंपरा आज भी चली आ रही है। पूरी काशी को रंग-गुलाल से सजाया जाता है। बाबा विश्‍वनाथ का विशेष श्रृंगार होता है। मां गौरी और शिव के स्‍वागत की जोर-शोर से तैयारियां की जाती हैं।

रंगभरी एकादशी के दिन स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद पूजा स्थान पर भगवान शिव और माता गौरी की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद माता गौरी और भगवान शिव की अक्षत्, धूप, पुष्प, गंध आदि से पूजा-अर्चना करें। इसके बाद माता गौरी और भगवान शिव को रंग तथा गुलाल अर्पित करें। फिर घी के दीपक या कपूर से दोनों की आरती करें। पूजा के समय माता गौरी को श्रृंगार का सामान अर्पित करें, तो बहुत ही अच्छा होगा।



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