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मां भारती के सपूत वीर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद बलिदान दिवस, आजादी का यह नायक अंग्रेजों से नहीं, बल्कि मुखबिरों से मात खा गया

मां भारती के सपूत वीर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद बलिदान दिवस, आजादी का यह नायक अंग्रेजों से नहीं, बल्कि मुखबिरों से मात खा गया
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प्रयागराज, । क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की याद दिलाने के लिए शहर में चंद्रशेखर आजाद पार्क तो है। हालांकि जिस कटरा इलाके में छिप-छिप कर उन्होंने अंग्रेजों की चूलें हिलाई थी, वहां उनकी निशानी न होने की टीस सभी के मन में है। टीस तो शहरवासियों को इस बात की भी है कि जिस रसूलाबाद घाट पर आजाद का अंतिम संस्कार हुआ, वहां उनकी एक प्रतिमा तक नहीं है।

23 जुलाई 1906 को जन्मे चंद्रशेखर आजाद पर लिखे गए तमाम संस्मरण में कटरा में छिप-छिप कर उनके रहने के प्रमाण हैं। आखिरी समय में उनकी मुखबिरी भी कटरा से ही हुई थी। उनकी निशानेबाजी इतनी सटीक थी कि अंग्रेज भी घबराते थे। उनके साहस की मिसाल अंग्रेज कई मौकों पर देख भी चुके थे, इसलिए उन्हें कभी हल्के में नहीं लिया।

आजाद की लोकप्रियता से अंग्रेजों में घबराहट इस कदर थी कि वह मुखबिरी होने के बावजूद उन्हें कटरा में घेरने का साहस नहीं कर सके। हालांकि भीड़भाड़ का इलाका होने के कारण कटरा में जानमाल का बड़ा खतरा भी था। ऐसे में सुनियोजित तरीके से अंग्रेजों ने उनकी मुखबिरी कराई। उनकी मुखबिरी कानपुर से भी हुई। आजादी का यह नायक अंग्रेजों से नहीं, बल्कि मुखबिरों से मात खा गया।

पार्क में चंद्रशेखर के पहुंचने के पहले ही सीआइडी का एसपी नॉट बाबर जीप से वहां पहुंच गया था। उसने अपनी फोर्स के साथ आजाद की जांघ पर वार किया। वह बताते हैं कि जो गोली हाथी को मारी जाती थी, वही उनकी जांघ पर मारी गई, ताकि चीथड़े उड़ जाएं। गोली लगने से जांघ की हड्डी टूट जाने पर वह उठ नहीं सके। फिर भी खिसक-खिसक कर पेड़ के पीछे पहुंचे और अंग्रेजों से मोर्चा लिया। अंग्रेजों के हाथ पकड़ में न आएं, इसलिए स्वयं को गोली मारकर बलिदानी हो गए। इस तरह 27 फरवरी 1931 आजाद की शहादत की तिथि के रूप में दर्ज हो गया।

आजाद के बहुरुपिया बनने की कला से अंग्रेज भय खाते थे, इसीलिए पुष्टि के लिए कानपुर से एक मुखबिर को बुलाया गया। बाद में पता चलने पर कालपी के रहने वाले मुखबिर का सामाजिक बहिष्कार किया गया। व्रतशील बताते हैं कि अंग्रेजों को यकीन था कि जनमानस चंद्रशेखर आजाद के साथ है, ऐसे में बड़े विरोध की ज्वाला भड़क सकती है, इसलिए सूचना फैलाई गई कि अंत्येष्टि के लिए संगम ले जाया जा रहा है, लेकिन ले जाया गया रसूलाबाद घाट, जहां अंत्येष्टि की गई।

कटरा में आजाद छिप छिप कर रहते थे। उनकी याद में पिछले पांच साल से कटरा में उनका चित्र रखकर जन्मदिवस मनाते हैं। यहां उनकी निशानी होनी चाहिए। उस रसूलाबाद घाट पर भी चंद्रशेखर की प्रतिमा स्थापित की जानी चाहिए, ताकि उनकी याद अजर-अमर बनी रहे।

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