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"माई री वा मुख की मुस्कान सम्हारि न जइहें, न जइहें, न जइहें.."

माई री वा मुख की मुस्कान सम्हारि न जइहें, न जइहें, न जइहें..
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बालक कन्हैया पर न्योछावर होते रसखान गोपियों की ओर से कहते हैं कि इस सृष्टि की हर मायावी वस्तु के प्रभाव से बचा जा सकता है, पर कृष्ण की मुस्कान देखने के बाद स्वयं को संभालना सम्भव नहीं, सम्भव नहीं, सम्भव नहीं...

कृष्ण के लिए यह कहना कहीं से भी अतिशयोक्ति नहीं है, सच यही है कि उनके बाल रूप की कल्पना ही इतनी मनोहर है कि उसके प्रभाव से कोई बच नहीं सकता।

विश्व की किसी भी संस्कृति का व्यक्ति, यदि वह बर्बर और क्रूर नहीं हो और श्रीकृष्ण का चरित्र पढ़े या सुने तो वह उनका भक्त हो ही जायेगा। साहित्य के सारे रसों के मेल हैं श्रीकृष्ण! क्या नहीं है उनके चरित्र में; करुणा, वात्सल्य, श्रृंगार, हास्य, वीर, रौद्र, भयावह... फिर कोई कवि कैसे उनकी जादू से बच सकता है? रसखान को उनका भक्त होना ही था। यदि कोई कवि कहे कि वह कृष्ण से प्रेम नहीं करता, तो मैं कहूंगा कि वह कवि नहीं है।

रसखान सनातनी नहीं थे, पर कृष्ण के लिए अपने भावों को जिस तरह उन्होंने प्रस्तुत किया है, वह अद्भुत है।

कृष्ण की सबसे सुन्दर बात यही है कि वे बस अपना मान लेने भर से मिल जाते हैं। मुस्लिम रसखान ने बस एक बार उनके दरवाजे पर जा कर कहा कि आप मेरे हैं, वह दिन था और आज का दिन है, कृष्ण रसखान के थे, हैं और हमेशा रहेंगे। तभी रसखान जीवन भर अपनी कविताओं में, प्रार्थनाओं में केवल और केवल ब्रज में जन्म मिलने की प्रार्थना करते रहे। वे अगले जन्म में ब्रज में मानुस, पशु, पक्षी, यहाँ तक निर्जीव पत्थर होने की भी याचना करते रहे। और कुछ नहीं चाहिए, बस ब्रज में जीवन चाहिए...

प्रेम यदि सच्चा हो तो वह प्रेमी की भक्ति करना सीखा देता है, और भक्ति यदि सच्ची हो तो भक्त अपने आराध्य से प्रेम करने लगता है। मीरा कृष्ण से प्रेम करती थीं सो उनका प्रेम भक्ति बन गया और रसखान कृष्ण की भक्ति करते थे सो उनकी भक्ति प्रेम बन गयी।

मनुष्य यदि सच्चे प्रेम में हो तो वह प्रेमी से जुड़े हर स्थान, हर वस्तु से प्रेम करता है। रसखान जीवन भर ब्रज के बाग, कुंज, यमुना, गोचर, कदम्ब आदि को देखने के लिए प्रार्थना करते रहे। यह उनके स्नेह की ऊंचाई थी।

रसखान रस की खान थे और कृष्ण हर रस के स्थाई भाव... कृष्ण की कल्पना कीजिये या रसखान की कल्पना को पढिये, हृदय बस इतना ही कहता है- सम्हारि न जइहें, न जइहें, न जइहें...

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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