अंबर को गर छू लेते.....
BY Anonymous15 Jan 2021 2:26 AM GMT
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Anonymous15 Jan 2021 2:26 AM GMT
अंबर को गर छू लेते,
रहती सबकी ख्वाहिश है।
उन्मुक्त गगन में उड़ सकते,
करते सभी आजमाइश हैं,
तोड़ कर सारी बन्दिशों को,
चिड़ियों के भांति उड़ सकते।
हम भी कभी हौसले के,
पंख लगा नभ को छूते।
अंबर का नही हद है,
ना ही कोई सरहद है।
जग को समेटे अंबर है,
मानो नीला ओढ़े चादर है।
टिमटिमाते ये तारे,
मोतियों से लगते प्यारे।
सूरज का ताप झेलेे अंबर,
चांद की शीतलता के सहारे।
अभेद है नभ,
अनंतकाल से तब।
समाहित है कायनात,
स्थिर आत्मसात।
प्रदान करता अवसर,
मानव हित कल्याण।
सबकी है जो चाहत,
छू लेना आसमान।
......अभय सिंह
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