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विभिन्न कालखण्डों से गुजरती अयोध्या की विकास यात्रा के लिए एतिहासिक वर्ष 2020 जिसका स्वागत करने आ रहा है नवीन वर्ष 2021

विभिन्न कालखण्डों से गुजरती अयोध्या की विकास यात्रा के लिए एतिहासिक वर्ष 2020 जिसका स्वागत करने आ रहा है नवीन वर्ष 2021
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अयोध्या। सकल ब्रहमाण्ड में आध्यात्म के साथ शिक्षा व संस्कार की रश्मि को प्रसारित करने वाली सप्तपुरियों में प्रथम अयोध्या ने विभिन्न स्वरुपों व कालखण्डों का दर्शन किया है। अयोध्या को दिव्य संरचना में लाने की अवधारणा को विभिन्न महापुरुषों ने यर्थार्थ रुप प्रदान किया। वर्तमान में अयोध्या एक बार पुनः अपने दिव्य स्वरुप में आने वाली है। सतयुग से लेकर कलियुग तथा वर्तमान में 21 सदी तक अयोध्या के विकास की यात्रा का दर्शन हम कुछ इस प्रकार से करते है।

हमारे धर्म शास्त्रों में सप्तपुरियों का जिक्र आता है जिसमें अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी (वाराणसी), कांची(कांचीपुरम), जगन्नाथपुरी, द्वारिका का है। इसमें अयोध्या जिक्र प्रथम स्थान पर किया गया है। इसके पीछे विद्वानों व धर्मशास्त्रियों का मत कि विष्णु के अवतार भगवान श्रीराम के द्वारा अयोध्या से पूरे भूमण्डल पर त्रेतायुग के अंतिम चरण में लगभग 11 हजार वर्ष तक राज्य किया गया था। इसमें भगवान श्रीरामचन्द्र अयोध्या में अवतरित होकर वेद वेदान्त, भूत भवान भगवान भोलेनाथ अन्य देववृन्द्र परमरामभक्त कागभुशुण्ड एवं अनेक सिद्ध महापुरुषों को बाल एवं राज्य काल में दर्शन दिया था। परम पिता ब्रहमा जी के मानस पुत्र महर्षि वशिष्ठ ने सूर्यवंश में भगवान राम के अवतार लेने के कारण ही पुरोहित कर्म को स्वीकार किया था। जहां तक अयोध्या का जिक्र है धर्मशास्त्रों के अलावे आधुनिक सन्दर्भो में व्यापक जिक्र हो रहा है। अयोध्या को सतयुग में सूर्यवंशी राजाओं जिसमें भगवान सूर्य के अंश से उत्पन्न मनु ने मनाया था, जो मानव संतति के परमपिता भी माने जाते है। इसका महर्षि वालमीकि ने अपने रामायण में भी जिक्र किया है तथा अयोध्या को इन्द्र लोक के समान धन धान्य से सम्पन्न नगरी का उल्लेख किया है। इस पीढ़ी में भगवान राम के बाद उनके पुत्र श्री कुश ने उसके साकेत गमन के पश्चात पुनः निर्माण कराया था। तथा सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक सूर्य वंश के राजाओं ने यहां शासन किया। जिनका जिक्र धर्मशास्त्रों में आता है तथा श्रीमद्भागवत एवं महाभारत (जय संहिता) में भी उल्लेख है। उनका नाम वृहदबल था। जो कौरवों की सेना की तरफ से युद्ध में लड़े तथा उनकी वीरगति अभिमन्यु के हाथों से हुई थी।

वर्तमान अयोध्या का स्वरुप उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट योगिराज गोरखनाथ के परमशिष्य भर्तहरि के अनुज सम्राट विक्रमादित्य ने ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व इस नगर का भव्य स्वरुप दिया था। जो हमें पंचकोसी मार्ग के अन्दर देखने को पूर्ण रुप से मिलता है। जिसमें श्रीरामजन्मभूमि, सुग्रीव किला, लक्ष्मण किला, दशरथ महल, मतगैड़, कनकभवन, मणि पर्वत आदि का जीर्णोद्धार कराया था। अयोध्या का उत्तरोत्तर विकास निर्वाद गति से होता रहा। सन् 1184 में कन्नौज, गहरवार नरेश श्री जयचंद के अयोध्या आगमन का उल्लेख इतिहास के पन्नों में मिलता है जिन्होने विक्रमादित्य के शिलालेखों के स्थान पर अपना शिलालेख लगाया था। जो 1192-94 में पृथ्वीराज चैहान के हार के बाद जयचंद्र का भी पतन हो गया था। उस काल से अयोध्या पर मुस्लिम शासकों की नजर रही और लूटपाट होती रही। यह नजर थोड़े थोड़े अंतराल में हुए हमलों के साथ अनवरत अयोध्या की ओर मुस्लिम आक्रान्ताओं की लगी रही जिसका मुख्य उद्देश्य अयोध्या के वैभव को नष्ट करना तथा इसकी धार्मिक पवित्रतता को मिट्टी में मिलाना है। यह काल पूर्ण रुप से 1526 से 28 के बीच बाबर काल मे पूरा हो गया। क्योंकि अयोध्या की धाक पूरी सप्तपुरियों में बनी रही तथा यह उल्लेख मिलता है। महात्मा संत श्यामानंद जी महाराज थे जिनके हाथों में जन्मभूमि का पूजन एवं देखरेख था। संत श्यामानंद उच्च कोटि के जगत प्रसिद्ध जगतगुरु आदि शंकराचार्य रामानुजा चार्य के समकक्ष इनका स्थान था तथा उनके अंदर कोई उंचनीच का भेदभाव नहीं था। वास्तव में भगवान के जो वास्तिविक भक्त होते है उनके उंचनीच का भाव नहीं होता है। ऐसा हमारी नैवधा भक्ति में भी उल्लेख आता है। उनकी सज्जनता का लाभ उठाकर बाबर ने अपने दरबारी एवं प्रेरक ख्वाजा कजल अब्बास एवं मो0 जलालशाह को संत श्यामानंद के दरबार में भेजा इन बाबर के दरबारियों ने श्यामानंद के पास रहकर पूरी रामजन्मभूमि अयोध्या की पूरी गतिविधियां प्रक्रिया को जान लेने के बाद अपने आका बाबर को संदेश दिया तथा उनके द्वारा प्रेषित किये गये मंत्री मीरबांकी खां द्वारा अयोध्या की वैभव के साथ साथ आस्था को भी मिटाने का प्रयास किया। उसके जगह पर बाबरी मस्जिद की इमारत खड़ी की गयी। हालांकि मस्जिद बनने में अनेक दैवी घटनाओं के कारण बाधा आयी जिससे यह पूर्ण रुप से मस्जिद का स्वरुप नहीं ले सकी। भगवान की दिव्यता का आलोक कभी इस स्थान से बुझा नहीं। बल्कि 25 नवम्बर 1949 को जो मजिस्द क्षेत्र में मुस्लिम हवलदार अब्दुल बरकत की ड्यूटी के दौरान भगवान की चकाचैंध युक्त सजीव दर्शन हुए तथा महंत अभिरामदास जी द्वारा जो वहां पर 24 घंटे का सर्तकर्तापूर्वक अखण्ड रामायण चल रहा था। भगवान का प्राकट्य हुआ तथा उसके चबूतरे पर मूर्ति विग्रह चमकते हुए पाये गये। जिनका वहां पूजन पाठ होने लगा। उस मस्जिद का नामोनिशान 20 सदी के उत्तरार्ध में जब भागवत कृपा से तथा भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमान जी कृपा से जब राममंदिर का आन्दोलन शुरु हुआ तो शास्वत भारतीय संस्कृति भगवान राम के जन्मस्थान पर बनी हुई मस्जिद को हनुमान राम भक्तों ने 6 दिसम्बर 1992 को देखते ही देखते नष्ट कर दिया। यह भगवान की दिव्यता का प्रतीक है। यहां मुझे मानना है कि भागवत कृपा से हमारे रामायण में सात लोग अमर है। जिसमें अश्वत्थामा, राजा बलि, व्यास देव जी, हनुमान जी, विभीषण जी, परशुराम जी, आठवे अमर देव मार्केडेय ऋषि का स्थान है यह सभी लोग अमर है। इनकी भक्ति कभी निष्फल नहीं है। सभी लोग सद्योजात है। इसमें से सबसे ज्यादा पूजित हनुमानजी है एवं परशुराम जी है। दोनो को साश्वत् गुरु की उपाधि अर्जित है। बाबरी मजिस्द के विध्वंश की राम जन्मभूमि विवाद की मुकदमें का पटाक्षेप माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय दिनांक 8 नवम्बर 2019 को 1024 पेज का आया जिसमें इस विवाद को हमेषा के लिए समाधान कर दिया इसका विस्तृत विष्लेशण मा0 इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री देवी प्रसाद सिंह द्वारा लिखित पुस्तक श्री रामराज्य आधुनिक परिवेष में उल्लेख है। यह पुस्तक अयोध्या को केन्द्र मानकर लगभग 330 पेज की लिखी गयी है जो अयोध्या वैदिकता से लेकर आधुनिकता की ओर इंगित करती है। इस निर्णय आने के बाद भारत की सर्वोच्च पंचायत संसद में श्रीराममंदिर निर्माण के विषय में चर्चा हुई तथा श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए भारतीय संसद के द्वारा माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र का गठन किया गया। जिसमें संत महत्मा के अलावे अन्य विशेषज्ञ भी शामिल है। इस तीर्थ क्षेत्र के अनुरोध पर प्रधानमंत्री जी द्वारा दिनांक 5 अगस्त 2020 को श्रीराममंदिर निर्माण के लिए संत महत्माओं की उपस्थिति में कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए भूमि पूजन किया गया। उस भूमि पूजन के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री जी द्वारा प्राचीन अयोध्या वैदिक अयोध्या, एतिहासिक अयोध्या के साथ साथ एक नव्य अयोध्या आर्य अयोध्या, पयर्टन से विश्व के मानचित्र पर अंकित होने वाली भव्य अयोध्या बनाने की संत महंतमाओं की उपस्थिति में बात कही गयी। इस बात को हमारी प्रदेश की सरकार के द्वारा केन्द्रीय सरकार के सहयोग से मूर्त रुप देने की कारवाई प्रारम्भ हो गयी है। इसका बीजारोपण अक्टूबर 2017 में दीपोत्सव आयोजन के साथ हो गया। इसकी और दिव्यता प्रदान करने का कार्य भूमि पूजन के बाद तेजी से हो गया। हमारी सरकार के द्वारा विगत 1 वर्ष से ज्यादा समय से किसी भी एक एकड़ से ज्यादा की रजिस्ट्री पर रोक लगायी है। इसके पीछे दिव्य अयोध्या का कान्सेप्ट है। जिसमें एक हजार एकड़ के लिए जमीन व्यवस्था की जा रही है। जिसमें भारत संघ के विभिन्न राज्यों के राज्य भवन होंगे। विभिन्न संत परम्पराओं के मठ होंगे तथा विभिन्न संस्कृतियों को समाहित करने के लिए होटल, मोटेल, रेस्टोरेंट, उद्यान, पयर्टन स्थल आदि के अलावे सबसे महत्वपूर्ण अयोध्या में भगवान राम के नाम पर अंतराष्ट्रीय एयरपोर्ट, अन्तर प्रदेशीय बस अड्डा, साउथ कोरियां की सहयोग से निर्माण हो रहे नयाघाट क्वीन हो पार्क आदि होंगे। इनका बीजारोपण वर्ष 2020 में हो चुका है तथा यह मूर्त रुप वर्ष 2021 में लेगा क्योंकि अयोध्या को वर्ष 2020 में बहुत कुछ दिया। जिसमें भगवान रामलला के विग्रह की फाईवर शेड में 25 मार्च 2020 नवरात्रि में स्थापना, मा प्रधानमंत्री जी द्वारा श्रीरामजन्मभूमि स्थान का भूमि पूजन आदि प्रमुख है। नव्य अयोध्या में दक्षिण दिशा में एक और बाईपास मिलेगा तथा अम्बेडकरनगर मार्ग सुल्तानपुर मार्ग रायबरेली इलाहाबाद मार्ग भी फोरलेन होगी।

लेखक: डॉ मुरली सिंह

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