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पढ़ाकू का फेसबुक पेज, जरूरतमन्द छात्रों को दे रहा छात्रवृत्ति

पढ़ाकू का फेसबुक पेज, जरूरतमन्द छात्रों को दे रहा छात्रवृत्ति
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किसी के जीवन को सार्थक मोड़ देना, उसे शिक्षा या रोजगार देने से बड़ा कोई धर्म नहीं हो सकता। 'पढ़ाकू' (फेसबुक पेज) के जरिए इसी प्रयास को सकारात्मक दिशा दे रही हैं मोनिका चौबे (28) व उनके पति अरुण चौबे (33) जो स्विट्जरलैंड में रहते हुए अपने देश के बच्चों में शिक्षा की अलख जगाने का प्रयत्न कर रहे हैं। जिनके विचारों का सिद्धान्त कहता है की 'अगर हम रास्ता जानते हैं तो गुमराह इंसान हमारी ज़िम्मेदारी है। बहुत से बच्चे भारत में शिक्षा से वंचित हैं। पढ़ाकू एक कोशिश ऐसे बच्चों को अज्ञानता व मुफ़लिसी से बाहर निकालना है। जिसके लिए हम ऐसे बच्चों को चिन्हित करके समय-समय पर उन्हें छात्रवृत्ति, प्रमाण पत्र, पुरस्कार व मार्गदर्शन देकर शिक्षा के प्रति उनके अंदर लगन व भरोषा पैदा करते हैं। उनके आचार, विचार व व्यवहार को सफलता के पदचिन्हों की पहचान करा उन्हें उनके जीवन के महत्व को समझाना पढ़ाकू का मुख्य उद्देश्य है। सफलता व असफलता अंतिम पड़ाव है लेकिन जीवन सुख व स्वाभिमान से जीने का नाम है। पढ़ाकू उन्हें स्वाभिमान के साथ जीने के लिए सामार्थवान बनाना चाहता है।

पढ़ाकू के फेसबुक पेज पर जरूरतमन्द छात्र अपना वीडियो भेजें

पढ़ाकू केवल ऐसे भारतीय बच्चों को छात्रवृत्ति या अनुदान देता है जिन बच्चों के अंदर पढ़ने की ललक होती है। छात्रवृत्ति देने का मात्र उद्देश्य यह है की छात्र पढ़ाई के दौरान उपेक्षाओं का शिकार ना हो। वह उस पैसे से अपने रुचि की किताबें, ट्यूशन फीस, स्कूल फीस आदि का भुगतान कर अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें। इसके लिए छात्र का परिवार, पड़ोसी या अन्य कोई भी छात्र का एक से तीन मिनट का विडियो बनाकर फेसबुक पर मौजूद पढ़ाकू पेज पर भेजे। उस विडियो में छात्र अपना परिचय हिन्दी या अँग्रेजी भाषा में दें। वह किस कक्षा में हैं, पढ़ाई करके वह क्या बनना चाहते हैं आदि अपने सकारात्मक अनुभव वीडियो के जरिए 'पढ़ाकू' से साझा करें। इस बात का ध्यान रखें की जरूरतमन्द छात्र ही हमें वीडियो भेजें। छात्र द्वारा भेजी गयी विडियो में किसी प्रकार की गलत जानकारी पायी जाएगी तो ऐसी स्थिति में छात्र का विडियो आवेदन निरस्त कर दिया जाएगा। जिस भी छात्र को अनुदान दिया जाएगा उससे उस पैसे के जायज खर्च की उम्मीद रखी जाती है। यथा संभव छात्र को दिए अनुदान का गलत प्रयोग होने पर आजीवन उसे पढ़ाकू की हर जनसेवा सुविधा से वंचित कर दिया जाएगा। इसलिए हर छात्र से पढ़ाकू यही आशा करता है की वह अनुदान का प्रयोग अपने शैक्षणिक आधार को मजबूती प्रदान करने में ही प्रयोग करें। हम आप सभी के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।

कोरोना में सैकड़ो जरूरतमन्द परिवार को आर्थिक मदद

उत्तर प्रदेश में अंबेडकर नगर के कटेहरी बाज़ार निवासी अरुण चौबे पुत्र बजरंग बली चौबे व उनकी पत्नी मोनिका चौबे पुत्री दुर्गा प्रसाद पांडे अपने दो बेटे अनय, अयन के साथ स्विट्जरलैंड में रहते हैं। जहां वह निजी कंपनी में सम्मानित पद पर कार्यरत हैं। वहीं पत्नी मोनिका पूर्व शिक्षिका रह चुकी हैं। अरुण व मोनिका भले सात समंदर पार हैं पर अपने वतन की मिट्टी के मोह ने उन्हें देशभक्ति की ऐसी भावुख कड़ी में जोड़ रखा है जो उन्हें उससे कभी दूर नहीं होने देता। इसीलिए समय समय पर वह देश के जरूरतमंदों के लिए अपने सामर्थ्यानुसार कुछ न कुछ करते रहते हैं। जिंहोने कोरोना काल के दौरान लॉकडाउन में सैकड़ों जरूरतमंद परिवारों के खातों में एक हज़ार रुपए भेजे एवं राशन व अन्य मदद भी पहुंचायी है। साथ ही अपने ग़ृह जनपद अंबेडकर नगर की कोरोना वायरस से सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों को आधुनिक गियर उपलब्ध कराये जाने हेतु, पढ़ाकू की ओर से मोनिका चौबे ने जनपद यूपी में अम्बेडकर नगर के पुलिस अधीक्षक आलोक प्रियदर्शी के माध्यम से पुलिस प्रशासन को रू. 51000 का दान किया है। अरुण व मोनिका यही कहते हैं की 'नर सेवा ही नारायण सेवा है। जिस तरह हमारे माता-पिता ने हमें पढ़ा-लिखाकर इस काबिल बनाया की हम देश हित व जनसरोकार में अपनी भूमिका दे पा रहे हैं। ठीक उसी प्रकार हम चाहते हैं की देश का हर बच्चा स्वालंभी व आत्मनिर्भर बन देश की सेवा व जरूरतमंदों की मदद कर सके। हम साथ मिल कर इस देश से गरीबी अशिक्षा को जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रयत्न कर रहे हैं।

इन्हें शिक्षा देकर इनका स्वाभिमान लौटाना चाहता हूँ: अरुण चौबे

अरुण बच्चों के भविष्य से जुड़े सवालों पर भावुख हो गए व कुछ देर की खामोशी के बाद उन्होने कहा "देश के ग्रामीण क्षेत्र में गरीब परिवार व शहर की मलिन बस्तियों के ज़्यादातर बच्चों को यह यकीन दिला दिया जाता है कि इनकी ज़िन्दगी में कुछ नया नहीं हो सकता है। इनके दिन कभी बहुरेंगे ही नहीं, जिसकी वजह से ये मासूम कभी इन परिस्थितियों से निकलने की परिकल्पना ही नहीं कर पाते। इन बच्चों का शारीरिक, मानसिक शोषण इस प्रकार होता है की यह या तो कुपोषण या किसी अन्य बीमारी से ग्रसित या नशे के आदि हो जाते हैं। ऐसे बचपन को बचाना मेरा प्रयास है। इन्हें शिक्षा देकर इनका स्वाभिमान लौटाना चाहता हूँ। इन्हें यह यकीन दिलाना चाहता हूँ की इस दुनिया में जन्म लेने वाला हर इंसान शिक्षा के दम पर अपनी ही नहीं देश व दुनिया की तकदीर व तस्वीर बदल सकता है। मुझे अपनी मात्रभूमि से उतना ही लगाव है जितना मुझे अपनी जन्म देने वाली माँ से है। जिससे दूर रहना भले आज मेरी मजबूरी है पर मेरी हर सांस उसके अहसानों की ताउम्र अहसानमंद रहेगी।'

देश के कोने-कोने से सैकड़ों परिवार हमसे जुड़ चुके हैं : मोनिका

मोनिका चौबे ने बताया की पढ़ाकू एक प्रयास है आने वाली नस्लों को गरीबी, अशिक्षा, नशा, कुपोषण, आत्महत्या, बेरोजगारी जैसे हालात व अभिश्राप से निकाल शिक्षा के माध्यम से उन्हें सक्षम व आत्मनिर्भर बनाने की। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लडकियों को ज्यादा पढ़ाया नहीं जाता, जल्द उनकी शादी तक कर दी जाती है। उनसे उम्मीद की जाती है कि वो घर संभाले, ऐसे परिवारों में उन बच्चियों का चुनाव कर जो पढ़ना चाहती हैं उन्हें पढ़ाकू के जरिए आत्मनिर्भर बनाना चाहती हूं। भले ही बहुत से लोग वित्तीय सशक्तिकरण के बारे में सोचते हैं, मैं इनके मानसिक स्वास्थ्य पर जोर देने के लिए एक बिंदु बनाती हूं और उन्हें उनकी क्षमता का एहसास करने का विश्वास दिलाती हूं। मेरे पिता ने कभी मुझे लेकर मन में कोई संकोच नहीं रखा। उन्होने मुझे अच्छे संस्थानों में पढ़ने को भेजा वह मानते थे की लड़कियों को आत्मनिर्भर होने के लिए समाज की कुरीतियों के सारे बंधन को तोड़कर निडरता से आगे बढ्ना चाहिए। मेरे पिता मेरी प्रेरणा व मेरा अभिमान हैं। मैं और मेरे पति ने पढ़ाकू को जो दिशा दी आज उससे देश के कोने-कोने से कई परिवार हमसे जुड़ चुके हैं। यह सफर बहुत ही आनंददायक रहेगा हम चाहते हैं हमारी इस मुहिम से आप भी जुड़ें।

छात्रवृत्ति पाने वाले बच्चों ने अपना अनुभव साझा किया

पढ़ाकू के माध्यम से छात्रवृत्ति पाने वाले छात्रों की सूची बहुत लंबी है। न्यूज टैंक ने कुछ बच्चों से संपर्क किया जिनका पढ़ाकू व पढ़ाई को लेकर विचार आपको प्रभावित करेगा। उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर का इरशाद (09) जो की बेहद चंचल प्रवित्ति का छात्र है। पर पढ़ने में काफी होनहार है। जिसकी पढ़ाई के प्रति रुचि को देखते हुए उसके स्कूल की ही शिक्षिका ने पढ़ाकू टीम से संपर्क किया व इरशाद को छात्रवृत्ति दिलायी। छात्रवृत्ति पाकर इरशाद ने पढ़ाकू टीम का धन्यवाद व्यक्त किया व उस पैसे से उसने अपने लिए नई किताबें व स्कूल बैग लिया है। वहीं गाजियाबाद की 11 वर्षीय अनन्या अरोरा कोरियोग्राफर बनना चाहती है। जिसकी भाषा व विषय पर तार्किक पकड़ व भविष्य की संभावनाओं के प्रति हर चुनौती से लड़कर जीतने को तैयार है। अनन्या ने छात्रवृत्ति पाकर अपना अनुभव साझा करते हुए कहा की 'पढ़ाकू' की जानकारी मुझे फेसबुक पर हुयी। जिसके बाद मैंने अपना परिचय देते हुए वीडियो बनाकर भेजा। उसके दो दिन के अंदर मुझे एक हज़ार रुपए की धनराशि प्राप्त हुयी। जिस पैसे से मैंने अपने रुचि की किताबें बाज़ार से ले आई हूँ। धन्यवाद पढ़ाकू टीम।' ऐसे ही सैकड़ों की तादात में बच्चों को छात्रवृत्ति मिल चुकी है। पढ़ाकू पेज का फेसबुक लिंक नीचे दिया गया है।

पढ़ाकू: https://www.facebook.com/padhakustudious/

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