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फ़िल्म इंडस्ट्री के चमकदार चेहरों का असली रङ्ग दिखने लगा

फ़िल्म इंडस्ट्री के चमकदार चेहरों का असली रङ्ग दिखने लगा
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फ़िल्म इंडस्ट्री के चमकदार चेहरों का असली रङ्ग दिखने लगा है। दिखने लगा है कि यह पूरी तरह नशे में डूबे हुए लोगों का समूह है, जिनका हर व्यवहार छलावा है, धंधा है। दिखने लगा है कि हीरो हीरो नहीं एक अभद्र शराबी है और हीरोइन एक डायन...

जानते हैं, कुछ काम बिना नशे के नहीं हो सकते। मल साफ करने जैसे काम नशे में किये जाते हैं। सड़ चुकी लाशों का पोस्टमार्टम सामान्यतः नशे में किया जाता है। अधिकांश हत्याएं नशे में की जाती हैं। स्त्रियों के साथ मार-पीट या अभद्रता की अधिकांश घटनाएं भी नशे की हालत में ही होती हैं। देश विरोधी नारे भी नशे की हालत में ही लगाए जाते हैं। आदमी नशे में न हो तो ऐसे काम कर ही नहीं सकता।

ऐसे ही, मनुष्य बिना नशे के नंगा नहीं हो सकता। लज्जा मनुष्य का सबसे पुराना सामाजिक गुण है। हमें नग्न नहीं रहना है, यह बात हजारों हजार वर्षों से हमारे अवचेतन में धंसी हुई है। किसी दुर्घटना में बेहोश हुआ आदमी यदि चार दिन बाद होश में आये, तब भी वह सबसे पहले अपने कपड़े देखता है। मृत्यु शैया पर पड़े व्यक्ति को भी अपनी धोती संभालते हुए देखा जाता है।

मनुष्य तभी नंगा हो सकता है जब वह नशे में हो। ऑर्केस्ट्रा में अर्धनग्न नाचने वाली लड़कियों से मिल कर देखिये आप, सब स्टेज पर आने के पहले शराब के नशे में धुत हो जाती हैं। कोठों के धंधे में लगा कोई पुरुष-स्त्री बिना नशे के नहीं रहता। शराब हमेशा से कोठों का आवश्यक अंग रही है।

फिर क्या लगता है, फिल्मों में बार बार नंगे हो कर पशुवत व्यवहार करने वाले ये तथाकथित हीरो-हीरोइन बिना नशे के रहते होंगे? परदे पर नग्न नाचने वाली कथित अभिनेत्रियां बिना नशे के अपने कपड़े उतार देती होंगी? असम्भव... अपने अंतरंग क्षणों को पूरी दुनिया के सामने परोसने की हिम्मत बिना नशे के नहीं आती। सिनेमाई दुनिया का कोई व्यवहार बिना नशे के सम्भव नहीं दिखता। भरोसा नहीं होता तो सोच कर देखिये, क्या आप सड़क किनारे चार लोगों के बीच अपनी पेंट उतार सकते हैं? नहीं...

पूरा सिनेमा जगत नशे की गर्त में डूबा हुआ है। कुंदनलाल सहगल से लेकर आज तक का कोई सुपरस्टार ऐसा नहीं जो नशेड़ी न हो। बीच-बीच में मुकेश खन्ना जैसे कुछ लोग अलग दिख जाते हैं, नहीं तो पूरी इंडस्ट्री नशे में डूबी हुई है।

गाँव में कहा जाता है, और हम देखते भी हैं कि एक बड़े और प्रतिष्ठित परिवार में कोई एक नशेड़ी हो जाय तो अकेले पूरे परिवार का नाश कर देता है। फिर इतनी बड़ी इंडस्ट्री जिसका सीधा प्रभाव पूरे देश पर है, वह यदि पूरी तरह नशे में डूबी हुई हो तो क्या देश का नाश नहीं कर देगी? कर देगी क्या, बहुत हद तक कर दिया है।

इस इंडस्ट्री ने पिछले तीस चालीस वर्षों में देश को बलात्कार सिखाया है, हत्या के नए नए तरीके सिखाये हैं, लूट के नए तरीके सिखाया है। इस इंडस्ट्री ने शराब सिगरेट को फैशन बनाया है, नग्नता को फैशन बनाया है। कुल मिला कर यही इसका योगदान है...

तंत्र जाँच कर रहा है, फिर भी यह तय है कि सारे अपराधी नहीं पकड़े जाएंगे। अबतक केवल लड़कियां घेरे में आ रही हैं। एक भी बड़ा चेहरा नहीं आया है तस्वीर में। अर्थ साफ है कि नागिन का फन नहीं कुचला जा सकता, पर सरकार चाहे तो कमर जरूर तोड़ सकती है। कमर टूट ही जानी चाहिए। आगे जो शाह इच्छा...

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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