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शिवपाल की चुनावी सक्रियता - मायने व कयास

शिवपाल की चुनावी सक्रियता - मायने व कयास
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कभी समाजवादी पार्टी के सबसे ताकतवर माने जाने वाले स्तंभ शिवपाल सिंह यादव के राजनीतिक जीवन मे 2017 में ऐसा तूफान आया कि सब कुछ बिखर गया। जिस बड़े भाई मुलायम सिंह यादव को वे आज भी भगवान की तरह पूजते हैं। वे भी उनसे दूर हो गए । हालांकि उनका आर्शीवाद बना रहा। लेकिन उस आशीर्वाद का क्या ? जिससे कल्याण न हो। इस बात को समाजवादी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव भी बहुत अच्छी तरह से जानते और मानते हैं कि समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में शिवपाल सिंह यादव का बहुत बड़ा योगदान है। अपने पुत्र अखिलेश यादव के साथ रहते हुए भी वे जितना शिवपाल सिंह यादव के लिए कर सकते थे किया। आज उनकी विधायकी जो बची हुई है, वह मुलायम सिंह यादव के कारण ही बची हुई है। उनके कहने पर उनके आज्ञाकारी पुत्र अखिलेश यादव ने पार्टी के तमाम लोगों के विरोध के बावजूद उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने वाली लिखित अपील वापस ले ली। और मीडिया द्वारा पूछे जाने पर इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी किया। नेताजी के कहने पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जसवंत नगर विधानसभा सीट पर अपना दावा छोड़ दिया। उस पर शिवपाल सिंह यादव ही चुनाव लड़ेंगे। यह भी बात मीडिया के सामने स्वीकार की। अखिलेश यादव के इस सकारात्मक रुख की वजह से शिवपाल सिंह यादव भी सारे शिकवे गिले भूल कर 2022 में समाजवादी पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ने की बात करने लगे। और अखिलेश यादव ही 2022 में मुख्यमंत्री होंगे, अपने पूर्व के संकल्प को फिर दोहराने लगे। लेकिन इसके पश्चात समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की कोई प्रतिक्रिया नही आई । हालांकि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव आज भी इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। शिवपाल सिंह यादव अपनी भी पोजिशन जानते हैं, और समाजवादी पार्टी के जमीनी हालात भी उनसे छिपे हुए नही है। वे इस बात को भी अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी और उनकी पार्टी की मजबूती इतनी नही है कि वे अकेले इतनी सीटें जीत लें, और सरकार बना लें। वे जानते हैं कि वे विधानसभा चुनाव 2022 में बहुत अधिक सीटें नही जीत सकते हैं । लेकिन अगर वे और समाजवादी पार्टी अलग अलग लड़े, तो समाजवादी पार्टी को भी बड़ा नुकसान हो जाएगा। शिवपाल सिंह यादव यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि बिना उनको साथ लिए समाजवादी पार्टी की 2022 में पुनर्वापसी नही होगी । क्योंकि समाजवादी पार्टी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया दोनों के वोटर एक हैं। शिवपाल सिंह यादव के अधिसंख्य नेता और कार्यकर्ता भी यादव और मुस्लिम समुदाय से हैं। और समाजवादी पार्टी के भी अधिसंख्य नेता और कार्यकर्ता यादव और मुस्लिम समुदाय से हैं। यानी दोनों का मूल वोटर यादव मुस्लिम और यादव ही हैं। इतना जरूर है कि यादव और मुस्लिम मतदाताओं का अधिक रुझान समाजवादी पार्टी की तरफ है। लेकिन शिवपाल सिंह यादव की तरफ बिल्कुल नही है। ऐसी भी बात नही है। एक बात मान लीजिए कि हर विधानसभा में शिवपाल सिंह यादव को एक हजार वोट मिलते हैं। तो मेरे अपने अध्ययन के अनुसार समाजवादी पार्टी को 100 विधानसभा सीटों पर नुकसान उठाना पड़ सकता है। क्योंकि शिवपाल सिंह यादव के अलग चुनाव लड़ने पर भाजपा ऐसा माहौल पैदा कर देगी कि समाजवादी पार्टी के पक्ष में पड़ने वाले 4 हजार वोट उसे नही मिलेंगे। इस प्रकार शिवपाल सिंह के चुनाव लड़ने पर समाजवादी पार्टी को हर सीट पर कुल 5 हजार वोट का नुकसान होगा। अपने भ्रमण और अध्ययन में मैं जो समझ पा रहा हूँ। उसके अनुसार 2022 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के पक्ष में कोई हवा चलने वाली है, ऐसा नहीं है। हर विधानसभा सीट पर उसे एक एक वोट के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। एक एक वोट डलवाना पड़ेगा, और डलवाने के पहले एक एक वोट अपने पक्ष में करना पड़ेगा। तब जाकर विधानसभा चुनाव 2022 में वह जीत सकती है। अपने भ्रमण और यात्राओं के दौरान मैंने भाजपा वोटरों को खूब खंगाला। योगी सरकार की कुछ कमियों को स्वीकार करने के बाद भी समाजवादी पार्टी के पक्ष में वह मतदान करेगा। ऐसा वह स्वीकार नही करता। समाजवादी पार्टी के जीत की बात, 2022 में सत्ता में आने की बात केवल यादव और मुसलमान ही कर रहे हैं। जिसके कोई विशेष मायने नही है। वे तो समाजवादी पार्टी के मूल वोटर है, इसलिए वे तो इस प्रकार की बात करेंगे ही । जब हालात इतने नाजुक हों, ऐसे में शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव का एक होना जरूरी है।

अब मैं मूल विषय पर आता हूँ । भीतरखाने में कुछ हुआ हो, तो मुझे नही पता ? लेकिन इधर जमीन पर पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव खासे सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले ही उन्होंने सायकिल यात्रियों के दल को हरी झंडी दिखाकर कर नई दिल्ली के लिए रवाना किया। जो प्रसपा के पक्ष में माहौल बनाने का काम कर रहा है। जैसी की मुझे जानकारी मिली है। उसके अनुसार शिवपाल सिंह यादव कुछ राजनीतिक परिस्थितियों की सही और जमीनी जानकारी लेना चाहते हैं। इसके अलावा कृषि विधेयक - 2020 के रूप में जो तीन बिल पास हुए हैं। उसकी भी वे पुरजोर मुखालफत कर रहे हैं। कानपुर के पेपरों में कल प्रकाशित समाचार के अनुसार समाजवादी पार्टी के कुछ पदाधिकारी प्रगतिशील पार्टी में शामिल हुए हैं। इसका मतलब साफ है कि शिवपाल सिंह यादव भी अब खासे सक्रिय हो गए। 2022 सिर्फ समाजवादी पार्टी के लिए ही नही, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। शिवपाल सिंह यादव यह अच्छी तरह जानते हैं कि अगर अपनी पार्टी और अपने सम्मान को बचाना है, तो 2022 के विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना पड़ेगा। कम से कम इतने उम्मीदवार जिताने होंगे, जिससे जो भी सरकार उत्तर प्रदेश में बने, उसमे उन्हें भी सम्मान मिले। अगर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से उनकी बात नही बनी तो वे किसी अन्य मजबूत राजनीतिक दल से गठबंधन कर लेंगे। मेरे पास जो अधिकतम सूचना है, उसके अनुसार 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए कुछ बड़े राजनीतिक दलों के ऑफर आये हैं। सम्मानजनक सीटें भी देने का वायदा किया जा रहा है। जिसकी एक संभावित संख्या भी बता दी गई है। शिवपाल सिंह यादव ने उन्हें मना भी नहीं किया है। विचार करने का आश्वासन दिया है। लेकिन उनका मन और दिली इच्छा यही है कि गठबंधन समाजवादी पार्टी के साथ हो जाये। लेकिन इस बार वे बहुत दिनों तक इंतजार नही करेंगे। पिछले दो साल पहले उनके राजनीतिक जीवन में एक अवसर आया था। जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था। जिसकी वजह से उन्हें काफी राजनीतिक घाटा उठाना पड़ा। लेकिन इस बार वे कोई रिस्क लेने के लिए तैयार नही हैं। क्योंकि शिवपाल सिंह यादव यह अच्छी तरह जानते हैं कि 2022 उनके लिए करो या मरो की लक्ष्मण रेखा है। हालांकि उनके कुछ विशेष शुभचिंतक उनको यह भी सलाह दे रहे हैं कि 2022 में अगर समाजवादी पार्टी सरकार नही बना पाती है, तो वह बिखर जाएगी और समाजवादी पार्टी के तमाम कार्यकर्ता स्वतः ही प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया से जुड़ जाएंगे। लेकिन शिवपाल सिंह इसे फिजूल की बात मानते हैं।

खैर अब प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव की नजरें समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की ओर लगी हुई हैं। उन्हें सकारात्मक उत्तर की आशा है। साथ समाजवादी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव पर भी भरोसा है कि समाजवादी पार्टी के संरक्षक होने के नाते वे इस दिशा में अहम रोल निभाएंगे। बाकी तो सब कुछ अभी भविष्य के गर्त में है। राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है, जहां कुछ भी निश्चित नही होता है। दुश्मन कब दोस्त बन जाएं और दोस्त कब दुश्मन, इसकी भी भविष्यवाणी नही की जा सकती है।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट


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