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किसान प्रेम का धिम पटापट धींगड़ी पो पो...

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मुझे अबतक ऐसा कहने वाला तो कोई नहीं मिला कि नए कृषि बिल से किसानों की सारी दिक्कतें दूर हो जाएंगी, पर कुछ लोग यह जरुर कह रहे हैं कि यह कृषि बिल किसानों का नाश कर देगा! मैं पूछता हूँ किसान आबाद कब था? अगर अबतक सब ठीक था तो फिर किसान आत्महत्या क्यों करते थे? किस सरकार में सुखी था किसान?

क्या इस देश में कोई है जो चाहता हो कि उसका बेटा बड़ा होकर किसान बने? कोई है जो अपनी बेटी को किसी किसान से ब्याहना चाहे? इस देश में तो कृषि कार्य को रोजगार माना ही नहीं जाता हुजूर! किसान सरकार की नजरों में भी बेरोजगार ही होता है। और यह मोदी के कारण नहीं हुआ, प्रारम्भ से ही यही दशा है।

हुजूर! सच यह है कि भारत की आजादी के बाद से अबतक किसी सरकार ने एक भी योजना किसानों के हितों को ध्यान में रख कर नहीं बनाई। जो भी योजना बनी वह सबको मजदूर बनाने के लिए ही बनी। विकास के नाम पर शुरू हुई हर परियोजना में किसानों की जमीन छीनी गयी, और उन्हें मजदूर बनाया गया। देश के नब्बे प्रतिशत किसान अब किसान नहीं रहे, मजदूर हो गए हैं। और जो सचमुच अब भी किसानी ही करते हैं, वे हर तीसरे दिन फाँसी लगाते दिख जाते हैं। किसने किया यह? मोदी ने? नहीं... यह सबकी साझी उपलब्धि है। आजादी के बीस वर्षों में ही किसान दया का पात्र हो गया था। तबसे सरकारें उसपर दया ही करती रही हैं।

जानते हैं कृषि से हुए आय पर इनकम टैक्स नहीं लगता। क्यों? क्योंकि सरकारों ने कभी चाहा ही नहीं कि किसान भी इनकम टैक्स देने लायक बने। सरकारों ने किसानों को इसी लायक समझा है कि कभी कभी उनके दस-बीस हजार रुपये के लोन माफ कर दिए जाँय। देश की अबतक की कोई सरकार नहीं बता सकती कि उसने इसके अतिरिक्त भी कुछ किया हो।

आप पूरे देश का सर्वे करा लीजिये, अधिकांश जगहों से खबर आएगी कि चीनी मिल ने दो वर्षों से किसानों को गन्ने का भुगतान नहीं किया। इस देश में अधिकांश किसान छोटी जोत वाले हैं, जिनकी सरकारी मंडियों में कोई नहीं सुनता। बिहार में तो कृषि मंडी शायद है भी नहीं। मेरे जिले में तो नहीं ही है... ऐसे में छोटा किसान जब अपना धान बेचने निकलता है तो उसे ग्राहक नहीं मिलते, क्योंकि सरकार ने अधिकांश घरों में दो रुपये किलो का राशन पहुँचा दिया है। फिर कौन खरीदे? किसके लिए खरीदे? किसानी पहले से ही घाटे का सौदा हो गयी है। हमारे यहाँ तो खेती केवल यह सोच कर होती है कि पुरुखों की जमीन परती कैसे छोड़ दें...

इस देश की पूरी व्यवस्था भ्रष्ट है साहब! एक ही व्यक्ति जो बीपीएल सूची में भूमिहीन बन कर हर महीने फ्री का राशन लेता है, वही दूसरी ओर बैंक में पाँच बीघे जमीन का भूस्वामित्व प्रमाण पत्र दे कर लाख रुपये का कृषि लोन खाये बैठा है। और इन सब के बीच सत्य यह भी है कि एक आम किसान के लिए बिना सेटिंग के कृषि लोन ले लेना अब भी भगवान से भेंट करने के बराबर है।

मुझसे पूछिये तो इस बिल को लेकर मैं बहुत खुश नहीं हूं, पर मुझे इसके विरोध का भी कोई कारण नहीं दिखता। अगर कोई बैद कह रहा है कि वह मरे हुए कोई जीवित कर देगा तो उसकी सुन लेनी चाहिए। क्या पता कहीं कर दे, नहीं तो बन्दा मरा तो पहले से ही है।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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