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2022 का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा और अखिलेश

2022 का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा और अखिलेश
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देश या प्रदेश का कोई भी चुनाव हो, रणनीति के साथ साथ मुद्दों पर लड़ा जाता है। हर राजनीतिक दल ऐसे मुद्दों का प्रचार करता है, जिसमें जनता का सामूहिक कल्याण हो, और जिससे जनता का रुझान उसकी तरफ बढ़े । और वह वोट में तब्दील हो सके । चुनाव कोई भी हो, चुनाव लड़ने की शुरुआत विपक्ष ही करता है। जिसकी सरकार होती है, वह तो काम करता है। और अपने काम के आधार पर जनता से पुनः जिताने की अपील करता है। और यह जनता पर निर्भर करता है कि वह सत्तारूढ़ दल की अपील खारिज करती है, या उस पर अमल करती है। बेरोजगारी देश और सभी प्रदेशों की सबसे बड़ी समस्या है। चुनाव में उतरने वाले सभी राजनीतिक दल किसी न किसी रूप में रोजगार देने का वायदा जरूर करते है। और इस देश का करोड़ो बेरोजगार युवक उस राजनीतिक दल के उम्मीदवारों को वोट करता है, जिसकी बात पर सबसे अधिक विश्वास होता है। पिछले लोकसभा चुनाव की अगर बात करें, तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 और 2019 का चुनाव प्रति वर्ष दो करोड़ रोजगार देने के नाम पर फतह किया था। इसी तरह की बात उत्तर प्रदेश के 2017 के चुनाव में भी घटी थी। उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को लगा कि केंद्र में भाजपा सरकार है, अगर उत्तर प्रदेश में भी भाजपा की सरकार हो जाये, तो उत्तर प्रदेश का चौमुखी विकास होगा। रोजगार के अधिक अवसर बनेंगे, जिसका लाभ उत्तर प्रदेश की जनता को मिलेगा। लेकिन ऐसा कितना हुआ, यह तो 2022 का परिणाम बताएगा। देश और प्रदेश में जो बेरोजगारी थी, कोरोना की महामारी की वजह से वह कई गुना बढ़ गई। कोरोना संकट काल मे जिनके हाथ मे काम था, वह भी छिन गया। अगर यह कहा जाए कि सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को छोड़ दें, तो सभी लोग बेरोजगार हो गए। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने मनरेगा के तहत उन्हें काम देने की कोशिश की। लेकिन फिर भी वह सभी बेरोजगारों को रोजगार देने में सफल नही हुई। फिर योग्यता के अनुसार सरकार काम दे ही नही की। जिनके घर भीषण आर्थिक संकट में रहे, उनके घर परिवार के लोगों ने पढ़े लिखे होने के बावजूद मजदूरी की। इसी समय उत्तर प्रदेश की एक घोषणा कि अब उत्तर प्रदेश के प्रवासी बेरोजगार युवाओं के लिए प्रदेश में ही रोजगार सृजन करेंगे, बात बहुत आकर्षक और लुभावनी तो है, लेकिन उत्तर प्रदेश में हो सकता है कि सरकार पंजीकृत प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने में सफल हो जाये, लेकिन ऐसे बेरोजगार युवाओं का क्या होगा ? जो बेरोजगार हैं, और यहीं रहते हैं। इसी बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक और घोषणा कर दी कि सरकारी नौकरियों में सभी को पहले पांच साल संविदा पर रखा जाएगा, अगर हर वर्ष उसकी परफॉर्मेंस 60 प्रतिशत से कम हुई, तो उसकी संविदा समाप्त कर दी जाएगी । उसका मूल्यांकन हर साल होगा। इसको लेकर उत्तर प्रदेश के युवाओं के बीच एक बवंडर मच गया । गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में हर पढ़ा लिखा युवक सरकारी नौकरी करना पाना चाहता है। इसके लिए घर द्वार त्याग कर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर, मेरठ, लखनऊ जैसे शहर चला जाता है और वहां अपने लक्ष्य के अनुरूप तैयारी करता है। उसकी सरकारी नौकरी पाने की लालसा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह तब तक उपरोक्त नगरों से घर वापस नही आता है, जब तक या तो वह नौकरी कंपटीशन में सेलेक्ट नही हो जाता है, या ओवर एज यही हो जाता है। सिर्फ युवा ही नही, उसके माता पिता, यहां तक कि नाते रिश्तेदार भी यही चाहते हैं कि उनके घर मे जन्में युवा - युवती नौकरी करें । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पांच साल संविदा की शर्त ने करोड़ों युवाओं के सपनों पर पानी फेर दिया। चारो तरफ से उनके इस निर्णय के खिलाफ आवाजे उठने लगी । छात्रों से जुड़े सभी संगठनों ने प्रदर्शन करने लगे। इस निर्णय के विरोध में ज्ञापन देने लगे। आज कल जो धरना प्रदर्शन और ज्ञापन की क्रियाएं चल रही है, वह इसी से संबंधित है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने युवाओं की इस पीड़ा को समझा, और अपने एक बयान में कहा कि युवा निराश न हो, 2022 की पहली कैबिनेट की मीटिंग में इसे वापस ले लिया जाएगा। उनके इस बयान से नौकरी की चाहत रखने वाले हर जवान ने राहत की सांस ली। लेकिन एभी भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस निर्णय के खिलाफ कॅरोना काल की तमाम बंदिशों के बावजूद भी प्रदर्शन हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर तो इसके खिलाफ एक मुहीम ही चलाई जा रही है।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ऐसे ही पल की तलाश में थे, जिससे आगामी 2022 के चुनाव में अपने और अपनी पार्टी के साथ हर जाति, वर्ग के लोगों को जोड़ा जाए। क्योंकि उनकी पार्टी के लोग आज भी मुस्लिम यादव तक सीमित दिखाई दे रहे हैं। हालांकि जिस तेजी से यादवों और मुसलमानों को इस सरकार में उपेक्षित किया गया है, उससे वे एकजुट हुए हैं, लेकिन अन्य जातियों के लोग इतनी तेजी से सत्तारूढ़ राजनीतिक दल भाजपा का साथ नही छोड़ रहे हैं, जितनी अखिलेश यादव को आशा थी । आज भी यादव और मुसलमानों को छोड़ कर अन्य जातियाँ सरकार की बुराई तो कर रही है, लेकिन अभी भी भाजपा के पाले में ही खड़ी है। वोट देने के नाम पर अपने पत्ते नही खोल रही है। जो समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के परेशानी का सबब बना हुआ है। अखिलेश यादव की परेशानी का दूसरा सबब यह है कि बसपा का मतदाता उनकी ओर खड़ा तो दिखाई देता है, लेकिन जब वोट देने की बात आती है, तो भाजपा की ओर सरक जाता है। हालांकि इन दोनों समस्याओं का तोड़ निकालने के लिए अखिलेश यादव लगातार मंथन कर रहे हैं। सम्भव है कि बहुत कुछ वे पक्ष में भी कर लें। लेकिन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी छवि एक सर्व सामान्य के नेता के रूप में बनाना चाहते हैं। इसी कारण उन्होंने 2022 के लिए बेरोजगारी को चुनावी मुद्दा बनाने का निर्णय लिया है। बेरोजगारी किसी एक जाति की समस्या नही है, सभी की समस्या है। अखिलेश यादव को सिर्फ आशा ही नहीं, विश्वास है कि वे बेरोजगारी के मुद्दे से सर्व सामान्य जातियों में अपनी पैठ बना लेंगे। इस कारण आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सभी जातियों और वर्गों का वोट मिलेगा और वे अपने द्वारा निर्धारित लक्ष्य 351 प्लस सीट जीतने में कामयाब होंगे।

लेकिन एक समस्या अभी भी बरकरार है, कहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यू टर्न न ले लें। जिससे अखिलेश यादव की रणनीति पर तुषारापात हो जाये। लेकिन अखिलेश यादव यह भी जानते हैं कि अगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के यू टर्न भी ले लिया, तो भी उत्तर प्रदेश के बेरोजगार युवा उन पर विश्वास नही करेंगे । उन्हे इस बात की आशंका रहेगी कि अगर भाजपा फिर सत्ता में आई, तो इसे लागू कर सकती है। वैसे भी दक्षता के नाम पर 50 साल में ही जबरन रिटायरमेंट की जो प्रक्रिया चल रही है, उससे सरकारी कर्मचारी खुश नही है। रेलवे और दूसरी केंद्र सरकार की नौकरियों में छंटनी और निजीकरण की प्रक्रिया से लोग खासे नाराज हैं। उसका भी फायदा अखिलेश यादव द्वारा घोषित उम्मीदवारों को मिलेगी। इस समय मैं कोरोना पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान यात्रा पर हूँ, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संविदा वाले निर्णय पर युवाओं में अच्छी खासी बेचैनी है। अब उस बेचैनी को कितना अपनी तरफ मोड़ लेते हैं, यह अखिलेश यादव और उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर निर्भर करता है। लेकिन फिलहाल तो गेंद अखिलेश यादव के पाले में है, और वे उसे बेहतरीन तरीके से खेल रहे हैं। स्कोर तो 2022 में ही पता चलेगा। किसने कितने किये।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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