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सपा में महिलाओं की उपेक्षा

सपा में महिलाओं की उपेक्षा
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आज कांठ से शाहजहांपुर शहर के लिए रवाना हुआ, करीब 6 किलोमीटर की दूरी तय की। धूप और उमस की वजह से प्यास महसूस हुई, एक पेड़ की छाया में रुका और सायकिल खड़ी करले दो मिनट बाद पांव पीया । बोतल रख कर जैसे ही हाथ हैंडल की ओर बढ़ा ही रहा था। एक काले रंग की कार आकर ठीक सायकिल के पीछे रुकी। उसमें से एक महिला और एक पुरुष निकले। मैं यह सोच ही रहा था कि अधिक गर्मी या अधिक दूर से आने के कारण छाया में थोड़ा देर आराम करना चाह रहे होंगे। तभी महिला आगे बढ़ी और मुझे सम्बोधित करते हुए कहा कि मैं आपको जानती हूँ । मैं भी यहां से करीब चालीस किलोमीटर दूर रहती हूं । आपको देख कर मैंने पहचान लिया और गाड़ी मोड़ कर आपसे मिलने चली आई। इसके बाद उसने मेरे एक रकनीतिक शिष्य का परिचय दिया। मैंने उन्हें फोन लगा कर उसके सही होने की पुष्टि की। इसके बाद उसने जो कुछ बताया, उसे सुन कर मैं आश्चर्यचकित हो गया। अपनी चर्चा के दौरान उसने बताया कि समाजवादी पार्टी में महिलाओं को जोड़ने की कोई मुहीम नही चलाई जाती। जो भी महिलाएं जुड़ती है, उनका किसी न किसी रूप में राजनीतिक इतिहास है। या तो उनके घर का कोई राजनीति करता है। या कोई ऐसी परिस्थिति आ जाती है, जिसकी वजह से उसे राजनीति से जुड़ना पड़ता है। इस कारण कोई भी जिला आप देख लीजिए, चंद महिलायें ही आपको नजर आएगी । वे महिलाएं आज बुजुर्ग हो गई हैं, फिर भी संगठन के सभी पदों पर काबिज हैं । इक्का दुक्का विश्वविद्यालय की लड़कियां जरूर पार्टी से जुड़ जाती हैं। उनका भी अपना एक निश्चित क्षेत्र है। या तो वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से होती हैं, या लखनऊ विश्वविद्यालय से होती है। छात्र राजनीति में होने के बाद भी समाजवादी पार्टी की राजनीति में अपनी पैठ बनाने के लिए उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती है। फिर महिलाओं के लिए आज के समय में राजनीति करना अच्छा नही माना जाता है। जो भी महिलाएं राजनीति में होती है, उन्हें समाज अच्छी निगाहों से नही देखता है। उनके चरित्र के बारे में न जाने कैसी कैसी बातें की जाती हैं। समाज की तो छोड़िए, ऐसी बातें वे करते हैं, जो उन्हीं की पार्टी के सदस्य होते हैं । अगर कोई महिला किसी कार्यकर्ता के साथ कार्यालय पहुंच गई, तो फिर उसके बारे में नाना प्रकार की चरित्र हनन की बातें होती हैं। भले ही वह उसका भाई ही कई9न हो। भले ही उन दोनों में भाई बहन के रिश्ते क्यों न हो । माना कि कुछ ऐसी महिलाएं होती हैं, जो शार्टकट अपनाने के चक्कर मे अपनी इज्जत और अस्मिता को दांव पर लगा देती हैं । राजनीतिक पद या टिकट पाने के लिए सारी हदों को पार करते हुए अपना सब कुछ समर्पित कर देती हैं। इसकी एवज में उन्हें पद, पैसा और झूठी प्रतिष्ठा भी मिल जाती है। लेकिन उनके कारनामों की चर्चा हर एक राजनीतिक कार्यकर्ता की जुबान पर होते हैं। लेकिन राजनीति में आने वाली हर नारी ऐसी ही होती है, यह सच नही है। राजनीति में आने वाली तमाम ऐसी नारियां हैं, जिन्होंने अपने पीछे गरिमामयी इतिहास छोड़ा है। उन्होंने राजनीति कैसे की जाती है, यह हम जैसी नारियों को सिखाया है। राजनीति में आज भी किसी महिला को बिना अपने पति, भी या पिता के संरक्षण के राजनीति नही करना चाहिए, ऐसा राजनीति में आने वाली अनुभवी महिलाएं कहती हैं। लेकिन समय के साथ धीरे धीरे सब कुछ बदल रहा है। बिना किसी पुरुष के संरक्षण के भी महिलाएं राजनीति कर सकती हैं। लेकिन बिना किसी के संरक्षण के राजनीति करने वाली महिलाओं को अपने लिए कुछ लक्ष्मण रेखाएं खींचनी होगी । कुछ नियम बनाना होगा। पुरुषों के बीच में उठने बैठने और काम करने के बजाय अपने आसपास या परिचित इतनी महिलाओं को साथ रखना पड़ेगा, जिससे वे बिना किसी भय के उनके साथ आ जा सकती हो। जब राजनीति में भी महिलाओं की पर्याप्त संख्या होगी, तो उसके बारे में चौराहों पर अनर्गल बातें की जाती हैं, उन पर विराम लग सकेगा। लेकिन उसके लिए समाजवादी पार्टी को महिलाओं को जोड़ने के लिए अभियान चलाना होगा। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिम्पल यादव दो ऐसे चेहरे हैं, जिनकी शुचिता और उद्दात्त चरित्र की प्रमाणिकता है। सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश की राजनीति में डिंपल यादव का चेहरा एक सुसंस्कृत नारी के रूप में माना जाता हैं। राजनीति में आने वाली महिलाओ को उनसे सीखना पड़ेगा । उनकी नकल करना पड़ेगा। जिस तरह से अखिलेश यादव की धर्मपत्नी डिम्पल यादव परिवार और राजनीति में समन्वय स्थापित करती हैं, उसी प्रकार समाजवादी पार्टी की हर महिला को पार्टी और परिवार में समन्वय स्थापित करना पड़ेगा। पार्टी और परिवार दोनों के प्रति उसके जो कर्तव्य हैं, उसका निर्वहन करना पड़ेगा। साथ ही केवल दिन के उजाले में ही उसे राजनीति करना होगा । जिसके लिये इसे अपने अभिभावक पिता, भाई, या पति से अनुमति और सानिध्य प्राप्त करने होंगे। पार्टी के कार्यों के प्रचार प्रसार के लिए महिलाओं के बीच जाना होगा। पुरुषों को अपने पार्टी के पुरुष नेताओं के लिए छोड़ देना होगा।

उस महिला ने आगे कहा कि यह तो समाजवादी पार्टी की खुशनसीबी है कि डिम्पल यादव जैसा आदर्श महिला राजनेता हमारी पार्टी में हैं । इसलिए समाजवादी पार्टी से जुड़ने में राजनीति करने की इच्छुक महिलाओं को कोई दिक्कत नही है। लेकिन समाजवादी पार्टी से पूरे प्रदेश की राजनीति की इच्छुक महिलाएं जुड़ना चाहती हैं। लेकिन उनका नेतृत्व पूर्व सांसद डिम्पल यादव के हाथ में देना होगा । और पार्टी की ओर से महिलाओ को जोड़ने के लिए एक अभियान चलाना होगा। इस अभियान का नेतृत्व समाजवादी पार्टी की पूर्व सांसद डिम्पल यादव को करना होगा। अगर समाजवादी पार्टी वाकई 2022 का चुनाव जीतना चाहती है, तो महिलाओं को समाजवादी पार्टी से जोड़ना बहुत जरूरी है । महिलाओं की परिवार में क्या अहमियत होती है, यह समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से बेहतर कौन जानता है। आज के समाज मे 80 प्रतिशत पुरुष वही करते हैं, जो उस घर की जिम्मेदार औरत चाहती है। यह सभी जानते हैं की औरत के विभिन्न स्वरूप होते हैं। अगर वह किसी की पत्नी होती है, तो किसी की पुत्री भी होती है, किसी की बहन होती है, किसी की भतीजी होती है, किसी की भाभी होती है। परिवार के हर व्यक्ति से उसके भावनात्मक रिश्ते होते हैं। उसके पीछे उसकी कर्तव्य भावना है। हर रिश्ते के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को वह अपने आराम और सुखों को दांव पर लगा कर जीती है। इसी कारण जब वह कोई बात अपने परिवार वालों से कहती है, तो उसका व्यापक प्रभाव होता है। अगर समाजवादी पार्टी की महिला कार्यकर्ता महिलाओं के बीच में प्रचार प्रसार करेंगी तो निश्चित रूप से पार्टी के उम्मीदवारों की जीत होगी । इसलिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को इस दिशा में भी काम करना चाहिए। तभी 351 प्लस का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। ऐसे में जब समाजसेवी प्रकृति की महिलाएं पार्टी से जुड़ना चाह रही हो, तो पार्टी को जोड़ना चाहिये। लेकिन पुरुषों की तरह उनको भी संगठन से लेकर हर स्तर पर भागीदार बनाना चाहिए। जिससे वोट मांगते समय, वे महिला मतदाताओं से जो कमिटमेंट करें, उसे पूरा किया जा सके। समाजवादी पार्टी के संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को जब भी सार्वजनिक रूप से कार्यकर्ताओं नेताओं से बात कहने को मिलता, तो तब तब कहते कि पार्टी में महिलाओं को जोड़ो। उनको इज्जत दो । उन्हें कार्यक्रमों में लेकर आओ और कार्यक्रम समाप्त होने के बाद घर तक सुरक्षित पहुंचाओ। लेकिन आज तक उनकी इस अपील पर अमल नही हुआ। आज कल के युवा नेता केवल जय जय जय करने में विश्वास रखते हैं। उनकी बातों पर अमल नही करते हैं। इसी कारण जो महिलाएं किसी तरह पार्टी में जुड़ भी जाती हैं, कुछ दिन बाद अपने आप को उपेक्षित महसूस करती हैं। और केवल पार्टी के कार्यक्रमों में ही दिखाई पड़ती हैं। क्षेत्र की महिलाओं के बीच में वह भी नही घूमती हैं। जिसकी वजह से ऐसी महिलाओं का पार्टी में रहना और न रहना एक बराबर है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और डिम्पल यादव दोनों को पार्टी में पद और प्रतिष्ठा देने के बाद उनके कार्य भी निर्धारित करने होंगे और समय समय पर उनकी समीक्षा भी करने होंगे। तब जाकर महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित होने के साथ उसका लाभ भी पार्टी को मिलेगा। 2022 में 351 विधानसभाओं के जीत का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तो महिलाओं की सक्रियता बहुत जरूरी है।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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