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विशेष सुरक्षा बल अधिनियम : राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका

विशेष सुरक्षा बल अधिनियम : राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका
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उत्तर प्रदेश सरकार सुरक्षा के प्रति विशेष सतर्क दिखाई पड़ रही है। पिछले विधान मंडल सत्र में विशेष सुरक्षा बल अधिनियम बिना किसी चर्चा के पारित हो गया। प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस आदि कानून व्यवस्था के नाम पर सरकार को घेरने के चक्कर में सदन पटल पर रखे गए इस अधिनियम पर कोई बहस नही हुई और पारित हो गया । इसमें किसका दोष दिया जाए। अमूमन ऐसे विषयों पर विपक्षी राजनीतिक दलों का विशेष अध्ययन नही होता है। ऐसे अधिनियमों का सीधा संबंध राजनीति से नही होता है। इस कारण उनका अनुभव शून्य होता है। जबकि 6 अगस्त, 2020 से अमल में आये इस अधिनियम पर बहस करने के लिए विपक्ष के पास काफी सवाल हो सकते थे, काफी शंकाएं हो सकती थी। लेकिन सब निर्मूल साबित हुआ। लेकिन जब से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की सत्ता सँभाली है, उस दिन से ही कानून व्यवस्था के लिए काफी संजीदा दिख रहे हैं। उत्तर प्रदेश में अपराधियों पर नकेल कसने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन पुलिस अधिकारियों और जवानों द्वारा एकपक्षीय कार्रवाई करने की वजह से उन्हें काफी आलोचना का भी शिकार होना पड़ रहा है। जैसे प्रथम चरण में जब अपराधी मुक्त उत्तर प्रदेश का अभियान चलाया, तो यह अभियान एक विशेष जाति के खिलाफ अभियान साबित हो गया। क्योंकि जितने भी आरोपियों का एनकाउंटर किया गया, सभी एक विशेष जाति से संबंधित रहे। अधिक आलोचना के कारण इस अभियान को शिथिल कर दिया गया । इसके बाद फिर अपराधी मुक्त उत्तर प्रदेश के तहत फिर अभियान चलाया गया । यह अभियान कानपुर के बिकरु कांड के बाद चलाया गया। जिस तरह से एक ही जाति के अपराधियों का एनकाउंटर किया गया, उससे एक बार फिर ऐसा लगा, जैसे अपराध समाप्त करने के नाम पर राजनीतिक प्रतिशोध लिया जा रहा है। कानपुर के बिकरु कांड को मीडिया ने इतना हाई लाइट कर दिया कि अगर उसके खिलाफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कड़ी कार्रवाई न करवाते, तो उनकी और उनकी सरकार की अंतर भारतीय किरकिरी होती । जिस तरह से बिकरु कांड के अधिकांश आरोपियों का एनकाउंटर किया गया । उस पर सवालिया निशान लगे । और अब उसकी उच्च स्तरीय जांच हो रही है। इसलिए उसके बारे में यहाँ लिखना उचित नहीं है। यह आज का विषय भी नही है।

अब हम मूल विषय पर आते हैं। विशेष सुरक्षा बल अधिनियम। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा पारित यह अधिनियम निश्चित रूप से प्रदेश के विशेष प्रतिष्ठानों के सुरक्षा से सबंधित है। अभी तक उत्तर प्रदेश के सभी विशेष प्रतिष्ठानों की सुरक्षा की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश पीएसी के जिम्मे था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अनुसार इन्हें उत्तर प्रदेश के विशेष प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए कोई ट्रेनिंग नही दी जाती है। इस कारण अभी तक वे अपनी सूझ बूझ और दिये गए कुछ निर्देशों के पालन के रूप में उसकी सुरक्षा करते आये हैं। बदले हुए परिवेश में जब आतंकी हमले, आतंकी गतिविधियों की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। उत्तर प्रदेश और भारत सरकार की खुफिया एजेंसियों द्वारा अतिरिक्त सावधानी बरतने की हिदायतें दी जा रही हैं । कभी भी किसी भी प्रतिष्ठान पर हमले की गुंजाइश बताई जा रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के नाते योगी आदित्यनाथ का यह कर्तव्य बनता है कि वह उत्तर प्रदेश के प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए कोई विशेष कदम उठाएं। कोई विशेष बल गठित करें, जिससे किसी भी आतंकी हमले या गतिविधि से निपटा जा सके। इसी परिप्रेक्ष्य में इन्होंने विशेष सुरक्षा अधिनियम पारित कराया है। इस अधिनियम के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार एक ऐसा बल गठित करने जा रही है, जो हर प्रकार की न्यायिक प्रक्रिया से बाहर होगा। किसी अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए उन्हें किसी वारंट की जरूरत नहीं होगी । न ही उनकी किसी गतिविधि को कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश के विशेष प्रतिष्ठानों और उसकी सुरक्षा के बारे में उसे विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी। जिस प्रकार की ट्रेनिंग अभी तक कमांडों को दी जाती थी कि वे अपने नेताओं की विषम से विषम परिस्थितियों में भी सुरक्षा करने में दक्ष होते हैं। उसी प्रकार इस विशेष बल का एक एक जवान किसी भी आतंकी घटना को नेस्तनाबूद करने में सक्षम होगा। जिस प्रतिष्ठान की सुरक्षा की जवाबदेही उसे दी जाएगी, उसके पास अगर कोई संदिग्ध व्यक्ति घूमता हुआ नजर आता है, तो बिना किसी एफआईआर के उसे गिरफ्तार करने, उससे पूछताछ करने का अधिकार होगा। अगर कोई बलात चिन्हित प्रतिष्ठानों में घुसने का प्रयास करता है, तो उसके खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्रवाई का उसे अधिकार होगा। वह अत्याधुनिक हथियारों से लैस होगा, जिसे चलाने में उसे महारत होगी । परिस्थिति, जरूरत के मुताबिक वह उनका उपयोग कर सकता है। इसका कार्य क्षेत्र सरकारी प्रतिष्ठानों तक ही सीमित नहीं है। अगर कोई ऐसा व्यक्ति या प्रतिष्ठान जो राष्ट्रीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होगा, या उसके प्रतिष्ठान में ऐसे इक्विपमेंट तैयार किये जाते होंगे, जो देश की सुरक्षा से संबंधित होंगे। ऐसे प्रतिष्ठान भी सरकार व विभाग द्वारा निर्धारित प्रक्रियाएं और शर्तों की पूर्ति करके उनकी सेवाएं ले सकते हैं।

निश्चित रूप से यह अधिनियम राष्ट्रीय और प्रादेशिक महत्व के प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के दृष्टि से बहुत उपयोगी हैं । आज की परिस्थिति में इसकी जरूरत भी महसूस की जा रही है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने उन सभी पहलुओं पर अध्ययन किया है, जिससे इनका उपयोग न के बराबर हो । इनके कर्तव्य पालन में किसी प्रकार का अवरोध न उत्पन्न हो, इस कारण इस विशेष सुरक्षा बल को न्यायिक प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है। इसमें भर्ती जवान कोई आवश्यक कदम इसलिए न उठाएं कि उन्हें अदालती पचड़े में फंसना पड़े। इस कारण इस अधिनियम को न्यायिक प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है। इनकी ड्यूटी आवर 24 घंटे का है। यानी ये हर समय ड्यूटी पर माने जाएंगे। दरअसल इन्हीं प्रावधानों की वजह से लोगों के मन मे आशंका है कि कहीं किसी आतंकी घटना में शामिल होने के संदेह पर ही यह बल किसी के साथ कोई ऐसी कार्रवाई न कर दे, जिससे निरपराध उनकी कार्रवाई के शिकार हो जाएं । ज्यादातर लोगों को किसी प्रतिष्ठान की अहमियत नहीं पता होती है । वे हर प्रतिष्ठान को आम फैक्ट्री की तरह ही मानते हैं। स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक होने के नाते थोड़ी सी अकड़ भी होती है । जिसकी वजह से उनके द्वारा दिये गए अल्टीमेटम का भी कोई व्यापक प्रभाव नही पड़ता है। इसी प्रकार की तमाम आशंकाएं मानव मन में हैं। ऐसे में जब तक वह व्यवहारिक रूप में वह बन कर सामने नही आ जाता। उसके कार्य क्षेत्र और अधिकार क्षेत्र का निश्चय नही हो जाता। उसके विभाग का गठन और विभाग द्वारा अपने जवानों और अधिकारियों पर नियंत्रण की प्रक्रिया नही पता चल जाती। तब तक इस तरह की बातें होती रहेगी । बस लोगों को एक ही बात अधिक संदेहास्पद लग रही है । सरकार के हाथ मे इसका नियंत्रण होना और न्यायिक प्रक्रिया से इसका बाहर होना। ऐसे में जो भी प्रदेश का मुख्यमंत्री होगा, उसे बड़ी दूरदर्शिता से इसके सबंध में निर्णय लेना होगा। काश ! विधान सभा और विधान परिषद मै अगर इस पर चर्चा हुई होती, तो इस महत्वपूर्ण अधिनियम को लेकर किसी के मन मे कोई संदेह ही उत्पन्न नही होता ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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