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गाँधी हिंदूवादी, कांग्रेस हिंदुओं की पार्टी --जिन्ना (बँटवारे का मेन विलेन)

गाँधी हिंदूवादी, कांग्रेस हिंदुओं की पार्टी --जिन्ना (बँटवारे का मेन विलेन)
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डॉ प्रमोद कुमार शुक्ला

आजादी के समय भारत -पाक बँटवारे के लेकर नेहरू और गाँधी को दोषी ठहराने के प्रचण्ड दुष्प्रचार को वर्षों से अपना राजनैतिक हथियार बनाने वाली विचारधारा से पोषित कई राजनीतिक दलों द्वारा छद्म ऐतिहासिक तथ्यों के आवरण से सम्पूर्ण भारतीय परिदृश्य को भ्रमित एवं गुमराह करने वाली व्याख्या को पाकिस्तानी मूल के स्वीडिश राजनीति वैज्ञानिक इश्तियाक अहमद ने अपनी नई पुस्तक Jinnah: His Successes, Failures and Role in History'

के माध्यम से पूर्ण रूप से मिथ्या साबित करते हुए, वर्षों से नेहरू और गांधी के विरुद्ध भारतीय जनमानस में फैलाए गए इस विषाक्तता को प्रचुर एंटीडोट देकर , ऐसे भ्रम को सिरे से नकार दिया।

इश्तियाक अहमद के पुस्तक को आधार बना वरिष्ठ पत्रकार मणिमुग्धा शर्मा ने अपने लेख में कहा है कि

इश्तियाक लिखते हैं, महात्मा गांधी और नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारत को एकजुट रखने की बहुत कोशिश की लेकिन पाकिस्तान के कायदे-आजम जिन्ना बंटवारे पर अड़े थे। इश्तियाक का कहना है, 'जिन्ना ने कांग्रेस को हिंदू पार्टी और गांधी को 'हिंदू और तानाशाह' करार देने के लिए कॉम्युनिली हमले का कोई मौका नहीं गंवाया।'

इश्तियाक के दावे के बाद पाकिस्तानी-अमेरिकी इतिहासकार आयेशा जलाल की थिअरी को चुनौती मिल रही है। प्रफेसर जलाल की थिअरी के आधार पर 1980 से यह माना जाता रहा है कि जिन्ना ने कांग्रेस के साथ पावर-शेयरिंग समझौते के लिए अपनी भूमिका निभाई थी। इश्तियाक ने इसके उलट दावा किया है, 'जिन्ना के ऐसे अनहगिनत भाषण, बयान और संदेश हैं जिनमें वह पाकिस्तान बनाने के लिए भारत के बंटवारे की बात कर रहे हैं।' उन्होंने इस बात को भी सही बताया है कि ब्रिटेन बंटवारे के लिए इसलिए तैयार हुआ क्योंकि उसे पता था कि कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त भारत ब्रिटेन के एजेंडा को पूरा नहीं करेगा लेकिन मुस्लिम लीग के नेतृत्व में पाकिस्तान से उसे फायदा होगा।

इश्तियाक अहमद ने जिन्ना के मंसूबों को अत्यधिक स्पष्टता से व्याख्या करते हुए कहा 'मैंने दिखाया है कि जिन्ना ने जब 22 मार्च, 1940 में लाहौर में अपना प्रेसिडेंशल संबोधन दिया और फिर 23 मार्च को रेजॉलूशन के बाद 24 मार्च को पास कराया, उसके बाद जिन्ना या मुस्लिम लीग ने एक बार भी संयुक्त भारत को स्वीकार करने की इच्छा जाहिर नहीं की जबकि उस समय फेडरल सिस्टम ढीला था और ज्यादातर प्रांत सरकार ताकतवर भूमिका में थीं।'

इश्तियाक ने बताया है, ' मुस्लिम लीग को लगता था कि दोनों देशों में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक होंगे। अगर भारत में मुस्लिमों को हिंदू सताते हैं तो पाकिस्तान के हिंदुओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। जब जिन्ना से 30 मार्च, 1941 को सवाल किया गया कि भारत में रह जाने वाले मुस्लिमों का क्या होगा तो उन्होंने गुस्से में जवाब दिया था कि वह 7 करोड़ मुस्लिमों को आजाद कराने के लिए 2 करोड़ को शहीद करने के लिए तैयार हैं। असल में भारत में 3.5 करोड़ मुस्लिम रह गए थे।'

दरअसल 1937 के बाद जिन्ना मुस्लिम राष्ट्रवादी हो गए थे जो हिंदू और मुस्लिमों को अलग-अलग राजनीतिक देश तो मानते ही थे, उनका मानना था कि दोनों कभी साथ नहीं आ सकते हैं। यहां तक कि लखनऊ में 1936 में नेहरू के जमींदारी खत्म करने के भाषण से मुस्लिम जमींदारों को झटका लगा था। जब कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के नेताओं को सरकार में शामिल करने से इनकार कर दिया तो जिन्ना ने इसके जरिए भी मुस्लिमों को साधने की कोशिश की।

इश्तियाक ने ट्रांसफर ऑफ पावर डाक्युमेंट्स जैसे प्राइमरी स्रोतों के आधार पर दावा किया है कि ब्रिटेन को डर था कि भारत, नेहरू जैसे सोशलिस्ट विचारधारा के साथ सोवियत यूनियन के साथ खड़ा हो जाएगा। जबकि जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग पाकिस्तान आगे भी ब्रिटिश साम्राज्य के साथ रहेगा।इश्तियाक ने यह भी दावा किया है कि विभाजनकारी विचारधारा के पोषक जिन्ना सिखों और द्रविड़ों के लिए भी अलग राष्ट्र चाहते थे।

इसीलिए ब्रिटिश सरकार ने जिन्ना को एक टूल के रूप में इस्तेमाल किया। परिणामस्वरूप जिन्ना पूर्ण रूप से मुस्लिम राष्ट्रवादी हो गए थे।

ऐसे में यह स्पष्ट हो गया कि,विभिन्न विपथगामी विचारधारा ने ये भ्रम फैलाया कि जिन्ना पाकिस्तान को धर्मनिरपेक्ष देश के तौर पर स्थापित करना चाहते थे। दरअसल जिन्ना ने अगस्त 11 , 1947 को पाकिस्तान संविधान सभा मे धर्मनिरपेक्षता का ढोंग करते,लोगों को भ्रमित करने का कुत्सित प्रयास किया। इश्तियाक अहमद के अनुसार ,जिन्ना भारतीय सरकार को भ्रमित करना चाहते थे, ताकि भारत में रहने वाले 3.5 करोड़ मुस्लिम समुदाय को सुरक्षित एवं संरक्षित रखें, इसी प्रकार से पाकिस्तान भी हिंदुओ और सिखों को सुरक्षित एव संरक्षित रखेगा।

इस भ्रम के आवरण को आज तक पोषण देने के मंशा , का मूल यही है कि, भारत पाक विभाजन के लिए नेहरू और गाँधी को दोषी बना कर, विभिन्न --विशिष्ट राष्ट्रवादी विचारधारा पुष्पित पल्लवित होती रहे।

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