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पाँच वर्ष की संविदा : सरकारी नौकरी का आकर्षण समाप्त

पाँच वर्ष की संविदा : सरकारी नौकरी का आकर्षण समाप्त
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अपने देश का कोई भी प्रदेश हो, सरकारी नौकरियों के प्रति सभी प्रदेशों में समान रूप से आकर्षण पाया जाता है। जो लोग सरकारी नौकरी पा जाते हैं । उनका भविष्य सुरक्षित हो जाता है। सरकारी नौकरियों में भारी भरकम वेतन मिलता है। जिसकी वजह से सरकारी नौकरी पाने वाले की आर्थिक स्थिति भी बहुत ही जल्द सुदृढ हो जाती है। सरकारी नौकरी पाने वाले अगर अविवाहित हैं, तो दहेज के रूप में उन्हें भारी भरकम धन भी प्राप्त होता है। उसके साथ गाड़ी घोड़ा के अलावा जरूरत का हर सामान भी प्राप्त हो जाता है। इसके बावजूद अपनी बेटी के स्वर्णिम भविष्य के लिए हर लड़की के माता पिता की यही इच्छा होती है कि वह अपनी लड़की का विवाह किसी सरकारी नौकरी प्राप्त लड़के से ही करे। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के संदर्भ में हर माता पिता की भी यही इच्छा होती है कि उसका लड़का अच्छी शिक्षा ग्रहण करने पश्चात उसके लड़के का चयन किसी न किसी सरकारी नौकरी के लिए हो जाये। इसके लिए वह भारी भरकम घूस भी देने को तैयार हो जाता है । इसके लिए वह संबंधित विभाग के अधिकारियों को साधने का प्रयास करता है। नेताओं से पैरवी करा कर विभागीय अधिकारियों पर अपने पुत्र के चयन के लिए दबाव भी बनाता है। यानी वह हर वह प्रयास करता है, जिससे उसके बेटे की सरकारी नौकरी लग जाये । इस कारण सरकारी नौकरी के क्षेत्र में बड़े व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार होता है। सत्ताधारी नेताओं पर ठेके पट्टे के बाद जो सबसे अधिक दबाव होता है, वह सरकारी नौकरियों की वजह से होता है। सरकारी नौकरियों के बारे में एक और बात जो सबसे महत्त्वपूर्ण है । वह यह है कि इंटेलिजेंस पूरी तरह सरकारी नौकरियों में चला जाता है। जिनकी सरकारी नौकरी नही लगती, वही लोग प्राइवेट नौकरियों को वरीयता देते हैं। लेकिन भारी भरकम पैकेज देने की वजह से सरकारी नौकरियों की तरफ थोड़ा सा झुकाव कम हुआ है

उत्तर प्रदेश सरकार सरकारी नौकरियों की दिशा में एक क्रांतिकारी बदलाव करने जा रही है। इस बदलाव के अनुसार समूह ख व ग की सभी रिक्तियों के लिए सबसे पहले पांच साल के लिए प्रतियोगी की संविदा पर नियुक्ति होगी । प्रति वर्ष उसके किये गए सभी कार्यों की ग्रेडिंग की जाएगी । अगर ग्रेडिंग में उसे 60 प्रतिशत से कम अंक मिलते हैं, तो उसकी संविदा समाप्त हो जाएगी । यह प्रक्रिया पूरे पाँच साल चलेगी । अगर 4 साल उसकी कार्य क्षमता 60 प्रतिशत से अधिक रहा और पांचवे साल 60 प्रतिशत से कम हो गई उसकी सेवा स्वत: समाप्त हो जाएगी ।आज ही इस संबंध में सभी प्रमुख समाचार पत्रों में लीड न्यूज के रूप में समाचार प्रकाशित हुए हैं । इसे लेकर समाज मे खूब चर्चा हो रही है। इस समय मैं कोरोना पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान सायकिल यात्रा पर हूँ। अपनी मीटिंगों के दौरान सभी ने सबसे अधिक सवाल संविदा नियुक्ति को लेकर पूछा । मैंने उनकी सारी शंकाओं को निर्मूल करने की कोशिश की। सबसे अधिक सवाल नौकरियों में आरक्षण को लेकर रही। मैंने अभी तक संविदा नियुक्तियों में जो होता है, उसके आधार पर बताया कि संविदा नियुक्तियों पर आरक्षण लागू नही होता है। लेकिन नौकरियों में भर्ती की नई प्रक्रिया लाने बाद भी कोई सरकार आरक्षण की व्यवस्था को समाप्त नही कर सकती । सरकार भी जानती है कि अगर संविदा की भारतीयों में उसने आरक्षण को समाप्त किया, तो बहुत बड़ा आंदोलन शुरू हो सकते। इस कारण सरकार की कोशिश रहेगी कि वह इस समस्या का तोड़ निकाले। पहले की ही तरह अब संविदा नियुक्तियों के लिए रिक्तियां निकाली जाएगी । सभी लोगों ने चर्चा के दौरान इस बात की आशंका जाहिर की कि सरकार के इस कदम से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। जिनके घर के लोग उस विभाग में पहले से हैं, वे अपने कैंडिडेट का चयन भी करा लेंगे। और हर वर्ष होने वाले ग्रेडिंग सिस्टम में अपने परिचित को 60 प्रतिशत से अधिक नंबर भी दिला लेंगे। लेकिन भ्रष्टाचार पर लगाम भी लगेगी संविदा कार्यकाल में संविदा कर्मी को एक फिक्स वेतन मिलेगा। स्थाई सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली कोई भी सुविधा उसे नही मिलेगी । ओएसए कारण सरकारी नौकरियों के संविदाकरण करने की वजह से लोगों का आकर्षण भी कम हो जाएगा।

सरकार की ओर से संविदा पर पांच साल के नियुक्ति के पीछे जो तर्क दिए जा रहे हैं। वे आदर्श तो प्रतीत हो रहे हैं, लेकिन व्यवहारिक कम प्रतीत हो रहे है। सरकार इसके पीछे यश दावा कर रही है कि इससे संविदा कर्मी की दक्षता में विकास होगा। वह अपना काम बड़ी ईमानदारी से करेगा। रोज का काम रोज निपटाएंगे । इससे नैतिकता का विकास होगा और देशभक्ति की भावना बलवती होगी । इतना ही नही की भविष्य में निकलने वाली रिक्तियों में ही यह योजना लागू होगी। बल्कि पूर्व की जितनी रिक्तियां समूह ख और की चल रही है। वे भी इसी नियम के तहत लागू होगी। यानी सभी कर्मचारियों को पांच साल अपनी दक्षता को विकसित करना होगा।

इससे सरकार और सरकारी नौकरियों पर जो दबाव है, वह कम होगा। मेधा का झुकाव निजी फैक्टरियों की ओर भी बढ़ेगा और लोग सरकारी नौकरी करने के बजाय प्राइवेट नौकरियों को वरीयता देंगे। वैसे निजी कंपनियों में नियुक्ति संविदा के तौर पर तो नही होती है। लेकिन फिर भी सरकार की नई नीति की वजह से जो सरकारी नौकरियों म होने वाली है, वैसा प्राइवेट नौकरियों में नही है। लेकिन एक बात तो है कि सरकार ने एक झटके में युवाओं के सपनों पर पानी फेर दिया ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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