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उपेक्षित मुलायम सिंह के सहयोगी और अखिलेश का उनके प्रति कर्तव्य

उपेक्षित मुलायम सिंह के सहयोगी और अखिलेश का उनके प्रति कर्तव्य
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पिछले दो महीने से मैं लगातार पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता के बीच मे हूँ । कोरोना पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान सायकिल यात्रा के तहत गाँव गाँव घूम रहा हूँ। इस दौरान जहां भी यह पता चलता है कि नेताजी के आह्वान पर फलां नेता ने समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में अपने जीवन को होम कर दिया है, तो ऐसे समाजवादी मनीषियों के दर्शन करने और उनसे समाजवाद और समाजवादी पार्टी के विकास यात्रा को समझने, सीखने के लिए अवश्य जाता हूँ । 63 दिनों की लंबी यात्रा में ऐसे दर्जनों मुलायम समर्थकों से बात हुई। हर मुलायम सिंह के समर्थक के साथ तीन घंटे से कम नही बैठे। उनके साथ हुए संवाद में मैंने यह पाया कि जिन लोगों को मुलायम सिंह यादव ने अपने लिए चुना, वे सभी अपने अपने क्षेत्रों में सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ रहे थे। इसे आप यूं भी समझ सकते हैं कि उस समय सामन्त शाही थी, इस कारण उनका सीधा टकराव सामन्तवादी ताकतों के साथ रहा। इस लड़ाई में उन्होंने बहुत कुछ खोया। उनकी खेती बाड़ी जब्त कर ली गई। इसके बावजूद जब वे नही टूटे, तो नाना प्रकार के झूठे केसों में फंसा कर जेल तक भिजवा दिया गया। लेकिन उनके हौसले नही टूटे। उस समय लोग ऐसे सामाजिक न्याय के पुरोधाओं के साथ खड़े नही होते थे। लेकिन उनके कार्यों को व्यापक जन समर्थन प्राप्त था। उनकी संघर्ष की प्रवृत्ति और उनके साथ जुड़े जन समर्थन को समाजवादी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने पहचाना । और जब भी जैसे भी उनसे मुलाकात कर खुद के साथ जुड़ने और उनके लिए उनके नेतृत्व में काम करने के लिए आह्वान किया। उसका असर भी हुआ। सामाजिक न्याय के पुरोधाओं को एक मजबूत समर्थक मिल गया। सहयोगी मिल गया, मददगार मिल गया और मुलायम सिंह को हर क्षेत्र में पार्टी को खड़ा करने के लिए जनसमर्थन वाला नेता मिल गया। अगर हम उत्तर प्रदेश में पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक नजर डालते हैं, तो ऐसे नेताओं को पाते हैं

आज कल उत्तर प्रदेश के हर जिले में जो दो तीन नेता ऐसे दिखाई पड़ते हैं, जिनका प्रभाव सिर एक विधानसभा, एक लोकसभा, एक जिले तक सीमित नहीं होता है। बल्कि उनका प्रभाव पूरे क्षेत्र में होता है। इन नेताओं के संघर्ष और क्षेत्रीय विकास में योगदान की वजह से जनता के बीच इनकी गहरी पैठ होती है। क्षेत्र के लोग इनको चेहरे और गाड़ी से इनको पहचानते हैं। तमाम पदों पर रहने के बाद भी यह लोग बड़े ही साधारण तरीके से जीवन यापन करते हैं। आम आदमी से भिन्न नजर नही आते हैं । इसी शायद इसी कारण जानता इन्हें आज पसंद करती है। आज भी इनसे जनता का मिलना जुलना होता रहता है। जिसकी वजह से इनकी प्रतिष्ठा बनी हुई है। आज भी इनके कहने पर लोग वोट देने के लिए तैयार रहते हैं । हालांकि एक बात जरूर है कि इनका वोट बैंक और पार्टी का वोट बैंक एक ही होता है। क्योंकि इन्होंने अपने और पार्टी को कभी अलग अलग करके देखा ही नही। जो कुछ किया पार्टी के लिए किया। इस कारण सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश के ऐसे समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह के समर्थक या सहयोगी के रूप में आज भी जाने जाते हैं।

उनसे हुए संवाद से कई बार उनकी पीड़ा झलकी। उनकी बातों से ऐसा लगा कि जैसे अखिलेश यादव जब से राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं, तब से उन्हें पार्टी में जो सम्मान मिलना चाहिए, या जिस सम्मान के वे हकदार हैं, वह नही मिल रहा है। इस कारण वे खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं । हालांकि उनकी इस पीड़ा को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह के समझा और उन्हें अपने साथ जोड़ कर सम्मान देने को कोशिश की। मुलायम सिंह के छोटे भाई होने और उनके साथ लंबे समय तक राजनीति करने के कारण सभी का शिवपाल सिंह से आत्मीय संबंध भी रहे। इस कारण लोग शिवपाल सिंह के साथ जुड़ गए। मुलायम सिंह यादव ने अपने सहयोगियों को जो संस्कार दिया है, उस कारण से वे आज भी घर मे तो बैठ नही सकते हैं। इस कारण वे शिवपाल सिंह के साथ चले गए। लेकिन जिस प्रकार प्रगतिशील समाजवादी लोहिया पार्टी बना लेने के बाद भी उनकी आत्मा समाजवादी पार्टी में ही बसी हुई है। उसी प्रकार मुलायम सिंह यादव के सहयोगी नेताओं की आत्मा भी समाजवादी पार्टी में ही बसी हुई है। वे कहां हैं? या घर बैठे हैं, इसका कोई विशेष महत्व है। उनसे हुई चर्चा से ऐसा भी प्रतीत हुआ कि उन्हें पार्टी या अखिलेश यादव से टिकट या चुनाव लड़ने की कोई इच्छा नही है। वे पद भी नही चाहते । वे केवल इतना चाहते हैं कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से उन्हें सम्मान और आदर मिलता रहे।

मैंने ऊपर कहा है कि मुलायम सिंह यादव के ऐसे साथी जो जिन्होंने अपने अपने क्षेत्रों में पार्टी को खड़ा करने, जनता में पैठ बनाने, सामाजिक न्याय की निर्णायक लड़ाई लड़ी, वे घर नही बैठ सकते। वे आज भी पहले की तरह सुबह ही नित्य क्रिया से निवृत्त होकर, नहा धोकर अपनी बैठक में बैठ जाते हैं। कुछ अखबार पढ़ते हैं, कुछ लोहिया की लिखी हुई किताब पढ़ रहे हैं। लेकिन जब कोई समाजवादी पार्टी की या 2022 के चुनाव की बात छेड़ देता है, तो उनकी भुजाएं फिर फड़क उठती है। फिर वे समाजवादी पार्टी के जीत हार पर विचार करने लगते हैं, आगे जीत कैसे होगी, उसका गणित गुणा लगाने लगते हैं। कहाँ क्या किया जाए कि पार्टी प्रत्याशी की जीत हो जाये। किसे टिकट दिया जाए कि 2022 में आसानी से सरकार बन सके ।

ऐसे में जब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव 2022 में सरकार बनाने और 351 प्लस विधानसभा सीटें जीतने का ऐलान कर चुके हैं। कोरोना संक्रमण काल के बाद भी ऊज़ दिशा में काम करते दिखाई दे रहे है। ऐसे समय मे उन्हें अपने पिता और समाजवादी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष रहे मुलायम सिंह यादव के सहयोगियों के बारे मे भी विचार करना चाहिये। कि उन्हें पार्टी की मुख्यधारा में कैसे लाया जाए । और उनका आगामी विधानसभा चुनाव में कैसे उपयोग किया जाए।

इस सबंध में जब मैंने उनसे ही यह सुझाव मांगा कि आप स्वयं बताएं कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को आपको जोड़ने के लिए क्या करना चाहिए ? तो उन्होंने बिना किसी लाग लपेट के कहा कि ऐसा सिर्फ एक ही रास्ता है, जिससे दोनों का सम्मान बना रहेगा। न तो समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को नागवार लगेगा, और न मुलायम सिंह यादव के सहयोगियों को। सर्व प्रथम अखिलेश यादव को क्षेत्र वाइज ऐसे नेताओं की एक लिस्ट बना लेना चाहिए। उनके कॉन्टैक्ट नंबर भी लिख लेना चाहिए। इसके बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला कर ऐसे समाजवादियों से सामूहिक अपील करना चाहिए कि जो भी नेताजी मुलायम सिंह यादव के साथ रहे, उनसे मैं पार्टी में आने की अपील करता हूँ। आप आएं और 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए नेताजी के सपनों को साकार करें । इसके बाद वे उनके मोबाइल नंबर पैर फोन करवा लें। इससे एक बार फिर समाजवादी पार्टी बूम कर उठेगी। और 2022 के विधानसभा चुनाव में जीत के लिए जमीन तैयार हो जाएगी । और 2022 के लिए अखिलेश यादव ने 351 प्लस का जो लक्ष्य निर्धारित किया है, उसे पाना आसान हो जाएगा।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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