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राजनीतिक फोटोमीनिया, अखिलेश और उसके साइड इफेक्ट

राजनीतिक फोटोमीनिया, अखिलेश और उसके साइड इफेक्ट
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कोई भी राजनीतिक दल हो, उसके कार्यकर्ता और नेता की यह ख़्वाहिश होती है कि उसकी एक फोटो उस नेता के साथ हो, जिसके लिए वह काम करता है। जो उसका आदर्श है। जिससे प्रभावित होकर वह राजनीति में आया है । इस कारण जबसे यह प्रविधि प्रकाश में आई, नेताओं के साथ उसके समर्थकों, कार्यकर्ताओं और नेताओं के फोटो भी नजर आने लगे। लेकिन अपने प्रारम्भिक समय में इसकी गति और मात्रा बहुत कम हुआ करती थी। लेकिन जब से सोशल मीडिया और एंडरायड फोन का जमाना आया। किसी भी व्यक्ति या नेता के साथ फोटोग्राफ़्स लेना सहज हो गया । राजनीति में इसे प्रचारित करने का श्रेय समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को जाता है । राजनीति में जो सेल्फी लेने युग आया, उसकी शुरुआत भले ही दूसरे नेताओं ने की हो, लेकिन उत्तर प्रदेश में उसे भी प्रचारित करने का श्रेय अखिलेश को जाता है, यह कहूँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसका कारण है कि साफ-सुथरी छवि और युवा नेता होने के कारण हर कोई चाहता था, उनके साथ उसकी एक सेल्फी हो। मुख्यमंत्री बनने के पूर्व और बाद तो यह चरम पर पहुँच गई । अपने शुरुआती दौर में अखिलेश यादव सेल्फी अपने परिचितों को देते रहे। लेकिन बाद में समाजवादी पार्टी कार्यालय पर आने वाले हर कार्यकर्ता / नेता इसकी मांग करने लगे, तो वे सहज हो गए, और सबसे साथ वे सेल्फी खिचवाने लगे। हालांकि विपक्ष में आने के बाद उस पर कुछ ब्रेक तो लगा, लेकिन आज भी अधिकांश युवा नेता यही चाहते हैं या डिमांड करते हैं कि उनके साथ एक सेल्फी या फोटो हो जाए। कुछ विसंगतियों का पता चलने के बाद सेल्फी पर उन्होने रोक लगा दी। लेकिन फोटो खिचवाने की प्रक्रिया चलती रही, और जितने लोगों के पास अखिलेश यादव से साथ फोटो होती है, वे उसे अपनी फेसबुक पर अवश्य पोस्ट करते हैं। यह भी देखने को मिला कि कुछ नेता या कार्यकर्ता एक ही फोटो को एडिट करके बार-बार लगाने लगे। इससे ऐसा संदेश जाने लगा कि ये लोग जब चाहते हैं, अखिलेश भैया से मिल लेते हैं। इससे उनकी झूठी शान में इजाफा हुआ । लेकिन जल्द ही उसके साइड इफेक्ट भी दिखाई पड़ने लगे ।

राजनीतिक जगत में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अखिलेश यादव को एक साफ-सुथरी छवि का राजनेता माना जाता है। वे हैं भी। और इसके लिए अपनी पार्टी में बाहुबलियों और अपराधियों के लिये जो रोक लगाई, वह काबिलेतारीफ है। उनके इस कदम से एक सौम्य, सुशील और चरित्रवान नेता के रूप में वे प्रतिष्ठित हुए । लेकिन सबके साथ उनकी फोटो खिचाने की आदत और परंपरा के कारण काफी नुकसान हुआ। गैंगस्टर विकास दुबे को लेकर समाजवादी पार्टी और खुद अखिलेश यादव ने काफी आक्रामक रुख अपनाया, वे मीडिया के सामने भी आए और उन्होने विकास दुबे की सीडीआर सार्वजनिक करने की चुनौती भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दे डाली । लेकिन उसके दूसरे दिन बिकरू कांड को लेकर डीजीपी द्वारा घोषित अपराधियों की लिस्ट में से मुंबई में गिरफ्तार किए गए एक अपराधी के साथ अखिलेश यादव की एक फोटो भी दिखाई जाने लगी। जो सपा कार्यालय या किसी कार्यक्रम की है। अभी इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। इसके बाद विरोधियों और विपक्षियों दोनों को यह मौका मिल गया और उन्होने अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी, दोनों पर सवाल उठाना शुरू कर दिया । पूरी पार्टी बैकफुट पर आ गई । विरोध की तीक्ष्णता में कमी है। अखिलेश यादव की एक साफ-सुथरी छवि जो लोगों के दिमाग में बसी हुई थी, वह ब्रेक हुई और लोगों को विश्वास होने लगा कि इनके भी अपराधियों से संबंध हैं। मैं इसे सबसे बड़ा नुकसान मानता हूँ। इससे सत्ताधारी दल को घेरने का एक बहाना मिल गया। हालांकि उनके कानून मंत्री के साथ खुद विकास दुबे की तस्वीर भी वायरल हो रही है। इससे वे बैकफुट पर भी आए थे, लेकिन अखिलेश की तस्वीर वायरल होते ही वे फिर आक्रामक मूड में आ गए। और सपा प्रवक्ताओं को टीवी पर बोलने नहीं दिया । मेरा अपना मानना है कि यह इतना बड़ा मसला नहीं है, लेकिन अखिलेश यादव और उनकी पार्टी इसका विरोध किस प्रकार करती है, यह देखने की बात है ।

राजनीति में नेताओं और कार्यकर्ताओं में यह फोटोमीनिया जो आई, उसकी वजह से पहले नुकसान न हुआ हो, ऐसा नहीं है। समाजवादी पार्टी की जो सत्ता में जो वापसी नहीं हुई, उसका एक कारण अखिलेश की फोटो खिचवाने की प्रवृत्ति रही है। हालांकि उसके पीछे उनका अभिप्राय उनके चरित्र की तरह बिलकुल पाक-साफ रहता है। लेकिन सपा कार्यकर्ताओं और नेताओं ने उसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। फेसबुक या ट्यूटर की अपनी डीपी पर उन्होने अखिलेश के साथ वाली फोटो लगाई। उसे खूब शेयर किया और ऐसा प्रदर्शित किया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री से उसके बेहद नजदीकी संबंध भी हैं। वे जब चाहें मिल सकते हैं, जब चाहें बात कर सकते हैं। ऐसे नेताओं और कार्यकार्ताओं ने अपने किसी घनिष्ठ साथी का फोन नंबर अखिलेश के नाम से सेव कर लिया। और एक रणनीति के साथ, जब कहीं ऐसे जगह होते, जहां अखिलेश के साथ अपने सम्बन्धों का प्रदर्शन करना होता, या तो वे फोन करके तुरंत बात करते हुए दिखाई देते, और हद तो तब हो जाती, जब कभी-कभार मुख्यमंत्री होते हुए अखिलेश यादव का फोन उनके मोबाइल पर खुद आ जाता है। इस प्रकार के खुराफाती दिमाग के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने समाजवादी पार्टी और अखिलेश की छवि धूमिल करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। वे पैसे कमाने के लिए राजनीति में आए थे, और उन्होने खूब पैसे भी कमाए । फोटो दिखा-दिखा कर, या बात सुना-सुना कर अधिकारियों से लेकर आम आदमी पर अपना प्रभाव जमाया । ट्रांसफर – पोस्टिंग और काम करवाने, नौकरी लगवाने, मिलवाने के नाम पर खूब धन उगाही की । मिलवाने के लिए उन्होने अखिलेश यादव के इर्द-गिर्द रहने वालों से भी साँठ-गांठ करके उन्हें भी अपने कुचक्र में फंसा लिया, और बिना किसी रोक-टोक के अपना कार्य करते रहे। इस कारण बड़े पैमाने पर जमीनी स्तर पर समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव की छवि खराब होती रही। और अंदर ही अंदर अखिलेश यादव की प्रशंसा करते हुए भी उनके ही समर्थक और इनकी ठगी के शिकार लोग पार्टी की बुराई करने लगे। सरकार रहने और सरकार के आने की संभावना के कारण उनके खिलाफ जनाक्रोश नहीं उभरा । लेकिन मन ही मन लोगों ने पार्टी से दूरी बनाना शुरू कर दिया। अधिकांश लोगों का न तो काम हुआ, और न पैसे लौटाए गए। आज भी उनके पैसे फंसे हुए हैं। अब ऐसे नेता और कार्यकर्ता लाचारी व्यक्त करते हैं कि सरकार नहीं, जब आएगी, तो आप काम करवाया जाएगा । ऐसे नेता आज भी लखनऊ में ही जमे रहते हैं। अब सपा की बजाय भाजपा के राजनीतिक गलियारों में उठते-बैठते देखे जा सकते हैं। लेकिन उन्होने संबंध सपा के साथ भी नहीं तोड़ा है। वे रात के अंधरे में इधर आते हैं तो दिन के उजाले में उधर जाते हैं। उनका व्यापार आज भी धड़ल्ले से चल रहा है ।

अखिलेश के साथ फोटो खिचवाने का दूसरा सबसे अधिक यह नुकसान हुआ कि सपा के युवा नेता जब मिल लेते थे और फोटो खिचवा लेते थे। तो समाजवादी पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को दिखा-दिखा कर चिढ़ाते थे कि आप इतने सालों से पार्टी की सेवा कर रहे हैं, आपको क्या मिला ? यह देखिये ! अखिलेश भैया के साथ फोटो और फिर अखिलेश भैया के नाम से सेव किए हुए अपने ही किसी दोस्त से बात करके यह भी दिखाने का प्रयास करते थे कि आपकी तो बात ही नहीं हो सकती, हमारी तो जब चाहते हैं बात हो जाती है। हमारी तो इतनी नजदीकी है कि वे खुद फोन करके हमारी और क्षेत्र में पार्टी और नेताओं के बारे में पूछताछ करते रहते हैं । इसकी भी शुरुआत अखिलेश यादव की तरफ से हुई । शुरू-शुरू में अखिलेश यादव जब खाली बैठे होते थे, तो अपने किसी युवा कार्यकर्ता या नेता को फोन कर लेते थे। लेकिन उनके यह युवा कार्यकर्ता बेहद चालाक निकले। उन्होने उनकी बातचीत को रिकार्ड करना शुरू कर लिया और फिर इसके बाद वे उस रिकार्डिंग को अपनी पार्टी के बड़े नेताओं को सुनाते और उन पर अपना प्रभाव जमाते। उसका उपहास उड़ाते । हालांकि जल्द ही इसकी सूचना अखिलेश यादव को मिल गई। तबसे उन्होने बात करने की इस प्रक्रिया पर विराम लगा दिया । अब वे उन्हीं से बात करते हैं, जिसे वे अच्छी तरह जानते हैं । इससे पार्टी के बुजुर्ग नेता निष्क्रिय हो गए और यह कहते हुए सुने गए कि अब यही लोग पार्टी चलाएं । देखने कैसे चुनाव जीतते हैं। और वे चुनाव के समय भी रूठे रहे। ऐसे युवा नेताओं का कोई जनाधार तो नहीं। जो लोग इन्हें जानते थे, उनकी दृष्टि में इनकी इमेज नेता की नहीं, लफंगे या ठग की बनी हुई थी। उनकी वजह से जो पार्टी की छवि बनी। उनकी वजह से जो पार्टी के लिए चुनाव के समय स्वेच्छा से काम करते रहे। वे निकले नहीं। न ही किसी को वोट देने को प्रेरित किया। इस कारण पार्टी हार गई ।

इस फोटोमीनिया का एक और दुष्प्रभाव हुआ। जो भी कार्यकर्ता अखिलेश यादव से मिल लेता और अखिलेश यादव उससे कहते कि जाओ अपने क्षेत्र में मिलजुल कर काम करो। तो वहाँ से क्षेत्र में पहुँच कर पार्टी के दस कार्यकर्ताओं को लेकर दूसरे दिन से क्षेत्र में घूमने लगता और वही फोटो दिखा-दिखा कर लोगों को बरगलाने लगता । और अपने साथ रहने वाले कार्यकर्ताओं को भी एकाध बार मिला देता। इसके कारण हर जिले में ऐसे सैकड़ों गुट खड़े हो गए। इनकी वजह से बड़े नेता कमजोर हो गए। उनके पास कार्यकर्ताओ का टोटा हो गया । अगर इस प्रकार के गुट वालों को बुला कर प्रचार करने को कहा गया, तो उन्होने एक पैसा भी लिया, प्रचार करने के बजाय होटलों में जाकर एंजॉय किया ।

बिना अच्छी तरह परिचित हुए हर किसी के साथ फोटो खिचाने से निष्कलंक चरित्र पर दाग तो लगा । उसके ही कारण सत्ता से भी दूर हो गए। इसलिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को अपनी इस प्रवृत्ति पर लगाम लगाना चाहिए। फोटोग्राफ़्स खिचवाएं, लेकिन उसके पहले यह सुनिश्चित कर लें कि कहीं वह अपराधी तो नहीं है या कहीं वह उसका गलत इस्तेमाल तो नहीं करेगा ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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