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समाजवादी पार्टी की आंतरिक चुनौतियाँ और अखिलेश

समाजवादी पार्टी की आंतरिक चुनौतियाँ और अखिलेश
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समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव 2022 के चुनाव को लेकर काफी संजीदा दिखाई दे रहे हैं। आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर उन्होने 351 सीट जीतने की घोषणा भी कर दी है । इसके बाद समाजवादी पार्टी के हर कार्यकर्ता और नेता ने यह मान लिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में वे 351 सीटें जरूर जीत रहे हैं। अपनी चर्चाओं में जब मैं उनसे उनकी ही विधानसभा की जीत और हार पर चर्चा करता हूँ, तो वे बगले झाँकने लगते हैं और इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार की कमियाँ गिनाने लगते हैं और कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में सत्तासीन योगी सरकार कुछ नहीं कर रही है । योगी सरकार इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आगे किसी की चल नहीं रही है । जिस प्रकार केंद्र में अमित शाह और मोदी की जोड़ी के अलावा किसी नहीं चल रही है और पूरी सरकार मोदी और अमित शाह के नाम से जानी जा रही है, उसी प्रकार उत्तर प्रदेश में भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और संगठन मंत्री सुनील बंसल की जोड़ी मशहूर हो चुकी है । दूसरे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आभा मण्डल के आगे अन्य सभी नेता, विधायक व मंत्री इतने फीके हो गए है कि अंतर्मुखी से दिखाई पड़ते हैं । इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर आम कार्यकर्ता तक एक तोहमद और लगाता है कि योगी सिर्फ अखिलेश भैया द्वारा कराये गए कार्यों का ही लोकार्पण करा रहे हैं । इस पर जब मैं यह कहता हूँ कि आपकी बात सही है, इसमें झूठ नहीं है। लेकिन एक बात बताओ कि अगर आपकी सरकार 2022 में बन जाती है, और उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा शुरू किए हुए तमाम काम पूरे नहीं हो पाते हैं, तो क्या अखिलेश सरकार उसे वहीं रोक देगी, पूरा नहीं कराएगी। तब कहते हैं कि निश्चित रूप से कराएगी । उसमें प्रदेश की जनता का पैसा लगा हुआ है और वे सभी कार्य प्रदेश की जनता के हित के लिए शुरू कराये गए हैं। इस पर जब मैं जब मैं यह कहता हूँ, वही तो वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी कर रहे हैं, जो कार्य अखिलेश की सरकार में अधूरे रह गए थे, उसे पूरा कराने के बाद न तो आप उनके नाम का पत्थर लगवाएंगे और न वे लगवा रहे हैं। इसके बाद वे चुप हो जाते हैं । फिर वे मुझसे पूछते है फिर हमें क्या करना चाहिए ? मैं कहता हूँ कि आप जो कर रहे हैं, वह ठीक है । राजनीति में बने रहने के लिए इस प्रकार के मुद्दे उठाते रहना चाहिए, चिल्लाते रहना चाहिए, जिससे लोगों के दिमाग से यह विस्मृत न हो जाए कि यह जो सड़क या पल बना है, उसकी शुरुआत अखिलेश यादव ने कारवाई थी। लेकिन जो सच्चाई मैंने ऊपर बताई है, उसे भी ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि अगर आज आप चिल्ला रहे हैं, तो कल जब 2022 में आपकी सरकार बन जाएगी, तो वे भी चिल्लाएँगे। यह आम चर्चा जो मुझसे प्राय: भ्रमण के समय सपा नेता और कार्यकर्ता करते रहते हैं, उसका जिक्र मैंने किया । अब मैं अपने मूल विषय पर आता हूँ और उस पर बिन्दुवार चर्चा करता हूँ ।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने 2022 चुनाव में 351 का आकड़ा छूने में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि उनका बूथ कार्यकर्ता उनके नेताओं और कार्यकर्ताओं से बेहद नाराज है । समाजवादी विचारधारा का होने के नाते वह पार्टी से जुड़ा जरूर है, लेकिन उसने अब खुद को सीमित कर लिया है । अब वह जहां उठता – बैठता है, वहाँ समाजवादी पार्टी की चर्चा नहीं करता है । अगर करता भी है तो बस इतना ही कहता है कि हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव तो ठीक हैं, लेकिन हमारी उन तक पहुँच ही नहीं है। न हमारे पास इतना पैसा है कि हम लखनऊ आ जा सके । अगर कभी हिम्मत और पैसा जुटा कर वहाँ गए भी तो मिलना नहीं हो पाया । जब मैं उनके पास बैठता हूँ, उनके सर पर हाथ फेरता हूँ, उनके हित की दो चार बातें करता हूँ, तब वे पिघलते हैं और अपना दर्द बताते हैं कि किस तरह 2012 के चुनाव में उन्होने वोट दिलाने के नाम पर अपने मुहल्ले, गाँव वालों से क्या-क्या वायदे किए थे। हालांकि अखिलेश सरकार ने काफी अच्छे कार्य किये, लेकिन उनका एक भी कार्य पूरा नहीं हुआ। सरकार के दौरान वे सपा कार्यालय दौड़-दौड़ कर, विनती कर-करके थक गए। लेकिन कुछ नहीं हुआ। फिर सरकार के दौरान तो छोटे से लेकर बड़े नेता तक सभी अखिलेश हो गए थे। कोई सीधे मुंह बात भी नहीं करता था। अगर किसी तरह से उनसे मिलना भी हो जाता था, अभी ठीक से अपनी बात पूरी नहीं की, यह कह कर भगा देते थे कि चलो हम समझ गए कि क्या कहना चाहते हो ? तुम्हारा काम हो जाएगा और अपने पास खड़े किसी नेता को इशारा करते हुए कहते थे कि अपना प्रार्थना पत्र इन्हें दे दो, काम हो जाएगा । अब यहाँ आना नहीं। फोन से बात कर लेना । और फिर न तो ऐसे नेता फोन उठाते और काम तो होता ही नहीं । 2017 के चुनाव में उसकी उपेक्षा का ही परिणाम रहा कि मीडिया से लेकर एक आम आदमी तक अखिलेश सरकार की पुनर्वापसी की बात तो कर रहे थे, लेकिन वह आ नहीं पाई । इसके बाद भी न तो समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के व्यवहार में अंतर आया और न ही उनके संगठन और नेताओं में ही कोई परिवर्तन आया । अपने भ्रमण में मैं पाता हूँ कि अधिकांश सपा कार्यालय खाली पड़े रहते हैं। जिला अध्यक्ष और उनसे सहानुभूति रखने वाले दो – चार पदाधिकारी उनके साथ बैठे रहते हैं। वहाँ बैठ कर वे पार्टी की बेहतरी के लिए कोई चर्चा करते हों, आज तक कोई नेता ऐसा करते नहीं मिला। हाँ, यह जरूर मिला कि वहाँ बैठ कर भी लोग अपनी ही पार्टी के किसी नेता, पदाधिकारी या कार्यकर्ता पर टिप्पणी करते रहते हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि उनकी टिप्पणी गलत होती है, लेकिन ऐसी टिप्पणियों का महत्त्व क्या है ? मैं यह समझ नहीं पाता हूँ। इसके स्थान पर तो यह होना चाहिए कि उस अन्यमनस्क कार्यकर्ता, पदाधिकारी या नेता को बुला कर उसकी समस्याएँ क्या हैं ? उसके मन में क्या चल रहा है ? इस पर चर्चा करना चाहिए और उसका समाधान देना चाहिए । लेकिन यह सब नहीं होता है। उल्टे बैनर और पोस्टर में उसकी फोटो बड़ी कैसे हो गई, उसकी छोटी कैसे रह गई, उसे तो ऊपर लगना चाहिए, वह उस नेता का खास है, इसलिए उसने ऐसा किया है । इस प्रकार की चर्चा करके मन में एक फांस फंसा ली जाती है ।

इसके साथ-साथ यह भी देखने को मिल रहा है कि अगर कुछ विशेष लोगों को छोड़ दें, तो कोई भी पूर्व विधायक या मंत्री जिला कार्यालय पर न बैठता है, न जाता है। मुझे तो यहाँ तक देखने को मिला है कि अगर कोई कार्यक्रम भी संगठन द्वारा आयोजित किया जाता है, और उन्हें निमंत्रित भी किया जाता है, तो भी कई बहाना बना देते हैं और वहाँ तक नहीं पहुँचते हैं, और कई अगर पहुँच जाते हैं, तो कोई न कोई बहाना बना कर जल्दी वहाँ से सरक लेते हैं। ऐसे कार्यक्रमों में उस जिले कार्यकर्ता इसलिए जुटते हैं कि चलो मंत्री जी या विधायक जी, अध्यक्ष जी से भेट हो जाएगी और कुछ चर्चा और आगे क्या करना है ? इसका दिशा निर्देश भी मिल जाएगा। हम क्या करना चाहते हैं ? 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर । उन कार्यक्रमों को कब – कब और कहाँ-कहाँ आयोजित किया जाए, इस पर भी चर्चा हो जाएगी और कुछ मदद भी मिल जाएगी। पर ऐसे सभी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को निराश हो लौटना पड़ता है। या तो वे माननीय वहाँ आते ही नहीं, अगर आते हैं, तो उनसे कोई बात भी नही हो पाती है। ऐसे में जब अखिलेश यादव 351 जीतने की बात कर रहे हों, अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश भर रहे हों, जुट जाने को कह रहे हों। ऐसे में उनका यह हाल है ।

इस दौरान एक दूसरी बात और देखने को मिल रही है। मैंने अपने भ्रमण में पाया कि समाजवादी पार्टी के ऐसे मजबूत और उपेक्षित बूथ नेताओं पर योगी सरकार, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवकों की खूब नजर है। जैसे ही उन्हे पता चलता है कि उनके ऊपर कोई मुसीबत है, वे मदद के लिए दौड़ पड़ते हैं, और मदद करके उन्हें अपना बना लेते हैं । अभी तक मेरे पास जो आकडा है कि उसके अनुसार भाजपा, सरकार और आरएसएस ने उनके कम से कम 30 प्रतिशत बूथ कार्यकर्ताओं की मदद कर उन्हें अपने संबंध में सहानुभूति रखने को विवश कर दिया है ।

मैं जब क्षेत्रों में भ्रमण पर रहता हूँ, इसलिए उनकी कार्यशैली भी देखने – सुनने का मौका मिलता है । उन्होने ऐसे सभी लोगों को लेकर एक पूरा कार्यक्रम बना रखा है। किसका कहाँ और कब उपयोग करना है। यह सब सुनिश्चित है ।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की छवि अच्छी है, रणनीति के कुछ पहलू जो देखने और सुनने को मिल रहे हैं, वे भी सही हैं। लेकिन उसे क्रियावान्वित करने काम तो कार्यकर्ताओं / बूथ लेवल नेताओं को ही करना है। वे स्वत: सक्रिय होते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं । जब कोई बुलाता है, तो मना भी नहीं करते। चले भी जाते हैं, वे जो काम बताते हैं, वे कर भी देते हैं। लेकिन अकेले । पहले ऐसा नहीं था, पहले वह स्वत:स्फूर्त था, खुद जाता था और बिना किसी निर्देश के जनता के बीच में अपनी, अपनी पार्टी और अखिलेश की चर्चा करते रहते थे। अब वह नहीं पाया जा रहा है।

एक बात तो स्वयं सिद्ध है कि अब स्थानीय नेताओं से न वे समझने वाले हैं, और स्वत:स्फूर्त होने वाले हैं। पिछले 8 सालों से वे जिस तरह उपेक्षित और असम्मानित हुए हैं, उससे वे खुद तो जुड़े रहेंगे । लेकिन एक व्यक्ति के रूप में काम करेंगे। अपने साथ न तो किसी को लेंगे और न किसी को आने के लिए आमंत्रित करेंगे । न यह समाजवादी दर्शन के अनुरूप है, पार्टी के लिए हितकर। ऐसे में बूथ लेवल और छोटे कार्यकर्ताओं को स्वत:स्फूर्त करने और 2022 में 351 का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अखिलेश को आगे आना होगा, और बूथ लेवल के सभी कार्यकर्ताओं, जो वोट दिला कर पार्टी की जीत सुनिश्चित करते हैं। उनके साथ बैठना होगा। पहले चरण में उनकी बातें सुननी होगी। उनके मन में जो मलाल है, उसे बाहर करना होगा और फिर दूसरे चरण में उन्हें प्रोग्राम और विश्वास देकर क्षेत्रो मे भेजा होगा। तभी यह लक्ष्य संभव हो सकता है, और तभी 2022 में सरकार बनाने की कल्पना साकार हो सकती है ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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