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उत्तर प्रदेश की राजनीति पर अपराधियों का कब्जा

उत्तर प्रदेश की राजनीति पर अपराधियों का कब्जा
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कानपुर के गाँव बिकरू की घटना के बाद एक बार फिर पूरे देश में उत्तर प्रदेश की राजनीति और उसके अपराधीकरण पर चर्चा होने लगी है। इस समय हर कोई अपराधियों के हिसाब से उत्तर प्रदेश की राजनीति को देखने का प्रयास कर रहा है । उत्तर प्रदेश की राजनीति और अपराधियों में उसकी भागीदारी को लेकर जब हम विहंगम दृष्टि डालते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि एक आम इंसान यहाँ राजनीति कर सकता है। जिधर देखों, उधर अपराधी ही अपराधी नजर आते हैं । सत्तर से 90 के दशक तक अपराधी राजनीति को प्रभावित करते रहे। लेकिन उसके बाद एक परिवर्तन आया । नेताओं को चुनावी जीत दिलाने वाले अपराधियों ने राजनीति में शामिल होने और चुनाव लड़ना शुरू किया। जीत भी दर्ज की और देखते ही देखते ही अधिकांश अपराधी चुनाव जीत कर उत्तर प्रदेश की विधानसभा और लोकसभा के माननीय बन गए हैं । लेकिन उन माननीयों पर विचार करने के पहले आइये उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक दूसरा पहलू भी समझ लेते हैं ।

दरअसल अपराध की दुनियाँ से राजनीति में आए इन माननीय लोगों की यहाँ की जनता के एक बड़े वर्ग में स्वीकार्यता है। उनकी दृष्टि में वे मसीहा हैं । अगर उनकी गतिविधियों का विश्लेषण किया जाए, तो इस प्रकार के बदमाशों की की जन स्वीकार्यता है । उसका कारण यह है कि यहाँ के अपराधी गरीब, मजलूम, निरीह लोगों को नहीं सताते हैं। उनकी जो सारी लड़ाई है, सारी प्रतिस्पर्धा है, वह ठेकेदारी से लेकर जरायम की दुनिया पर कब्जा करने की है । बदमाश से माननीय बने लोगों के कारोबार पर दृष्टि डालें तो बालू खनन से लेकर तमाम बड़े ठेके में उनकी ही किसी न किसी रूप में भागीदारी है । अकूत संपत्ति और राजनीति में आने के बाद प्रतिष्ठा पा जाने वाले इन माननीयों ने अपने क्षेत्र या अपने प्रभाव क्षेत्र की जनता की शादी-ब्याह से लेकर बीमारी-आजारी में मदद करना आम बात है। एक और बात और देखने को मिली कि इनके प्रभाव की क्षेत्रीय जनता को अगर कोई सताने, उनकी जमीन पर कब्जा करने, उनको परेशान करने, मारने-पीटने की धमकी देने या मारने-पीटने के बाद ये लोग पुलिस के पास के जाने पहले ऐसे माननीयों के पास जाते हैं, जिनके प्रभाव और उनकी कार्यशैली को वहाँ की जनता जानती है । आइए अब उत्तर प्रदेश के ऐसे पाँच माननीयों की बात कर लेते हैं, जो उत्तर प्रदेश की विधानसभा में सुशोभित कर रहे हैं –

पहला नाम है विजय मिश्रा का है । जो मूल रूप से कार्पेट नागरी भदोही के रहने वाले हैं। मुख्यालय से 50 किलोमीटर की दूरी पर उनका गाँव धानापुर स्थित है । शिक्षा-दीक्षा पूरी होने के बाद व्यापार करने के लिए ये भदोही शिफ्ट हो गए और वहाँ एक पेट्रोल पंप खोल कर अपनी आजीविका चलाने लगे । इसके साथ ही ट्रांसपोर्ट की दुनिया में भी कदम रखा । और धीरे-धीरे इस क्षेत्र में भी अपनी बादशाहत कायम कर ली । लगभग एक दशक व्यापार कर लेने के बाद इनकी दिलचस्पी धीरे-धीरे राजनीति में होने लगी। प्रभावी और पैसा होने के कारण शुरू से ही क्षेत्रीय दलों के साथ इनकी नज़दीकियाँ रही। चुनाव के समय चंदा से राजनीतिक दलों की मदद करना एक आम बात थी। उस समय कांग्रेस एक प्रभावी राजनीतिक पार्टी थी। केंद्र और उत्तर प्रदेश की राजनीति में उसकी अहम भागीदारी होती थी इस कारण उन्होने कांग्रेस ही अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की । इसी दौरान उनका संपर्क समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव से हुआ । उनके प्रभावी व्यक्तित्व और अपनी राजनीतिक अभिलिप्सा की पूर्ति हेतु वे समाजवादी पार्टी में आ गए । इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने 2001 के विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट दिया और उन्होने जीत भी दर्ज की । साथ ही आस-पास की विधानसभा सीटों पर प्रभावी भूमिका निभाने के कारण उनकी अहमियत मुलायम सिंह यादव के नजरों में अधिक हो गई । इसके बाद सपा के ही टिकट पर उन्होने 2007 और 2012 में लगातार जीत दर्ज की । लेकिन पार्टी की बागडोर अखिलेश यादव के हाथ में आने के कारण उन्होने अपराधियों को टिकट न देने के सिद्धान्त पर अमल करने की वजह से उनको टिकट नहीं दिया । तो वे 2017 का विधानसभा चुनाव निषाद पार्टी से टिकट लेकर लड़े और फिर जीत कर विधायक बन गए ।

अब हम विजय मिश्रा के आपराधिक जीवन की भी चर्चा कर लेते हैं। विजय मिश्रा शुरू से ही दबंग रहे। ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र होने की वजह से उन्हें अपने समाज के प्रभावी और संभ्रांत लोगों का संरक्षण भी मिला । धीरे-धीरे उनके अपराध की फेहरिश्त बढ़ती गई और एक समय ऐसा आया कि उनके ऊपर 60 से अधिक आपराधिक केस विभिन्न थानों में दर्ज हुए । 2017 का चुनाव लड़ते समय उन्होने अपने हलफनामे में 16 आपराधिक केस होने की बात स्वीकार की । लेकिन इस संबंध में बक़ौल विजय मिश्रा का कहना है कि यह सब उनके राजनीतिक विरोधियों की चाल है । उन्होने षडयंत्र के तहत उन्हें फंसाया है । जुलाई 2010 में बसपा की सरकार थी और उन पर जानलेवा हमला हुआ था। उसमें पहली बार विजय मिश्रा का नाम आया । इसी महीने 12 जुलाई को नंदी पर बम से हमला हुआ, उसमें नंदी तो बच गए, लेकिन उनका एक सुरक्षाकर्मी और एक पत्रकार की मौत हो गई। इस कांड में भी विजय मिश्रा को आरोपित किया गया । इसी तरह से कई वारदातों में उन्हें आरोपित किया गया। लेकिन जब हम उनकी जनता के बीच स्वीकार्यता को देखते हैं, तो जबसे उन्होने चुनाव लड़ना शुरू किया, वे लगातार जीतते रहे । यहाँ तक 2017 में जब मोदी लहर चल रही थी, एक बहुत छोटे राजनीतिक दल के उम्मीदवार के रूप में उन्होने जीत दर्ज की ।

पूर्वाञ्चल के बाद हम एक ऐसे ही माननीय की बात कर लेते हैं, जिनका संबंध बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले से है । 2017 में दिये गए हलफनामे के अनुसार 9 आपराधिक मामले दर्ज हैं। जिसमें उन्हें आरोपित किया गया था। उनके प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2017 में भाजपा उम्मीदवार के रूप में उन्होने चुनाव लगा और जीते भी । लेकिन इसी बीच 23 साल पुराने केस में उत्तर प्रदेश की हाईकोर्ट की इलाहाबाद बेंच ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी। जिससे उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई । जिस केस में उन्हें सजा मिली। उसमें उन्होने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी राजेश शुक्ल समेत 5 लोगों को दिन दहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी थी। इसके साथ-साथ उन्हें कानपुर के किदवई नगर में हुई रणधीर गुप्ता कारोबारी की हत्या में भी नामजद रिपोर्ट की गई थी । एक डीएसपी रैंक के साथ उनकी दबंगई की चर्चा आज भी उनके क्षेत्रों में प्रसंगानुसार होती है । उनके प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1999 में बसपा उम्मीदवार के रूप में उन्होने जेल में रहते हुए लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की ।

अब हम भगवान राम की नगरी नाम से विख्यात राम नगरी अयोध्या के एक माननीय की भी चर्चा कर लेते हैं, जो इस समय उत्तर प्रदेश विधानसभा की शोभा बढ़ा रहे हैं । ये हैं अयोध्या की गोशाईगंज विधानसभा सीट से भाजपा प्रयशी के रूप में चुने गए विधायक खब्बू तिवारी। इसी नाम से वे अपने क्षेत्र में जाने जाते हैं। वैसे उनका मूल नाम इन्द्र प्रताप तिवारी है । इन पर भी हत्या, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग और वसूली जैसे कई केस विभिन्न थानों में दर्ज हैं। मुस्लिम ठेकेदार नैयर इकबाल की हत्या, ठेकेदार अजय प्रताप सिंह की घर में घुसकर गोली मारकर हत्या के मामले में भी खब्बू तिवारी के नाम की खूब चर्चा हुई थी। इन मामलों में उन्हें नामजद भी किया गया है ।

छात्र जीवन से ही राजनीति के क्षेत्र में कदम रखने वाले खब्बू तिवारी आज भी अयोध्या के सबसे बड़े साकेत कालेज की राजनीति में दखल रखते हैं । इसी कारण उनके पास युवाओं की एक बड़ी टीम पाई जाती है । अपने चुनावी राजनीति की शुरुआत खब्बू तिवारी ने 2007 में की । वे गोशाईगंज विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और हार गए । इसके कुछ दिन बाद इन्होने पार्टी छोड़ दी और बहुजन समाज पार्टी में चले गए । 2012 में इन्हें मायावती ने अपनी पार्टी से टिकट देकर चुनाव लड़वाया। लेकिन इन्हें फिर हार मिली । इसके बाद इन्होने फिर पार्टी बदल ली और भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली । चुनाव लड़े और अंतत: जीत दर्ज की । इस समय उत्तर प्रदेश की विधानसभा के माननीय हैं । इनकी भी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि ये जिस पार्टी में गए, वहाँ से इन्हें उम्मीदवार बनाया गया।

अब हम बात बहराइच जिले के महसी विधानसभा से चुने गए विधायक सुरेश्वर सिंह की बात कर लेते हैं । 2017 के हलफनामे के अनुसार सुरेश्वर सिंह पर 6 आपराधिक केस दर्ज हैं। जिसमें हत्या और हत्या की कोशिश जैसे गंभीर केस भी समाहित हैं। उनके आपराधिक जीवन का इतिहास 24 साल पुराना है। जब एक तिहरे हत्याकांड में उनका नाम आया था, जिसमें वे बरी हो गए हैं । इस हत्याकांड के अनुसार 29 जून 1995 को सिसैया चूणामणि गांव के पूर्व प्रधान गोकरन सिंह अपने भाई अमिरका सिंह और भतीजे बजरंगी सिंह के साथ एक जमीन की रजिस्ट्री करवाकर अपने घर लौट रहे थे। रास्ते में घात लगाकर बैठे बदमाशों ने गोलियों से तीनों को मौत के घाट उतार दिया था । जिसमें विधायक सुरेश्वर सिंह, उनके बड़े भाई बृजेश्वर सिंह समेत 11 लोगों को आरोपी बनाया गया था। इस केस में उनके बड़े भाई बृजेश्वर सिंह समेत 5 को इस मामले में उम्रकैद की सजा हुई है। इसके बावजूद उनकी क्षेत्र में स्वीकार्यता बनी हुई है। वे दो बार से लगातार विधानसभा का चुनाव जीत रहे हैं ।

अब हम एक ऐसे बाहुबली की बात करते हैं – जिसका नाम मुख्तार अंसारी है। जो विभिन्न मामलों में पिछले 15 सालों से जेल में बंद होने के बावजूद भी लगातार 5 बार विधानसभा चुनाव जीतता आ रहा है । इस माननीय पर हत्या, अपहरण, फिरौती जैसे 40 से ज्यादा केस गंभीर केस दर्ज हैं । राजनीति इनके घर का हिस्सा रही है। इनके पिता कम्युनिष्ठ और कांग्रेस पार्टी के कई सम्मानित पदों पर रहे ।

1988 में जब मुख्तार अंसारी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, उसी दौरान हुई एक हत्या में इन्हें आरोपित किया गया। लेकिन कोर्ट में पर्याप्त साक्ष्य न प्रस्तुत कर पाने के कारण उन्हें बरी कर दिया गया । अन्य बहुबलियों की तरह मुख्तार अंसारी ने भी जमीन का कारोबार शुरू किया। अपनी धमक से ठेके पर उसका एकाधिकार हो गया । 90 के दशक तक आते-आते उसकी बादशाहत कायम हो गई । 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या की हत्या हो गई। जिसमें मुख्तार अंसारी को मुख्य आरोपी बनाया गया । भाजपा की सत्ता होने के कारण मुख्तार अंसारी पर पुलिस का दबाव बढ़ा । मुकदमों का निस्तारण भी तेजी से किया गया । जिसकी वजह से पिछले 15 सालों से उसे विभिन्न जेलों में रखा जा रहा है। दरअसल मुख्तार अंसारी जिस क्षेत्र से आते हैं, वहाँ भूमिहारों का जबर्दस्त प्रभाव है। बाहुल्य होने के कारण वहाँ की अनुसूचित जातियों पर उनके द्वारा अत्याचार भी हो जाते हैं। जिन्हें मुख्तार अंसारी संरक्षण देता है। उनकी मदद करता है । इस कारण मुसलमान और अनुसूचित जाति का जो गठजोड़ बनता है, वह हमेशा उसके पक्ष में रहता है। इनकी वह समय-समय पर मदद भी करता रहता है ।

इसके अलावा भी उत्तर प्रदेश के हर जिले में एक से अधिक बाहुबली पाये जाते हैं। जिनका वहाँ के सामाजिक और राजनीति में दखल है। इन पर चाहे जितने अपराध हों, लेकिन उनसे संबन्धित वर्ग उन्हें बाहुबली तो मानता है, लेकिन अपराधी नहीं मानता है। उनकी सामाजिक स्वीकार्यता की वजह से ही राजनीतिक दल भी उन्हें अपनी-अपनी पार्टियों से टिकट देते हैं ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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