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जरायम दुनिया की समाजिकता और वोट बैंक की राजनीति

जरायम दुनिया की समाजिकता और वोट बैंक की राजनीति
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कानपुर देहात के बिकरू गाँव में मारे गए 10 पुलिस जवानों के बाद एक बार फिर जरायम की दुनिया चर्चा में हैं। आज चार दिन हो गए लेकिन सभी अपराधी पुलिस की पकड़ के बाहर हैं। बदमाश कितने शातिर होते हैं, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब वे मोबाइल फोन भी नहीं रखते हैं। गिरफ्तारी के नाम पर पुलिस प्रशासन अंधेरे में तीर चला रहा है। औरैया इटावा होते हुए कहीं वह चंबल के घने जंगलों में होते हुए मध्य प्रदेश और राजस्थान न चला जाए, इसलिए हर संभावित रास्ते पर बैरेकेटिंग लगा कर सघन तलाशी ली जा रही है । वहीं दूसरी ओर वह लखीमपुर खीरी होते हुए नेपाल न चला जाए, इसलिए हर संभावित रास्ते पर सघन चेकिंग अभियान चलाया जा रहा है । इसके साथ – साथ पुलिस उसके करीबियों और रिशतेदारों से भी पूछताछ कर रही है । लेकिन अभी तक कोई सुराग उसे नहीं मिला है ।

इतना ही नहीं, विकास दुबे की प्रशासनिक और राजनीतिक पहुँच का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुलिस वाले उससे पूछ कर ही उसके क्षेत्र में दबिश देते, या किसी को गिरफ्तार करते रहे हैं। इसके अलावा चौबेपुर थाना तो मानों उसके हुक्म का आज तक गुलाम ही रहा हो । उस थाने के थानेदार की उससे इतनी मित्रता रही है कि उसने न सिर्फ पुलिस की दबिश और सारी रणनीति का पहले ही खुलासा कर दिया। बल्कि वहाँ के अपराधी जब अंधाधुंध गोलियां चला रहे थे, उनकी एक गोली भी उस थानेदार को छू तक नहीं गई । हालांकि थानेदार को सस्पेंड कर दिया गया है और इसकी जांच की जा रही है। विकास दुबे के आतंक का यह आलम था कि उसका गाँव जिस बीट में आता था, वहाँ कोई ड्यूटी करने नहीं जाया करता था। और जाता भी था, तो सिर्फ खानपूर्ति करके वापस लौट आता था। उसके पुलिसिया गठजोड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि

मुठभेड़ में जान गंवाने वाले बिल्हौर डीएसपी देवेंद्र मिश्रा ने 14 मार्च को कानपुर एसएसपी को एक शिकायती पत्र दिया था और मोबाइल पर चर्चा भी की थी, लेकिन विकास दुबे के प्रभाव की वजह से ही एसएसपी कार्यालय में ही धूल खा रहा है। यह पत्र लोगों की नजर में तब आया, जब शहीद डीएसपी की बेटी ने उस पत्र के बारे में जिक्र किया और उसे वायरल किया । इस पत्र में मिश्रा ने चौबेपुर थानाध्यक्ष विनय तिवारी और हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के बीच मिलीभगत की आशंका जताई थी। डीएसपी ने यह भी चेताया था कि अगर जल्द कोई कार्रवाई नहीं हुई तो बड़ी घटना हो सकती है। कानपुर रेंज के आईजी मोहित अग्रवाल ने एसएसपी दफ्तर से सभी लेटर तलब किया तो पता चला कि उस पत्र की डिस्पैच रजिस्टर में इंट्री ही नहीं की गई ।

उस पत्र के अनुसार विकास दुबे के खिलाफ लूट, हत्या और अन्य संगीन अपराधों के 150 केस दर्ज हैं। उसके खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाना चाहिए। थाना प्रभारी चौबेपुर विनय तिवारी गैंगस्टर विकास दुबे की ढाल बने हुए हैं। तिवारी उसके बचाव में कुछ भी करने को तैयार हैं। पुलिस के अंदर विकास दुबे की पहुँच का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक डीएसपी द्वारा शिकायत करने के बाद भी न तो उसे डिस्पैच किया जाता है और न ही उस पर कोई कार्रवाई होती है ।

अब हम इस जरायम की दुनिया की सामाजिकता की बात कर लेते हैं। उत्तर प्रदेश में 21वीं सदी के शुरुआती दौर में जो जरायम पेशे की दुनिया बनी। उसमें मुख्य अपराधी की एक विशेष सामाजिकता भी पाई जाती है। पहली बात यह कि वह गरीबों, दबे-कुचलो को नहीं सताता है। बल्कि जरूरत के समय या शादी- ब्याह जैसे मांगलिक कार्यों के समय धन देकर उसकी मदद ही करता रहा। साथ ही उसके प्रभाव क्षेत्र के जो गरीब लोग होते हैं, अगर उन्हें कोई दबाने या धमकाने की कोशिश करता है, तो पंचायत करके ऐसे मसलों को निपटा देता है। इन सबमें वह इस बात का ध्यान रखता है कि उसकी खुद की जाति के साथ उसकी कोई भिड़ंत न हो। इसलिए वह अपने जातीय मसलों से ज्यादातर दूरी बना कर रखता है । एक ओर वह बड़े और धनाड्य लोगों को लूटता है, लेकिन वह गरीबों की मदद भी करता है। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस रात्रि पुलिस की टीम गई, दोनों ओर से अंधाधुंध गोलियां चलती रही, फिर भी पूरा गाँव निश्चिंत होकर सोता रहा। किसी ने अपने घर का दरवाजा खोल कर बाहर देखने की भी कोशिश नहीं की, वहाँ क्या हो रहा है ? अपनी इस परोपकारी भावना के कारण समाज में उनकी स्वीकार्यता बनी रहती है। जब कभी कोई पुलिस की गाड़ी ऐसे बदमाशों के ठिकानों या घर के लिए जाती दिखती है, तो उसे लोग पहले ही सूचित कर देते हैं ।

इस जरायम की दुनिया को सबसे अधिक प्रश्रय राजनीतिक दलों और उसके नेताओं द्वारा मिलता है । ऐसे बदमाशों की धमक, चमक और स्वीकार्यता का राजनीतिक दल और नेता इस्तेमाल करते हैं । साथ ही उन्हे यह भी अच्छी तरह से मालूम होता है कि ऐसे प्रभावी बदमाशों की खिलाफत करके न तो वे चुनाव प्रचार कर सकते हैं, और न ही चुनाव जीत सकते हैं। इस कारण उसका झुकाव किसी राजनीतिक दल की ओर भले हो, लेकिन सभी राजनेता उससे मधुर संबंध बना कर रखते हैं, क्योंकि यह पाया गया है कि जमीन पर कब्जा और जमीन का धंधा भी अधिकतर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता ही करते हैं । प्राय: यह देखा गया है कि जिस राजनीतिक दल की सत्ता होती है, वे विवादास्पद ज़मीनों को खरीद लेते हैं, फिर सत्ता और ऐसे बदमाशों से गठजोड़ करके उस जमीन पर कब्जा कर लेते हैं या औने-पौने दामों में उसे खरीद लेते हैं । फिर उसे ऊंचे दामों पर बेच कर थोड़े ही समय में मालदार बन जाते हैं । जो बदमाश या पुलिस अधिकारी इनकी मदद करता है, तय राशि उसे पहुंचा दी जाती है । इसकी एवज में जरायम दुनिया के लोग नेताओं का अपने हित में इस्तेमाल करते हैं। जब कभी वे कोई वारदात करते हैं या ऐसी कोई घटना हो जाती है, जिसमें उसके लोग संलिप्त रहते हैं, उन्हें बचाने और ऐसी धाराएँ लगवाने में मदद प्राप्त करते हैं, जिससे वह आसानी से बरी हो जाए । जरायम की दुनिया के लिए राजनीतिक दलों और नेताओं का यही उपयोग होता है। एक बात और देखी गई है कि अधिकांश जरायम पेशा लोग सत्ता के वफादार होते हैं। जिसकी भी सत्ता आए, उसके साथ समरस हो जाते हैं। उसके नेताओं से जुड़ जाते हैं। बदलें में उनकी मदद करते हैं। उन्हें तमाम ऐसे रास्ते बताते हैं जिससे वे अधिक धन कमा सके । कभी – कभी उनके हर काम में इनकी भागीदारी भी सुनिश्चित होती है। सत्ताधारी नेता के साथ उठने बैठने, घूमने और कार्यक्रमों में दिखने की वजह से एक ओर जहां जरायम की दुनिया के लोगों को प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, वहीं दूसरी ओर उसकी धमक भी बढ़ जाती है। आम जनता के मन में यह विश्वास हो जाता है कि इसकी पहुँच फलाने मंत्री या विधायक से है, इसके खिलाफ अगर कोई शिकायत भी कर दी जाएगी, तो भी कुछ नहीं होगा। इसकी वजह से तमाम लोग, जो उसका विरोध कर सकते हैं, राजनीतिक के साथ बने उसके नाजायज संबंध की वजह से तटस्थ हो जाते हैं ।

इसके साथ – साथ जरायम दुनिया के लोग अपने समाज में विशेष प्रभाव रखते हैं। उनकी हर प्रकार से मदद करने के साथ-साथ अपने समाज या क्षेत्र के तमाम युवाओं को भी प्रभावित करने में सक्षम हो जाते हैं। जरायम की दुनिया के लोगों की मनोवैज्ञानिक पकड़ बहुत अधिक होती है। इस कारण वे युवाओं को जरायम की दुनिया की ओर आकर्षित करते हैं, जो आकर्षित हो जाता है, उसे धीरे-धीरे छोटी-मोटी वारदात करा कर अपने चंगुल में कर लेते हैं। कई बार तो खुद ही पुलिस को सूचना करके उन्हें पकड़वा देते हैं, जिससे उसका आपराधिक रिकार्ड हो जाए और वह फिर जरयम की दुनिया से लौट कर वापस न जाए । इस प्रकार युवाओं को जरायम की दुनिया में उतार कर वे अपनी दुनिया का नवीनीकरण करते रहते है। उनमें शराब और शबाब का शौक पैदा करते हैं। कुछ समय तक खुद उपलब्ध कराते हैं, उन्हें जब यह विश्वास हो जाता है कि यह लती हो गया है, तब उसे छोड़ देते हैं, इस प्रकार अपने शौक और आदतों को पूरा करने के लिए वह खुद छोटे-मोटे अपराध करने लगता है। जब वह पकड़ा जाता है, तो उसे अपने राजनीतिक सम्बन्धों से छुड़ा देते हैं और प्रकार उसे अपना कृतज्ञ बना लेते हैं । और फिर जब कहीं उन्हे लगता है कि इसका उपयोग करना चाहिए, उससे वह अपराध करा लेते हैं। युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी की वजह से भी उन्हें ऐसे युवा प्राप्त होते रहते हैं। आज की भोगवादी संस्कृति में हर युवा की यह ख़्वाहिश होती है कि वह ज्यादा से ज्यादा लगजरी का उपभोग करे । क्षेत्र के जो लड़के उनके काम के नहीं होते हैं, उन्हें वह अपने प्रभाव क्षेत्र की किसी न किसी फैक्टरी या आफिस में कह कर नौकरी भी लगवा देते हैं। किसी क्षेत्र की सड़क बनवा देते हैं। एक फोन करके किसी का राशन कार्ड बनवा देते हैं। कोटेदार से राशन दिलवा देते हैं । किसी लड़के की फीस माफ करवा देते हैं, कभी-कभी कुछ लड़कों की फीस अपनी जेब से भर देते हैं। इस तरह से जरायम दुनिया की एक समाजिकता का भी निर्माण हो जाता है। जिसका फायदा मुसीबत या किसी बड़ी कार्रवाई के दौरान उसे मिलता है। जानते हुए भी लोग पुलिस को सही जानकारी नहीं देते हैं । इस कारण पुलिस अंधेरे में ही हाथ – पैर मारती रहती है। बड़ी कार्रवाई करती तो है, फिर भी जरायम की दुनिया को विनष्ट करने में सफल नहीं होती है ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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